बलरामपुर-रामानुजगंज

“पहाड़ी कोरवा की ज़मीन लूटी गई, इज़्ज़त रौंदी गई, और अंत में आत्मा को भी चैन नहीं मिला ;  क्योंकि कातिल कोई और नहीं, बल्कि सिस्टम की ही पैदाइश था: विनोद अग्रवाल उर्फ ‘मग्गू सेठ’।…”

बलरामपुर-रामानुजगंज : आदिवासी शोषण की ज़िंदा मिसाल

छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने विनोद अग्रवाल समेत 6 आरोपियों की ज़मानत याचिकाएँ सिरे से खारिज कर दीं।
मामला कोई मामूली धोखाधड़ी नहीं
यह एक आदिवासी परिवार की ज़मीन लूटने, बुज़ुर्ग को आत्महत्या के लिए मजबूर करने और पूरे समाज को खामोश करने की संगठित साजिश है।

जज संजय कुमार जायसवाल की स्पष्ट चेतावनी:
“पुलिस जांच अधूरी है, आरोप गंभीर हैं -अभी ज़मानत का कोई सवाल नहीं।”

🩸 भाग 1: ज़मीन – जहाँ आदिवासी पहचान रजिस्ट्री में दबा दी जाती है

पीड़िता जुबारो बाई, पहाड़ी कोरवा महिला।
जमीन उनके पति भैराराम के नाम पर थी —
लेकिन चालाकी, फर्जी कागज़ और प्रशासनिक चुप्पी ने उस जमीन को 18 नवम्बर 2024 को शिवराम के नाम पर रजिस्ट्री करवा दी।

ना मुआवज़ा, ना सहमति – सिर्फ अंगूठा और अत्याचार।

पर्दे के पीछे का खिलाड़ी? मग्गू सेठ।

🧠 भाग 2: जुर्म – एक बुज़ुर्ग को इस हद तक तोड़ा गया कि उसने फांसी को गले लगा लिया ; भैराराम, जो ज़मीन पर टिका था, अब बेघर कर दिया गया।
हर दिन धमकियाँ:

“अब ये ज़मीन हमारी है, निकल जा वरना पछताएगा।”

हर दिन मानसिक टॉर्चर, हर दिन आत्मसम्मान को चीरने वाला जहर –
और फिर 21-22 अप्रैल की रात, उसने आत्महत्या कर ली।

बेटे संत्राम की चीख:

“इन्होंने बापू की जान नहीं ली — उसकी आत्मा को कत्ल किया।”

🔐 भाग 3: ज़मानत ख़ारिज — न्याय की एक गूंजती दस्तक

FIR नंबर: 103/2025
धारा: 108, 3(5) भारतीय न्याय संहिता 2023 और SC/ST एक्ट की धारा 3(2)(v)

🔒 जिनकी ज़मानत खारिज हुई:

  • विनोद अग्रवाल उर्फ मग्गू सेठ
  • प्रवीण अग्रवाल
  • दिलीप टिग्गा
  • चतुरगुण यादव
  • राजेन्द्र मिंज
  • धरमपाल कौशिक

राज्य की दलील:

“जांच अधूरी है, आरोप बेहद संगीन हैं। ज़मानत जांच को पटरी से उतार सकती है।”

😷 भाग 4: जुबानबंदी – जहाँ कानून खुद बंधक बना बैठा है : मग्गू सेठ पर पहले से 9 आपराधिक मामले दर्ज, लेकिन हर बार बच निकलता है।
क्यों?
क्योंकि वो “व्यापारी” नहीं
एक भयावह तंत्र का केंद्र है।

सियासी संरक्षण, अफसरशाही का झुकाव और मीडिया पर चुप्पी का दबाव – एक रिपोर्टर ने नाम न छापने की शर्त पर बताया:

“सेठ का नाम लिखा तो FIR में तुम्हारा भी नाम जुड़ जाएगा।”

जब कोर्ट ने चुप्पी तोड़ी : 1 जुलाई 2025, छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने अपने फैसले में साफ कहा:

“आरोप गंभीर हैं, जांच को प्रभावित किया जा सकता है — ज़मानत नहीं दी जा सकती।”

यह निर्णय सिर्फ एक कानूनी आदेश नहीं,
बल्कि कोरवा समाज की दशकों पुरानी पीड़ा के खिलाफ पहला औपचारिक तमाचा है।

📢 “मग्गू सेठ फाइल्स” ये तो शुरुआत है… अब पूछे जाएँगे सवाल :

  • रजिस्ट्री रैकेट: कौन बनाता है कागज़, कौन बेचता है ज़मीर?
  • दलाल बनाम दलित: आदिवासी ज़मीनों की नीलामी कैसे होती है?
  • कौन पुलिस अफसर अब भी सेठ की मेज़ पर बैठता है?
  • किस-किस नेता की जेब में है ये पूरा नेटवर्क?

अब आपकी बारी है – अगर आप भी पीड़ित हैं, तो आवाज़ उठाइए!

ये सीरीज एक पत्रकारिता नहीं, आदिवासी अस्मिता की लड़ाई है।

हम चुप नहीं बैठेंगे, हम जुबानबंदी तोड़ेंगे।

अगला भाग जल्द –

  • “रजिस्ट्री माफिया की रेखाएं कहाँ से शुरू होती हैं और कहाँ जाकर रुकती हैं?” बने रहिए, क्योंकि ये ‘नेटवर्क’ जितना दिखता है, उससे कई गुना गहरा है।

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