रायगढ़

CG-13 ढाबा कांड : 20 दिन बाद भी आरोपी खुलेआम घूम रहे, पुलिस मूकदर्शक – एक का टूटा पैर, दूसरे का फटा कान, फिर भी कानून खामोश!…

रायगढ़। क्या छत्तीसगढ़ में न्याय अब रसूखदारों के चरणों में गिर चुका है? क्या रायगढ़ पुलिस अब सिर्फ शक्तिशाली अपराधियों की रक्षा में लगी है? CG-13 ढाबा मारपीट कांड को 20 दिन से अधिक बीत चुके हैं। इस हमले में एक पीड़ित की पैर की हड्डी टूटी, दूसरे के कान का पर्दा फट गया, मेडिकल रिपोर्ट और एफआईआर में यह स्पष्ट दर्ज है। इसके बावजूद अब तक एक भी आरोपी की गिरफ्तारी नहीं हुई है, जबकि पुलिस ने मामले में गंभीर गैर-जमानती धाराएं भारतीय न्याय संहिता की धारा 117(2) और बलवा अधिनियम की धारा 191 लागू कर दी हैं।

फावड़े से हमला, और पुलिस की ‘फाइल’ में खामोशी : 29 जून 2025 को हुए इस संगठित हमले में हमलावरों ने फावड़े और लोहे की रॉड से जानलेवा हमला किया। दोनों पीड़ित गंभीर रूप से घायल हुए। बावजूद इसके, पुलिस द्वारा किसी भी आरोपी को अब तक गिरफ्तार नहीं किया गया है। यह स्थिति पुलिस की निष्क्रियता नहीं, बल्कि सुनियोजित शिथिलता की ओर संकेत करती है।

आरोपी सोशल मीडिया पर सक्रिय, पीड़ित अस्पतालों और दफ्तरों के चक्कर काट रहे : पीड़ित अमन सिंह द्वारा पुलिस अधीक्षक रायगढ़ को दिए गए लिखित आवेदन में बताया गया है कि सभी नामजद आरोपी सोशल मीडिया पर खुलेआम वीडियो अपलोड कर रहे हैं, घूम-फिर रहे हैं और पुलिस उन्हें छू भी नहीं रही। दूसरी ओर, पीड़ित लगातार मानसिक, शारीरिक और आर्थिक प्रताड़ना झेल रहे हैं।

क्या पुलिस दबाव में है या मिलीभगत कर रही है? 

  • जब मेडिकल रिपोर्ट, चश्मदीद गवाह और वीडियो सबूत मौजूद हैं, तो गिरफ्तारी में देरी क्यों?
  • क्या रायगढ़ पुलिस किसी राजनीतिक या बाहरी दबाव में है?
  • क्या आरोपियों को किसी रसूखदार का संरक्षण प्राप्त है?
  • आखिर क्यों बलवा अधिनियम जैसे गंभीर प्रकरण में भी कार्यवाही ठप पड़ी है?

यह केवल लापरवाही नहीं, यह न्याय की हत्या है : इस प्रकरण में पुलिस की निष्क्रियता सिर्फ एक प्रशासनिक विफलता नहीं, बल्कि पीड़ितों के संविधान प्रदत्त न्याय के अधिकार का उल्लंघन है। यह स्थिति यह दर्शाती है कि रायगढ़ में कानून नहीं, पहुंच और प्रभाव की चलती है।

पीड़ित पक्ष की चेतावनी – यदि गिरफ्तारी नहीं हुई, तो होगा जनआंदोलन : पीड़ित पक्ष ने स्पष्ट किया है कि यदि शीघ्र गिरफ्तारी नहीं की गई तो वे:

  • धरना प्रदर्शन करेंगे,
  • मानवाधिकार आयोग और अनुसूचित जनजाति आयोग में शिकायत करेंगे,
  • और न्यायालय की शरण लेंगे।

रायगढ़ पुलिस को जवाब देना होगा – क्या आप न्याय के रक्षक हैं या अपराधियों के संरक्षक?

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