“जमीन छीनी, रोजगार हड़पा – अब खामोश नहीं रहेंगे!” जिंदल सीमेंट प्लांट के खिलाफ फूटा जनआक्रोश, उग्र युवाओं ने किया घेराव, चेतावनी अब आर या पार…

रायगढ़। जिंदल सीमेंट प्लांट की वादाखिलाफी अब लोगों के सब्र की सीमा लांघ चुकी है। जिस कंपनी को ग्रामीणों ने अपनी पुश्तैनी ज़मीन सौंप दी, उसी कंपनी ने आज उन्हीं का भविष्य रौंदने में कोई कसर नहीं छोड़ी। सोमवार को धनागर गांव के आक्रोशित युवाओं ने जिंदल प्लांट के मुख्य गेट पर उग्र प्रदर्शन कर ऐसा घेराव किया कि प्लांट का संपूर्ण संचालन ठप हो गया।
प्रदर्शनकारियों ने नारेबाज़ी करते हुए गेट पर ताला जड़ दिया और प्लांट परिसर में वाहनों की आवाजाही पूरी तरह रोक दी। ग़ुस्साए युवाओं ने साफ़ कहा – “अब झूठे वादे नहीं सुनेंगे। अगर रोजगार नहीं मिला, तो प्लांट का ताला हमेशा के लिए बंद कर देंगे।”
वादों की कब्रगाह बना जिंदल प्लांट : भूमि अधिग्रहण के समय कंपनी ने ग्रामीणों को रोज़गार, प्रशिक्षण और विकास का सपना दिखाया था। लेकिन वास्तविकता यह है कि स्थानीय युवाओं को रोजगार नहीं मिला, जबकि बाहरी लोगों की खुलेआम भर्ती हो रही है। “हमने खेत दिए थे, भूख नहीं। अब न खेत बचे, न पेट भर रहा है,” – एक आक्रोशित युवक ने कहा।
‘कुचलने की कोशिश, मारपीट और धमकी’ – जिंदल प्रबंधन पर गंभीर आरोप : प्रदर्शन में शामिल देवा पटेल ने बताया कि पूर्व में शांतिपूर्ण प्रदर्शन के दौरान जिंदल कंपनी के अधिकारियों ने जानबूझकर वाहन से प्रदर्शनकारियों को कुचलने का प्रयास किया था और मारपीट कर उन्हें डराने की कोशिश की गई।
“यह विकास नहीं, दमन है। कंपनी का असली चेहरा अब सबके सामने है,” – देवा पटेल।
प्रशासन की चुप्पी पर उठे सवाल – ‘क्या सिस्टम बिक चुका है?’ : ग्रामीणों ने स्थानीय प्रशासन की भूमिका पर भी गंभीर सवाल उठाए।
“कंपनी बार-बार वादा तोड़ रही है, फिर भी कोई कार्रवाई नहीं होती। क्या अफसरशाही जिंदल की जेब में है?” प्रदर्शनकारियों का कहना है कि प्रशासन जानबूझकर आँखें मूंदे बैठा है।
आर-पार की चेतावनी – अब सिर्फ चेतावनी नहीं, निर्णायक संघर्ष होगा : देवा पटेल ने एलान किया –
“अब ज्ञापन नहीं देंगे, अब सीधी कार्रवाई होगी। अगर जल्द रोजगार नहीं दिया गया, तो राष्ट्रीय राजमार्ग (NH) पर चक्काजाम, जिंदल प्लांट की ताला-बंदी और जिला मुख्यालय का घेराव किया जाएगा।”
गांव-गांव में अलख जग चुकी है – “अबकी बार झुकेंगे नहीं, लड़ेंगे और जीतेंगे।”
यह सिर्फ धनागर का ग़ुस्सा नहीं, उन सभी गाँवों की आवाज़ है जिन्हें उद्योगों ने लूटा, सिस्टम ने छला और सरकार ने भुला दिया। अगर जल्द समाधान नहीं हुआ, तो यह चिंगारी आंदोलन की ज्वाला बनकर पूरे प्रदेश को झकझोर देगी।