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“ड्रम में डाल दूंगी!” – प्रेम, प्रताड़ना और पुरुषों की प्लास्टिक-पैक ज़िंदगी का महाकाव्य…

• लेख : ऋषिकेश मिश्रा (स्वतंत्र पत्रकार)

📍स्थान: वह देश, जहां पति होना अब साहसिक खेल है।

शादी अब जीवन-संगिनी का वादा नहीं, बल्कि एक मानसिक युद्ध क्षेत्र में प्रवेश की औपचारिकता बन चुकी है। जहां पत्नी के क्रोध में ‘ड्रम’ की ढक्कन-सी धमक सुनाई देती है, और पति की धड़कनें सुरक्षा किट के बिना जिंदा रहने की प्रार्थना करती हैं।

🔵 नीला ड्रम: घरेलू सामान से मानसिक हथियार तक का अद्भुत सफर : “ड्रम में डाल दूंगी!” यह वाक्य अब क्रोध नहीं, एक प्रायोजित धमकी है।

एक नृशंस घटना में पति की हत्या कर शव को ड्रम में सीमेंट के साथ भरकर छुपाया गया और इस ‘ड्रम-राज’ की नींव यहीं से पड़ी।

अब हालात ऐसे हैं कि:

  • ड्रम की ओर इशारा करना भी “अवैध धमकी” जैसा प्रतीत होता है।
  • कई पतियों ने घर से ड्रम हटवा दिए हैं।
  • और कुछ ने “ड्रम विरोधी आंदोलन” शुरू करने की सोच ली है।

📉 ड्रम विक्रेताओं को अब ग्राहकों से यह पूछना पड़ता है “पानी रखने के लिए लोगे या पति?”

💞 भागती पत्नी, फंसता पति: न्याय का नया समीकरण

आधुनिक विवाह के ट्रेंड में कुछ नया नहीं
विवाह पति से, प्रेम किसी और से, मुकदमा पति पर।

अनेक मामले सामने आए, जिनमें:

  • पत्नी अपने प्रेमी के साथ घर से चली गई,
  • बच्चों को छोड़ दिया,
  • और जाते-जाते पति पर दहेज प्रताड़ना का मुकदमा दर्ज करा दिया।

🔖 पति की सामाजिक प्रतिष्ठा धूल में मिल गई, और कानून ने ‘सुनवाई’ से पहले ही ‘सुनवाई’ कर दी।

📝 आजकल का सामाजिक टैगलाइन है “पत्नी भागी है, तो ज़ाहिर है पति ही दोषी होगा।”

⚖️ दहेज प्रताड़ना कानून: सुरक्षा या सज़ा? वास्तव में, दहेज प्रताड़ना से जुड़े कानूनों का उद्देश्य महिलाओं की रक्षा था परंतु अब कुछ प्रकरणों में यह ‘बदले की गारंटी योजना’ बनते जा रहे हैं।

  • पति कुछ बोले “अहंकार!”
  • चुप रहे “उपेक्षा!”
  • देर से आए “चरित्रहीन!”
  • जल्दी आए “जासूसी!”

👩‍⚖️ निष्कर्ष: मुकदमा हर स्थिति में बनता है।

📊 आंकड़े बताते हैं कि अधिकांश मामलों में आरोप साबित नहीं होते, लेकिन तब तक आरोपी पुरुष का सामाजिक, मानसिक और आर्थिक पतन हो चुका होता है।

🧠 “मर्द को दर्द नहीं होता” पर मानसिक संतुलन अवश्य बिगड़ता जरूर है :“मर्द को दर्द नहीं होता”  यह सिर्फ एक फिल्मी संवाद नहीं, बल्कि एक सामाजिक बहाना है जिससे पुरुषों की चुप्पी को मजबूरी में बदला गया है।

  • पुरुष रोता नहीं – समाज का डर,
  • शिकायत नहीं करता – शर्म का डर,
  • चुप रहता है – मानसिक तनाव का बोझ।

जब कोई पुरुष थाने जाता है तो वहां सबसे पहले पूछा जाता है “आप मज़ाक तो नहीं कर रहे?” ❞

🏛️ सरकारी समाधान: प्रतीक्षा करें, जब तक हालात और न बिगड़ जाएं :

सुझाव संभावित उत्तर
पुरुष आयोग “विचाराधीन है, कोई तत्काल आवश्यकता नहीं।”
हेल्पलाइन सेवा “वर्तमान में महिलाओं को प्राथमिकता।”
झूठे मामलों पर सख्त कार्रवाई “फिलहाल संवेदनशील विषय है।”
जेंडर न्यूट्रल कानून “सामाजिक परिपक्वता की प्रतीक्षा है।”

💣अब पति होना सुरक्षा हेलमेट के बिना खदान में काम करने जैसा है

  • विवाह से पहले सपने दिखाए जाते हैं प्रेम, सम्मान, जीवनभर साथ चलने का।
  • विवाह के बाद कई पुरुषों को मिलती है
    डर, ड्रम, मुकदमे और मानसिक ध्वंस।

👨‍⚖️ वह पुरुष जो अपने परिवार को समर्पित था,
आज अपने ही घर में अपराधी घोषित हो चुका है
केवल इसलिए क्योंकि वह पुरुष है।

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