रायपुर

रायपुर से दर्दनाक और चौंकाने वाला मामला : अज्ञात लाश को दफनाया, दो दिन बाद शव निकाला गया – परिजन पहुंचे तो पहचान हुई…

रायपुर, छत्तीसगढ़। राजधानी रायपुर में एक ऐसा वाकया सामने आया है, जिसने पुलिस प्रशासन की कार्यप्रणाली और पहचान संबंधी प्रक्रियाओं पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। उरला थाना क्षेत्र में सड़क हादसे में मारे गए एक युवक के शव की पहचान न होने पर पुलिस ने उसे दफना दिया था। लेकिन दो दिन बाद परिजन सामने आए, जिन्होंने मृतक की पहचान की। इसके बाद प्रशासन को जेसीबी मशीन से कब्र खुदवाकर शव बाहर निकालना पड़ा और परिवार को सौंपना पड़ा। यह पूरी घटना न सिर्फ मानवीय दृष्टिकोण से संवेदनशील है, बल्कि प्रशासनिक लापरवाही की एक बड़ी मिसाल के रूप में भी देखी जा रही है।

हादसा : बायपास रिंग रोड पर तेज रफ्तार वाहन ने ली जान – प्राप्त जानकारी के अनुसार, 26 जून 2025 की शाम लगभग 5:30 बजे रायपुर के बाहरी इलाके बायपास रिंग रोड पर एक अज्ञात तेज रफ्तार वाहन ने एक युवक को टक्कर मार दी। हादसा इतना भयानक था कि युवक की मौके पर ही मौत हो गई। मृतक का शरीर बुरी तरह क्षत-विक्षत हो गया था, जिससे उसकी शिनाख्त करना मुश्किल हो गया। उरला थाना पुलिस मौके पर पहुंची और आसपास के लोगों से पहचान कराने की कोशिश की, लेकिन कोई सुराग नहीं मिला।

पहचान न होने पर किया गया अंतिम संस्कार : पुलिस ने शव को मर्चुरी में सुरक्षित रखकर पहचान के प्रयास जारी रखे, लेकिन तीन दिन तक कोई परिजन या जानकारी सामने नहीं आई। इसके बाद कानूनी प्रक्रिया पूरी करते हुए पुलिस ने शव का पोस्टमार्टम कराया और नगर निगम की मदद से अज्ञात शव को दफना दिया गया। इस पूरी प्रक्रिया में प्रशासनिक अधिकारी और निगम कर्मचारी मौजूद थे।

28 जून को पहुंचा परिवार, कपड़े और गोदना से हुई पहचान : मामले में नया मोड़ तब आया जब 28 जून को उरला थाना पहुंचे कैलाश नगर निवासी दयानंद वर्मा के परिजनों ने युवक के लापता होने की रिपोर्ट दर्ज करवाई। पुलिस ने जब शव के पहनावे और विवरण बताए तो परिजनों को शक हुआ। पुलिस द्वारा सुरक्षित रखे गए कपड़े और मृतक की कलाई पर बने गोदना (टैटू) को देखकर परिजनों ने मृतक की पहचान अपने बेटे दयानंद वर्मा, उम्र 26 वर्ष, के रूप में की।

जेसीबी से खुदवाया गया कब्र, शव सौंपा गया परिवार को : शव की पहचान होने के बाद प्रशासन हरकत में आया और कार्यपालक मजिस्ट्रेट की मौजूदगी में उस स्थान पर खुदाई करवाई गई, जहां शव को दफनाया गया था। जेसीबी मशीन की मदद से कब्र को खोदा गया और शव को बाहर निकाला गया। शव की स्थिति काफी खराब थी, लेकिन परिजन अपने बेटे का अंतिम दर्शन करना चाहते थे। शव को दोबारा परिवार को सौंपा गया और उनका धार्मिक रीति-रिवाज से अंतिम संस्कार करवाया गया।

प्रशासनिक सवाल और संवेदनशीलता की परीक्षा : इस घटना ने एक बार फिर प्रशासन और पुलिस व्यवस्था के उन पहलुओं को उजागर किया है, जहां “अज्ञात शव” मानकर जल्दबाजी में अंतिम संस्कार कर दिए जाते हैं। हालांकि पुलिस ने अपनी ओर से पहचान के प्रयास किए थे, लेकिन क्या और अधिक सावधानी बरती जा सकती थी? क्या चेहरे की तस्वीरें, या कुछ समय और प्रतीक्षा करना संभव था?

विशेषज्ञों का मानना है कि डिजिटल माध्यमों से पहचान की जानकारी (जैसे कि फेस रिकग्निशन, मीडिया या सोशल प्लेटफॉर्म के जरिए अपील) तेज़ी से फैल सकती थी, जिससे परिजन पहले ही पहुंच सकते थे।

स्थानीय लोगों और परिवार का रोष : मृतक के परिजनों ने इस पूरे घटनाक्रम को दर्दनाक और अपमानजनक बताया। उनका कहना है कि यदि प्रशासन ने थोड़ी और संवेदनशीलता दिखाई होती तो वे अपने बेटे का शव समय पर ले जा सकते थे और मानवीय गरिमा के साथ अंतिम संस्कार कर सकते थे।

स्थानीय समाजसेवियों और जागरूक नागरिकों ने भी प्रशासन से मांग की है कि भविष्य में इस तरह की घटनाओं से बचने के लिए एक स्पष्ट और संवेदनशील प्रोटोकॉल तैयार किया जाए।

फिलहाल क्या हो रहा है? – उरला थाना पुलिस ने इस मामले की डायरी एंट्री और पहचान प्रक्रिया को अपडेट कर लिया है। साथ ही अब अज्ञात शव मिलने की स्थिति में बेहतर तरीके से जन सूचनाएं प्रसारित करने की बात भी कही जा रही है। दयानंद वर्मा के परिवार को सरकार द्वारा मिलने वाली सहायता राशि और मृतक आश्रित योजना पर भी कार्रवाई की बात प्रशासन ने कही है।

इस घटना ने यह साबित कर दिया कि मृत शरीर की गरिमा और उसके पीछे के परिजनों की पीड़ा को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। प्रशासन को जहां अपनी प्रक्रिया में पारदर्शिता और संवेदनशीलता लाने की ज़रूरत है, वहीं समाज को भी ऐसे मामलों में तुरंत पहचान और जानकारी साझा करने में मदद करनी चाहिए।

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