ट्रिपल इंजन सरकार में एनएचएम कर्मचारियों की पुकार अब भी अनसुनी! लापरवाह स्वास्थ्य तंत्र और अंधे प्रशासन पर फूटा आक्रोश…

रायगढ़।छत्तीसगढ़ की तथाकथित “ट्रिपल इंजन सरकार” की चमकदार विकास गाथा के नीचे राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन (एनएचएम) के हजारों संविदा कर्मचारी अपने अधिकारों की गुहार लगा रहे हैं। प्रदेश के वित्त मंत्री ओ.पी. चौधरी और लैलूंगा विधायक विद्यावती कुंजबिहारी सिदार को बार-बार ज्ञापन सौंपे जा रहे हैं, लेकिन शासन-प्रशासन की आंखों पर मानो संवेदनशीलता के स्थान पर राजनीति की पट्टी बंधी हो।
पिछले 20 वर्षों से स्वास्थ्य व्यवस्था की रीढ़ बनकर काम कर रहे एनएचएम कर्मचारी आज भी अल्प वेतन, अस्थायी नियुक्ति और असुरक्षा के बीच जूझ रहे हैं। कोरोना जैसी महामारी में जान की बाजी लगाकर सेवाएं देने वाले इन कर्मियों को आज व्यवस्था ने हाशिए पर धकेल दिया है।
स्वास्थ्य मंत्री किसके दबाव में खामोश हैं?कर्मचारियों का स्पष्ट आरोप है कि विभागीय मंत्री की चुप्पी अब हठधर्मिता का रूप ले चुकी है। अधिकारी हर बार “कमेटी गठित करने” की घिसी-पिटी स्क्रिप्ट दोहराकर टालमटोल कर रहे हैं। सवाल उठता है — क्या मंत्री और अधिकारी किसी दबाव में हैं? क्या किसी निजी स्वार्थवश संविदा कर्मचारियों को बलि का बकरा बनाया जा रहा है?
विकास की गाथा या संवेदनहीनता की साजिश?जिनके कंधों पर ग्रामीण स्वास्थ्य सेवा का भार है, वही कर्मचारी आज बिना वेतन वृद्धि, बिना ग्रेड पे, बिना चिकित्सा सुविधा और बिना स्थायित्व के दिन काट रहे हैं। ये वही लोग हैं जो संस्थागत प्रसव से लेकर आयुष्मान कार्ड, महामारी नियंत्रण, हेल्थ एंड वेलनेस सेंटर से लेकर मेडिकल कॉलेजों तक, हर जिम्मेदारी को निष्ठा से निभा रहे हैं।
वित्त मंत्री के गृह ज़िले में ही न्याय की उपेक्षा! वित्त मंत्री ओ.पी. चौधरी के गृह ज़िले रायगढ़ की तमनार तहसील में कार्यरत एनएचएम कर्मचारी पूरी ईमानदारी से सेवाएं दे रहे हैं, फिर भी उनकी 17 सूत्रीय मांगें वर्षों से अनसुनी पड़ी हैं। पूर्ववर्ती सरकार द्वारा जुलाई 2023 में घोषित 27% वेतन वृद्धि अब तक लागू नहीं की गई है। यह कर्मचारियों के साथ न केवल अन्याय है, बल्कि शासन की असंवेदनशीलता का प्रमाण भी है।
अब आर-पार की लड़ाई का ऐलान :एनएचएम कर्मचारी संघ के प्रदेश अध्यक्ष डॉ. अमित मिरी ने स्पष्ट चेतावनी दी है कि यदि जुलाई तक मांगें पूरी नहीं की गईं, तो विधानसभा और स्वास्थ्य भवन का घेराव किया जाएगा। क्रमबद्ध आंदोलन, सामूहिक अवकाश, और हड़ताल की रणनीति तैयार है।
सरकार से सीधा सवाल – क्या ट्रिपल इंजन सिर्फ चुनावी स्टंट है? सरकार को स्पष्ट करना होगा:
- क्या संविदा कर्मचारियों की कोई सुनवाई नहीं?
- क्या स्वास्थ्य सेवाओं की नींव पर काम करने वालों को यूं ही अनदेखा किया जाएगा?
- क्या केवल “कमेटी” बनाकर कर्मचारियों के भविष्य से खिलवाड़ होता रहेगा?
अब चुप्पी नहीं, निर्णायक संघर्ष होगा : यह केवल वेतन या नियमितीकरण की लड़ाई नहीं – यह सम्मान, सुरक्षा और अस्तित्व की लड़ाई है। यदि सरकार अब भी नहीं चेती, तो यह संघर्ष छत्तीसगढ़ के हर जिले में ज्वालामुखी बनकर फूटेगा।
यह रिपोर्ट उन हजारों स्वास्थ्य कर्मियों की आवाज है, जिन्हें सत्ता के गलियारों में मौन कर दिया गया है। अब संघर्ष सड़क से सदन तक जाएगा — और जनसमर्थन ही सबसे बड़ा हथियार बनेगा।