बिलासपुर : नयनतारा महाविद्यालय में अहिल्या देवी होलकर शताब्दी समारोह हर्षोल्लास के साथ सम्पन्न…

बिलासपुर। नयनतारा महाविद्यालय पंडी में पूर्ण श्लोक लोकमाता अहिल्यादेवी होल्कर का 3 शताब्दी समारोह 16 नवंबर को हर्षोल्लास के साथ मनाया गया इस अवसर पर डॉक्टर अनामिका तिवारी सहायक प्राध्यापक, श्री प्रांजल शर्मा एवं श्री ओम प्रकाश गुप्ता विशेष रूप से उपस्थित थे।
सर्वप्रथम अतिथियों के द्वारा दीप प्रज्वलित कर कार्यक्रम का शुभारंभ किया गया तत्पश्चात श्री बलराम जोशी के द्वारा अतिथियों का परिचय कराया गया।
डॉक्टर अनामिका तिवारी के द्वारा अहिल्याबाई का विस्तृत कर्तव्य परायणता, मातृत्व भावना, नेतृत्व विशेषताओं का उल्लेख किया गया।
उन्होंने महारानी अहिल्याबाई के बारे में उन्होंने बताया कि :
- अहिल्याबाई होलकर जन्म से ही काफी चंचल स्वभाव की थीं। वे कई कौशल अपने अंदर समेटे हुए थीं।
- जब अहिल्याबाई की उम्र 42 साल के करीब थी तब उनके बेटे मालेराव का भी देहांत हो गया था।
- अहिल्याबाई होलकर को लोग देवी के रूप में मानते थे। और उनकी पूजा करते थे।
- देवी अहिल्याबाई ने राज्य में काफी गड़बड़ मची हुई थी उस परिस्थिति में राज्य को ना केवल संभाला बल्कि कई नए आयाम खड़े किए।
- उनके सम्मान और उनकी याद में ही मध्य प्रदेश के इन्दौर में हर साल भाद्रपद कृष्णा चतुर्दशी के दिन अहिल्योत्सव का आयोजन किया जाता है।
- अहिल्याबाई होलकर का नाम समूचे भारतवर्ष में बहुत ही सम्मान के साथ लिया जाता है। उन्हें लेकर कई पुस्तकों में भी लिखा गया है।
- अहिल्याबाई होल्कर ने देश के कई हिस्सों में काफी काम किए, जिसके चलते भारत सरकार के द्वारा कई जगहों पर रानी की प्रतिमा भी लगवाई गई है। उनके नाम पर कई योजनाएं भी हैं।
महारानी अहिल्याबाई के जीवन के संघर्ष और कठिनाईयां : अहिल्याबाई होलकर का इतिहास मेंं अहिल्याबाई की जिंदगी सुख और शांति से कट रही थी, तभी उनके जीवन में दुखों का पहाड़ टूट गया। साल 1754 में जब अहिल्याबाई होलकर महज 21 साल की थी, तभी उनके पति खांडेराव होलकर कुंभेर के युद्ध के दौरान वीरगति को प्राप्त हो गए।इतिहासकारों के मुताबिक अपने पति से अत्याधिक प्रेम करने वाली अहिल्याबाई ने अपनी पति की मौत के बाद सती होने का फैसला लिया, लेकिन पिता समान ससुर मल्हार राव होलकर ने उन्हें ऐसा करने से रोक दिया। इसके बाद सन् 1766 में मल्हार राव होलकर भी दुनिया छोड़कर चले गए, जिससे अहिल्याबाई काफी आहत हुईं, लेकिन फिर भी वे हिम्मत नहीं हारी। इसके बाद मालवा प्रांत की बागडोर अहिल्याबाई के कुशल नेतृत्व में उनके पुत्र मालेराव होलकर ने संभाली। शासन संभालने के कुछ दिनों बाद ही साल 1767 में उनके जवान पुत्र मालेराव की भी मृत्यु हो गई। पति, जवान पुत्र और पिता समान ससुर को खोने के बाद भी उन्होंने जिस तरह साहस से काम किया, वो सराहनीय है।
संगीता सिंह जी ने भी अहिल्या जी के बारे में बारे में प्रकाश डाला एवं साथी श्री प्रांजल शर्मा जी ने अपने भी विचार रखें एवं आभार प्रदर्शन किया। इस कार्यक्रम में लगभग 75 विद्यार्थीयों ने भाग लिया एवं समारोह में महाविद्यालय की समस्त स्टाफ ने अहम भूमिका रही।