रायपुर

छत्तीसगढ़ की अदालतों में लंबित मामलों की भरमार खत्म करने ‘मध्यस्थता राष्ट्र के लिए’ महा-अभियान शुरू, हाईकोर्ट ने कसी कमर…

रायपुर, 2 जुलाई 2025। छत्तीसगढ़ की न्यायिक व्यवस्था में ऐतिहासिक बदलाव की शुरुआत हो चुकी है। न्याय की राह में वर्षों से फंसे हजारों लंबित मामलों के शीघ्र समाधान की दिशा में “मध्यस्थता राष्ट्र के लिए” अभियान के तहत अब न्यायालयों का फोकस ‘समझौते से समाधान’ की ओर मुड़ गया है। इस अभियान को प्रदेशभर में प्रभावी ढंग से लागू करने के लिए बुधवार को छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति रमेश सिन्हा की अध्यक्षता में एक महत्वपूर्ण वर्चुअल बैठक आयोजित की गई, जिसमें प्रदेश के तमाम जिला न्यायालयों से लेकर विधिक सेवा प्राधिकरणों तक के शीर्ष पदाधिकारी शामिल हुए।

मध्यस्थता अब ‘वैकल्पिक’ नहीं, बल्कि ‘अनिवार्य उपाय’ बनेगा : मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति रमेश सिन्हा ने दो टूक कहा –

“अब समय आ गया है कि हम अदालतों में वर्षों से अटके मामलों को घसीटने के बजाय उन्हें मध्यस्थता के ज़रिए जल्दी और संतोषजनक ढंग से सुलझाएं। न्याय तभी सार्थक है जब वह समय पर मिले।”

उन्होंने सभी न्यायाधीशों को निर्देशित किया कि वे अधिक से अधिक मामलों को मध्यस्थता के लिए चिह्नित करें और रेफरल प्रक्रिया को व्यवस्थित और समयबद्ध बनाएं। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि मध्यस्थता निगरानी समितियों को प्रत्येक प्रगति की रिपोर्ट तय समयसीमा में प्रस्तुत करनी होगी।

बैठक में न्यायपालिका के दिग्गज भी रहे मौजूद : बैठक की सह-अध्यक्षता न्यायमूर्ति पार्थ प्रतीम साहू ने की, जो छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय की मध्यस्थता एवं सुलह निगरानी समिति के अध्यक्ष हैं। साथ में न्यायमूर्ति नरेश कुमार चंद्रवंशी एवं न्यायमूर्ति राधाकिशन अग्रवाल भी शामिल रहे।

इस दौरान राज्य के सभी प्रधान जिला न्यायाधीश, परिवार न्यायालयों के प्रधान न्यायाधीश, वाणिज्यिक न्यायालय रायपुर के न्यायाधीश, राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण के सदस्य सचिव, और जिला विधिक सेवा प्राधिकरणों के सचिव उपस्थित रहे।

क्या बदलेगा इस अभियान से? –

  • न्यायालयों में वर्षों से लंबित मामलों को तीव्र गति से निपटाया जा सकेगा।
  • आम नागरिकों को कम खर्च, कम समय में समाधान मिलेगा।
  • विवादों को आपसी संवाद से सुलझाने की संवेदनशील न्यायिक पहल को बढ़ावा मिलेगा।
  • न्यायिक प्रक्रिया कम बोझिल और जन-सुलभ होगी।

सवाल जो उठ रहे हैं…

  • क्या वकील बिरादरी इस बदलाव का खुलकर समर्थन करेगी?
  • क्या प्रशासनिक स्तर पर इस अभियान की निगरानी ईमानदारी से होगी?
  • क्या आम नागरिकों को मध्यस्थता प्रक्रिया की समुचित जानकारी दी जाएगी?

छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने संकेत दे दिया है अब “वर्षों तक अटकी न्यायिक प्रक्रियाएं” नहीं चलेंगी। मध्यस्थता अब ‘मुलाक़ातों की मेज़’ से निकलकर ‘न्याय के दरवाज़े’ पर दस्तक दे रही है।’
यह महज एक अभियान नहीं, बल्कि न्याय प्रणाली की संस्कृति में बदलाव की शुरुआत है।

Ambika Sao

( सह-संपादक : छत्तीसगढ़)

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