बालोद

बालोद: पत्रकार फिरोज अहमद खान को मिली जान से मारने की धमकी, प्रशासन की निष्क्रियता पर उठे सवाल

बालोद। जिले के वरिष्ठ पत्रकार और न्यूज़ पोर्टल ‘न्यूज 36 (डॉट) टेक’ के जिला ब्यूरो प्रमुख फिरोज अहमद खान को जान से मारने की धमकी मिलना एक गंभीर मुद्दा बन गया है। बीते कुछ महीनों से पत्रकार को लगातार धमकियां मिल रही हैं। यह घटनाक्रम 2023 में एक खबर प्रकाशित करने के बाद से शुरू हुआ, जिसमें चुनाव आचार संहिता के उल्लंघन की ओर ध्यान आकर्षित किया गया था।

मामले की शुरुआत : फिरोज अहमद खान ने विधानसभा चुनाव के दौरान तत्कालीन थाना प्रभारी मुकेश सिंह पर चुनावी आचार संहिता के उल्लंघन का आरोप लगाते हुए खबर प्रकाशित की थी। खबर के अनुसार, थाना प्रभारी ने खुलेआम एक राजनीतिक पार्टी के चुनाव चिन्ह का प्रचार किया था। इस रिपोर्ट के बाद पत्रकार को धमकियों और हमलों का सामना करना पड़ा।

हमलों की कड़ी :

  • 4 जनवरी 2024: राजहरा बस स्टैंड में विशाल मोटवानी और उसके साथियों ने फिरोज पर हमला किया। शिकायत के बावजूद तत्कालीन थाना प्रभारी ने कार्रवाई से इनकार कर दिया।
  • 12 जून 2024: मोटवानी ने फिरोज को पिस्तौल दिखाकर धमकी दी और जिले से बाहर जाने की चेतावनी दी।
  • 15 जनवरी 2025: एक बार फिर मोटवानी ने धमकी देते हुए पत्रकार को सैप्टिक टैंक में फेंकने और मारने की बात कही।

अवैध गतिविधियों का अड्डा : विशाल मोटवानी पर पहले से ही अपराध और अवैध कार्यों में लिप्त होने का आरोप है। स्थानीय सूत्रों के अनुसार, मोटवानी ने राजहरा क्षेत्र में क्रिकेट सट्टा, नशीली दवाओं की तस्करी, और अन्य अवैध कार्यों का संचालन किया है।

प्रशासन की भूमिका पर सवाल : पत्रकार फिरोज अहमद खान ने इन धमकियों की शिकायत कई बार की, लेकिन पुलिस और प्रशासन की निष्क्रियता ने उनकी सुरक्षा को लेकर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। हाल ही में राजहरा थाना प्रभारी सुनील तिर्की ने मोटवानी के अवैध धंधों पर शिकंजा कसा, जिससे वह बौखलाया हुआ है।

पत्रकारों की सुरक्षा पर चिंता : फिरोज अहमद खान का मामला केवल व्यक्तिगत नहीं है, बल्कि यह पूरे पत्रकारिता समुदाय के लिए खतरे की घंटी है। यह घटना दिखाती है कि सच्चाई उजागर करने वाले पत्रकारों को किस प्रकार के खतरों का सामना करना पड़ता है।

आवश्यक कदम:

  1. पत्रकार की सुरक्षा सुनिश्चित की जाए।
  2. धमकी देने वालों के खिलाफ तत्काल और कड़ी कार्रवाई की जाए।
  3. पत्रकारों के लिए स्वतंत्र और सुरक्षित कार्य वातावरण बनाया जाए।

सवाल जो अब भी बने हुए हैं : क्या लोकतंत्र के चौथे स्तंभ को स्वतंत्र रूप से कार्य करने की अनुमति है, या फिर पत्रकारों को सच्चाई उजागर करने की कीमत अपनी जान देकर चुकानी पड़ेगी? इस घटना ने समाज और सरकार दोनों को आत्ममंथन के लिए मजबूर कर दिया है।

पत्रकारों के खिलाफ बढ़ते हमले लोकतंत्र के लिए खतरा हैं। सरकार और प्रशासन को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि इस प्रकार की घटनाएं दोबारा न हों और दोषियों को सख्त सजा दी जाए।

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