रायगढ़

रायगढ़ : जातिगत विद्वेष का शिकार फौजी का परिवार: वित्त मंत्री से न्याय की गुहार, प्रशासन और समाज पर गंभीर आरोप?…

रायगढ़। एक तरफ जहां फौजी सीमाओं पर देश की सुरक्षा में जुटे हुए हैं, वहीं उनके परिवारों को समाज और प्रशासन के भेदभाव का शिकार होना पड़ रहा है। रायगढ़ जिले के सराईपाली गांव से एक ऐसा ही मामला सामने आया है, जहां नक्सल प्रभावित क्षेत्र में तैनात प्रधान आरक्षक बैसाखू चौहान के परिवार को जातिगत भेदभाव, सामाजिक उत्पीड़न और प्रशासनिक पक्षपात का सामना करना पड़ रहा है। पीड़ित परिवार ने अपनी पीड़ा व्यक्त करते हुए राज्य के वित्त मंत्री और रायगढ़ विधायक ओपी चौधरी से न्याय की गुहार लगाई है।

जातिगत भेदभाव की गहरी जड़ें : फौजी की पत्नी बिंदु चौहान ने पांच पन्नों के पत्र में आरोप लगाया है कि सराईपाली गांव में हरिजन समाज को सवर्ण समुदाय के लोग दशकों से प्रताड़ित कर रहे हैं। जातिगत दुर्व्यवहार और छुआछूत के मामले 2000 से लेकर 2012 तक पुलिस और प्रशासन के रिकॉर्ड में दर्ज हैं, लेकिन इसके बावजूद हालात नहीं बदले। बिंदु चौहान ने बताया कि उनका परिवार आज भी गाली-गलौज, धमकियों और छुआछूत जैसी अमानवीय व्यवहारों का सामना कर रहा है।

फौजी परिवार को निशाना बनाना : बिंदु चौहान के पति बैसाखू चौहान, जो नक्सल प्रभावित नारायणपुर जिले में 16वीं बटालियन में प्रधान आरक्षक के पद पर तैनात हैं, उनके परिवार को गांव के प्रभावशाली सवर्णों द्वारा बार-बार झूठी शिकायतों और सामाजिक बहिष्कार का सामना करना पड़ता है। यहां तक कि 16 मार्च 2024 को प्रशासन ने बिना किसी सूचना या नोटिस के उनके घर और बाड़ी को जेसीबी से तोड़ दिया।

प्रशासनिक पक्षपात का आरोप : बिंदु चौहान ने बताया कि उनके परिवार के साथ प्रशासनिक पक्षपात किया गया। खसरा नंबर 231/1 की सरकारी भूमि पर उनके अलावा 32 परिवार 25-30 सालों से निवासरत हैं। इनमें से कई परिवारों को प्रधानमंत्री आवास योजना और इंदिरा आवास योजना के तहत मकान भी मिले हैं। लेकिन हल्का पटवारी ने अपनी जांच रिपोर्ट में केवल बिंदु चौहान के परिवार को अतिक्रमणकारी बताया और सवर्णों के दबाव में प्रशासन ने उनके घर को तोड़ दिया।

वित्त मंत्री से न्याय की गुहार : पीड़िता ने अपने पत्र में दस बिंदुओं पर अपनी पीड़ा व्यक्त की है। उन्होंने दोषियों पर कड़ी कार्रवाई, प्रशासनिक पक्षपात को रोकने, परिवार को सुरक्षा प्रदान करने और सरकारी भूमि पर बसे सभी परिवारों के साथ समान व्यवहार की मांग की है।

समाज और प्रशासन के लिए सवाल : यह मामला केवल एक परिवार की पीड़ा नहीं है, बल्कि जातिगत भेदभाव और प्रशासनिक निष्पक्षता पर सवाल खड़ा करता है।

  • ‎क्या जातिगत भेदभाव को खत्म करने के लिए ठोस कदम उठाए जाएंगे?
  • ‎क्या प्रशासनिक तंत्र दोषियों को सजा दिलाने और पीड़ित परिवार को न्याय दिलाने में सफल होगा?
  • ‎क्या देश की सेवा करने वाले फौजियों के परिवार को सामाजिक सुरक्षा और सम्मान मिलेगा?

‎‎न्याय की लड़ाई की प्रतीक्षा : यह घटना न केवल सामाजिक और प्रशासनिक समस्याओं को उजागर करती है, बल्कि यह भी दिखाती है कि हमारे देश में जातिगत भेदभाव और सत्ता का दुरुपयोग अभी भी गहरी समस्या है। अब देखना यह है कि पीड़ित परिवार को न्याय मिलता है या नहीं।

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