राखड़ की उड़ान पर कसा शिकंजा, जिंदल पावर पर ₹2.70 लाख का जुर्माना…
• सुशासन तिहार" में उड़ा JPL का नकाब, एश डाइक से जहरीली राखड़ ने खोली पोल...

रायगढ़। प्रदेश में “सुशासन तिहार” तो चल रहा था, लेकिन जिंदल पावर लिमिटेड (JPL) तमनार की एश डाइक से उठती जहरीली राखड़ आम जनता के फेफड़े भर रही थी। उत्तर रेगांव के निवासियों की चार-चार बार की गई शिकायतों के बाद आखिरकार पर्यावरण विभाग की नींद खुली, और जिंदल पर ₹2.70 लाख का जुर्माना ठोंका गया।
सीएम विष्णुदेव साय के सुशासन अभियान की असली परीक्षा तब हुई जब उत्तर रेगांव के लोगों ने अपनी पीड़ा सरकार के सामने रखी — “हमें बिजली नहीं चाहिए, सांस चाहिए!”
17 अप्रैल को पहुंची पर्यावरण विभाग की टीम ने देखा कि JPL का एश डाइक महज एक प्रदूषण फैक्ट्री बन चुका है। राखड़ इतनी सूखी थी कि हवा के झोंके से गांव के गांव धूल-धक्कड़ में तब्दील हो जाते थे। ग्रीन नेटें फटी हुई थीं, और बाउंड्रीवॉल के नाम पर कागजी दीवारें थीं।
फॉर्मेलिटी नहीं, दोबारा जांच में भी निकला ‘ढाक के तीन पात’
8 मई और फिर 21 मई को जब विभागीय टीम दोबारा गई, तब तक भी स्थिति ज्यों की त्यों थी। वाटर स्प्रिंकलर “जैसे-तैसे” चल रहे थे, और जहां जरूरत थी वहां लगाये ही नहीं गए थे। विंड ब्रेकिंग शील्ड अधूरी और ग्रीन नेट आंधी में उड़ चुकी थी।
एनजीटी का डंडा पड़ा, तब जाकर सरकार चेती
नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (NGT) के आदेशों के पालन में पर्यावरण संरक्षण मंडल ने आखिरकार JPL पर ₹2.70 लाख की क्षतिपूर्ति राशि अधिरोपित की। आदेश स्पष्ट है – 15 दिन में भुगतान करो, नहीं तो अगली कार्यवाही के लिए तैयार रहो।
पर सवाल ये उठता है — क्या केवल जुर्माने से सुधरेगी ‘राख नीति’?
JPL जैसे औद्योगिक घरानों की मनमानी का ये हाल तब है जब सरकार खुद ‘सुशासन’ का ढोल पीट रही है। क्या आम जनता हर बार शिकायत करे, तब ही कार्रवाई होगी? या सरकार अब proactively उद्योगों पर शिकंजा कसेगी?
🔥अब जनता पूछ रही है:
- क्या केवल ₹2.70 लाख की क्षतिपूर्ति इस “जनस्वास्थ्य हत्या” के लिए काफी है?
- क्या JPL को राखड़ मैनेजमेंट की “डेडलाइन” दी जाएगी या अगला निरीक्षण भी एक औपचारिकता बनकर रह जाएगा?
📣 जनता का सवाल है, जवाब सरकार को देना होगा।
अब देखना है कि शासन सच में “सुशासित” है या केवल “सूचनाओं” में। क्योंकि जब दम घुट रहा हो, तब नीति नहीं – कार्रवाई चाहिए।