रायगढ़

लैलूंगा- कुंजारा एक्सक्लूसिव  : जहां ज़मीन कब्जाने की डिग्री दी जाती है – और आशीष कुमार सिदार हैं इसके कुलाधिपति!…

रायगढ़। भारत में भले ही आईआईटी और एम्स जैसे संस्थानों को श्रेष्ठता का दर्जा दिया जाता हो, लेकिन छत्तीसगढ़ का लैलूंगा अब “कब्जा यूनिवर्सिटी” के रूप में उभर चुका है — और इसके डीन ऑफ डिसऑर्डर, प्रोफेसर ऑफ पजेशन पॉलिटिक्स, ब्रांड अम्बेसडर ऑफ अवैधता हैं श्रीमान आशीष कुमार सिदार

कुंजारा: अब ‘कब्जा गुरु कुल’ बन चुका है : कभी ग्रामीण परंपराओं का सादा इलाका रहा कुंजारा अब “कब्जाधारी प्रतिभाओं का पालना” बन गया है। अगर आप सरकारी ज़मीन हथियाने की कला में निपुण होना चाहते हैं, तो बस लैलूंगा आ जाइए आशीष कुमार सिदार की छत्रछाया में आपको सबकुछ मिलेगा  स्कीम, स्कॉर्पियो और सिक्योरिटी तक!

कोर्स ऑफर:

  • जमीन चिन्हांकन विद फ्री सर्वे
  • दस्तावेज़ निर्माण में झांसा पद्धति
  • प्रशासनिक चुप्पी प्रबंधन
  • ग्रामीण विरोध निष्क्रियकरण विज्ञान

आशीष कुमार सिदार : लैलूंगा का ‘लैंड लेजेंड’ – ग्रामीणों की मानें तो आशीष कुमार सिदार अब कोई साधारण नागरिक नहीं, “सामाजिक यथार्थ का नया प्रतीक” हैं। इन्हें लोग “भूमि सम्राट”, “कब्जाधारी चक्रवर्ती” जैसे खिताबों से नवाज़ने लगे हैं। कुछ तो यह तक कहते हैं कि “अगर अवैध कब्जे के लिए कोई संविधान संशोधन हो, तो प्रस्ताव इन्हीं के नाम से जाना जाए।”

प्रशासन: जहां मौन है, वहीं समझिए मामला गंभीर है – लैलूंगा का प्रशासन अब “संवेदनशील नहीं, सिडार-संवेदी” हो चुका है। शिकायतें मिलती हैं, लेकिन कार्यवाही नहीं होती शायद इसलिए कि फाइल खोलते ही फोटो में आशीष कुमार सिदार की मुस्कुराहट चमक उठती है!

अफसर आते हैं, निरीक्षण करते हैं, सेल्फी लेते हैं और वापस लौट जाते हैं कार्यवाही का वादा कर।

लैंड माफिया का नया अवतार: ‘लैंड आइकॉन’ – कब्जाधारी अब माफिया नहीं, मॉडल बन चुके हैं। आशीष कुमार सिदार के अनुयायी बताते हैं –

“हम किसी सरकारी योजना का लाभ नहीं लेते, हम तो सरकारी ज़मीन ही ले लेते हैं।”

कुंजारा की गलियों में अब चर्चा यह नहीं कि “किसके पास कितनी ज़मीन है”, बल्कि यह होती है कि “कब और किसके नाम से कब्जा लिखा जाएगा।

गरीबों का हक़, सिदार की ताक़त : ग्रामीणों की आंखों में आंसू हैं और उन आंसुओं के पीछे हैं आशीष कुमार सिदार जैसे लोग, जिनके कब्जे के कारण कई ग्रामीणों को खुद की पुश्तैनी ज़मीन से बेदखल होना पड़ा है। लेकिन सरकार और प्रशासन के कानों में वो चीखें नहीं पहुंचतीं शायद क्योंकि वो VIP कॉलर ID से नहीं आतीं।

अगर नोबेल में ‘कब्जा शांति पुरस्कार’ होता…तो यकीनन आशीष कुमार सिदार छत्तीसगढ़ की ओर से नामांकित होते। वो दिन दूर नहीं जब लैलूंगा में उनकी मूर्ति लगेगी – जिसमें लिखा होगा: “यहां बैठकर उन्होंने न्याय को लज्जित किया था।”

“प्रशासन का प्रेम – कब्जाधारियों के लिए स्पेशल स्कीम” : प्रशासनिक तंत्र का मौन आज सिदार जी की सबसे बड़ी ढाल है। ग्रामीणों का दावा है कि प्रशासन और सिदार के बीच एक मौन गठबंधन है, जिसका नारा है “तू कब्जा कर, हम FIR दर्ज कर लेंगे… बस और कुछ मत मांग।”

सवाल लैलूंगा का नहीं, लोकतंत्र का है : लैलूंगा में जो हो रहा है वह केवल ज़मीन कब्जाने की कहानी नहीं, व्यवस्था पर कब्जा करने की रणनीति है। अगर सरकार अब भी नहीं जागी, तो आने वाले सालों में “लैलूंगा” इतिहास में नहीं, “हिस्ट्री ऑफ कब्जा टेक्निक” में पढ़ाया जाएगा और इसका पहला चैप्टर होगा: “द लीजेंड ऑफ आशीष कुमार सिदार!”

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