बस्तर : उत्कृष्ट पत्रकारिता और जान का जोखिम ; आलेख – रुचिर गर्ग
रायपुर। बस्तर के चार पत्रकार, बप्पी राय, धर्मेंद्र सिंह, मनीष सिंह, और निशु त्रिवेदी, को आंध्र प्रदेश की पुलिस ने गांजा रखने के आरोप में गिरफ्तार किया है। साथ ही, दो अन्य व्यक्तियों के खिलाफ भी एफआईआर दर्ज की गई है, लेकिन वे फरार बताए जा रहे हैं। इस गिरफ्तारी ने बस्तर के पत्रकारों में आक्रोश पैदा कर दिया है।
स्थानीय पत्रकारों का आरोप है कि इस मामले में स्थानीय पुलिस अधिकारी अजय सोनकर की भूमिका संदिग्ध है। उनका कहना है कि इस अधिकारी ने पत्रकारों को फंसाने के लिए उनकी गाड़ी में गांजा रखवाया। इस आरोप की गंभीरता को देखते हुए इसकी निष्पक्ष जांच की मांग की जा रही है, क्योंकि अगर यह सिलसिला शुरू हुआ तो इसे रोकना मुश्किल होगा।
इस घटना को लेकर छत्तीसगढ़ शासन ने आरोपी पुलिस अधिकारी को लाइन अटैच कर दिया है। वहीं, छत्तीसगढ़ पुलिस के उच्च अधिकारी इस मामले में आंध्र प्रदेश में उच्च स्तर पर संपर्क बनाए हुए हैं। मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय भी इस मामले से अवगत हैं। दिल्ली और हैदराबाद से भी कई उच्च पदस्थ लोग और पत्रकार अपने स्तर पर इस मुद्दे को हल करने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन जब तक कोई ठोस परिणाम आता, इन पत्रकारों पर एफआईआर दर्ज हो चुकी थी।
खबरों के अनुसार, राहत की बात यह है कि एफआईआर में 40 किलो गांजे के बजाय 15 किलो गैर-व्यापारिक गांजे का जिक्र है।
बस्तर में पत्रकारिता की चुनौतियाँ : बस्तर के पत्रकार न केवल खतरों के बीच पत्रकारिता करते हैं, बल्कि वे मानवता की ऐसी जिम्मेदारियों का निर्वहन भी करते हैं, जो सामान्य रूप से उनसे अपेक्षित नहीं होतीं। इनमें कभी सुरक्षा बलों के जवानों को नक्सलियों के कब्जे से छुड़ाना, कभी नक्सली और सुरक्षा बल या सरकार के बीच संवाद का माध्यम बनना, और कभी नक्सल इलाके से शवों को निकालने में मदद करना शामिल है। ऐसे कई किस्से हैं जब बस्तर के पत्रकारों ने अपनी जान जोखिम में डालकर रिपोर्टिंग की है।
पूर्व में भी, बस्तर के पत्रकारों ने ऐसे साहसिक कार्य किए हैं। जैसे कि वरिष्ठ पत्रकार राजेंद्र बाजपेयी ने एक पुलिस अधिकारी को माओवादियों के चंगुल से छुड़ाया था। इसी तरह, बप्पी राय और उनके साथी मकबूल ने माओवादियों द्वारा अपहृत पुलिस कर्मियों को छुड़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।
बस्तर के पत्रकारों का साहस और संघर्ष : बस्तर के पत्रकारों ने हमेशा अपने कर्तव्यों से बढ़कर काम किया है। गणेश मिश्र जैसे पत्रकारों ने नक्सल-पुलिस क्रॉस फायरिंग के दौरान भी घटनास्थल से रिपोर्टिंग की। नरेश मिश्रा जैसे पत्रकारों की रिपोर्टिंग ने राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सुर्खियाँ बटोरीं।
यहां के पत्रकार न तो किसी विशेष प्रशिक्षण के तहत काम करते हैं और न ही उनके पास आवश्यक सुरक्षा उपकरण होते हैं। वे अपने जुनून और साहस के बल पर अपने काम को अंजाम देते हैं।
निष्कर्ष : बस्तर में पत्रकारिता करना एक संघर्षपूर्ण कार्य है। यहां के पत्रकार न्यूनतम सुविधाओं और वेतन पर काम करते हैं, लेकिन उनकी जिम्मेदारी केवल समाचारों तक सीमित नहीं है। वे सामाजिक और मानवीय दायित्वों का भी निर्वहन करते हैं। अगर इन पत्रकारों के साथ खड़ा नहीं हुआ गया, तो भविष्य में पत्रकारिता को बड़ा नुकसान हो सकता है।
बप्पी राय और उनके साथियों के साथ हुई इस घटना ने बस्तर के पत्रकारों को एकजुट कर दिया है। सभी पत्रकार इस संघर्ष में एक-दूसरे के साथ खड़े हैं, और यह समय उनके साहस और संघर्ष का समर्थन करने का है।
आलेख: रुचिर गर्ग