मजनू बना थाना प्रभारी : सरकारी आवास में ‘रात की ड्यूटी’, पति ने रंगेहाथ पकड़ा, पुलिस तंत्र शर्मसार?…

अंबिकापुर।जब वर्दी का गर्व ‘गंदगी’ में बदल जाए, जब कानून का रक्षक ही चरित्रहीनता की बारूद पर बैठे और जब पूरी पुलिस मशीनरी उस ‘मजनू प्रभारी’ को बचाने में जुट जाए तो समझिए, हम एक सड़ चुकी व्यवस्था की सिर्फ एक बूँद देख रहे हैं।
घटना नहीं, तंत्र की चिरकुटगीरी का सच : मणिपुर थाने के प्रभारी उपनिरीक्षक अखिलेश सिंह को अंबिकापुर में पदस्थ एक महिला अधिकारी के सरकारी आवास में संदिग्ध स्थिति में पति द्वारा पकड़ा गया। साहब कोई सरकारी कार्य करने नहीं गए थे वो ‘प्रेम कर्तव्य’ निभा रहे थे। जब महिला के पति ने दरवाजा खटखटाया, तो अंदर से कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली। जैसे कोई अपराधी छुपा हो — और सच यही था।
112 पर कॉल, फिर भी ‘प्रेमरक्षा’ में जुटे अफसर :पति ने पुलिस बुलाई, गांधी नगर थाना प्रभारी गौरव पांडेय और बाद में कोतवाली प्रभारी मनीष सिंह परिहार मौके पर पहुँचे, लेकिन अंदर घुसे “थाना प्रभारी मजनू” को बचाने में इनका रवैया देखकर लगा कि मानो पूरा महकमा एक इश्क मिशन की सुरक्षा में तैनात है।
ना दरवाजा खुलवाया गया, ना कोई विधिसम्मत कार्रवाई। उल्टा पीड़ित पति को बहलाया गया, जबकि अंदर से आरोपी अधिकारी और महिला अधिकारी बड़े आराम से निकल गए — गिरफ्तारी नहीं, शर्म नहीं, सिर्फ संरक्षण!
सबूत मिटाने में भी सरकारी मशीनरी दक्ष : कार CG 04 MA 9996 — जो कि प्रभारी अखिलेश सिंह की थी — उसे तुरंत मौके से हटवा दिया गया। सबूत मिटाने की इस होड़ में आरक्षक भी शामिल रहा। पति ने जब रिपोर्ट लिखवानी चाही, तो कोतवाली प्रभारी ने सीधे कहा:
“कौन अखिलेश सिंह? कौन-सी गाड़ी? जाओ कोर्ट में मुकदमा करो।”
क्या यही है छत्तीसगढ़ पुलिस का ‘जन सेवा संकल्प’?
या अब वर्दी वालों के लिए अलग न्याय और जनता के लिए अलग अन्याय तय हो चुका है?
एसपी की प्रतिक्रिया – पुराना घिसा वादा :पुलिस अधीक्षक राजेश अग्रवाल ने बयान दिया “मामले की जांच होगी।”
क्या वही जांच जो वक्त काटने, मीडिया का मुंह बंद करने और आरोपी को बचाने की प्रशासनिक प्रक्रिया मात्र होती है?
पीड़ित पति को सिर्फ़ धारा 155 के तहत कोर्ट जाने की सलाह दी गई, और पुलिस ने हाथ झाड़ लिए। मानो वो जनता नहीं, कोई अपराधी हो।
बड़े सवाल लेकिन जवाब कौन देगा :
- क्या थाना प्रभारी अब आधिकारिक रूप से ‘रात्रिकालीन महिला मुलाकातों’ के लिए नियुक्त होते हैं?
- क्या सरकारी आवास अब वेतनभोगी व्यभिचारियों के सुखगृह बन गए हैं?
- क्या पीड़ित की शिकायत को दबाना अब विभागीय जिम्मेदारी बन चुकी है?
- क्या अखिलेश सिंह जैसे अफसर ही छत्तीसगढ़ पुलिस का चेहरा हैं?
निष्कर्ष नहीं, ललकार है :अगर आज यह मामला यूँ ही दबा दिया गया, तो कल हर सरकारी आवास, हर थाने और हर विभाग में चरित्रहीनता, भ्रष्टाचार और सत्ता की दलाली खुलेआम ‘नया आदर्श’ बन जाएगी। यह मामला सिर्फ़ एक पति-पत्नी और तीसरे व्यक्ति की कहानी नहीं है — यह पूरी व्यवस्था में घुसे कीड़े की तस्दीक है।
“जिस वर्दी पर जनता भरोसा करे, वो वर्दी अगर बिस्तरों पर बदनामी का बोझ ढोने लगे, तो क्रांति को ज्यादा देर इंतजार नहीं करना चाहिए।”
RM24 माँग करता है:
- तत्काल थाना प्रभारी अखिलेश सिंह को निलंबित किया जाए।
- कोतवाली प्रभारी और गांधी नगर प्रभारी की भूमिका की स्वतंत्र जांच हो।
- महिला अधिकारी की प्रशासनिक भूमिका की भी निष्पक्ष समीक्षा की जाए।
- पीड़ित को न्यायिक संरक्षण और समर्थन मिले।