जागते रहो! बालोद में दिनदहाड़े, बिक रही ‘अवैध शराब’ आबकारी विभाग बेफिक्र सो रहा!…

फिरोज अहमद खान (पत्रकार)
बालोद। छत्तीसगढ़ के बालोद जिले के गुरूर में नेशनल हाईवे 930 में ग्राम चिरचारी में केजीएन राइस मिल के बाजू एक बंद पड़े ढाबे में ‘विकास’ ने नई ऊंचाइयां छू ली हैं— अब हर गली-मोहल्ले, गांव-शहर में खुलेआम अवैध शराब “पव्वा” बिक रहा है। न ताले की जरूरत, न चोरी की फिकर, यहां माफिया भी बेधड़क है और अधिकारी भी चिरनिंद्रा में लीन है।
जिले में अवैध शराब का कारोबार इतना तेज़ है कि अब गांवों से लेकर शहरी गलियों तक, हर दूसरे मोड़ पर “पव्वा” खुलेआम बिकता देखा जा सकता है। माफिया दिन-दहाड़े पैसा कूट रहे हैं और आमजन, प्रशासन के भरोसे बेहाल हैं। वहीं जिला आबकारी अधिकारी को पव्वे की अवैध बिक्री की शिकायत करो तो वे आसमान में उड़ रहे किसी कव्वे के बारे में सोचने लग जाते है।
ये धंधा इतना बेलगाम है कि पत्रकार जब शिकायतों की सत्यता जानने अधिकारियों तक पहुँचे, तो आबकारी अधिकारी का फोन ‘व्यस्त’ नहीं, बल्कि ‘बेपरवाह’ मिला— जिन्हें कॉल रिसीव करने की फुर्सत ही नहीं। पूछो क्यों? क्या अब जनता के सवालों का जवाब देना भी वीआईपी ड्यूटी में नहीं है?
सवाल ये भी है कि जब अवैध शराब का धंधा गांव-गांव, शहर-शहर में धड़ल्ले से चल रहा है, तो कौन है असली दलाल? किसके जरिए बेखौफ बिक रही है अवैध शराब? ग्रामीण कहते हैं— बिना “ऊपर” के संरक्षण के ये मुमकिन ही नहीं! या तो मामला आँख बंदकर सो जाने का है या फिर मिलीभगत का।
छत्तीसगढ़ के सुशासन के “विकास मॉडल” में सबसे बड़ा निवेश गरीबों के स्वास्थ्य और माहौल की बर्बादी है, लेकिन आमदनी शराब माफिया की जेब में है। गांव के बेरोजगार, युवा, अब ‘शपथ’ लेने की जगह अब ‘शराब’ ले रहे हैं!
शराब माफिया को कभी पुलिस पकड़ ले तो कार्यवाही की सुर्खियाँ, मगर अगले दिन फिर सब जस का तस— ज़रूरी है क्या एक गिरफ्तारी से नशे की नदी सूख जाएगी?
प्रशासन के नए नारे— ज्यादा दुकाने, ज्यादा समस्याएं। कहीं शराब बंदी की मुहिम, तो कहीं 21 नई दुकानों का उद्घाटन। नेता और अफसर पूछते- “अब बोलो, किसका विकास चाहिए— जनता का, या माफिया का?”
ग्रामीणों ने तो साफ बोल दिया— “अगर प्रशासन ने नहीं रोका, तो हम खुद गांव से बहिष्कृत करेंगे इन माफियाओं को!” महिलाओं का घर से निकलना मुश्किल, युवाओं की जिंदगी बर्बादी की ओर।
जिले के लोग सवाल कर रहे— जिला आबकारी अधिकारी राजेश शर्मा का मौन रहना क्या सिर्फ संयोग है या वाकई अवैध शराब के कारोबार को ऊपर से ‘हरी झंडी’ मिली हुई है? असली खिलाड़ी कौन, जवाबदेही किसकी?
लगता है जब तक फोन “बे-दिल” और विभाग “बेखबर” है, बालोद में शराब माफिया की “डिमांड-सप्लाई” चेन मस्ती में मस्त चलती ही चलेगी! भले ही साय के सुशासन की सांसे फूल कर दम घुट जाए !