विकास के हाइवे पर, यह है अवैध कब्जों का गांव

फिरोज अहमद खान (पत्रकार)
बालोद। जिले के बीच से राष्ट्रीय राजमार्ग 930 गुजर रही है। बस इसी के चलते “पुरानी सड़क के किनारे कचरे के ढेर की भी बोली करोड़ों की हो गई” है। बस इसी खेल के चलते इस छोटे से गांव में बाहर से आकर बसे शातिर, यहां अवैध कब्जों का आशियाना बनाने की जुगत लगा रहे है। सबसे शर्मनाक बात तो यह है कि ऐसे ऐसे शातिरों की जूती चाट रहे है जिले के सरकारी अफसर। जो बड़ा ही ऊहापोह मचाने वाला मामला बन गया है। आपको बता दें कि जिले के प्रमुख अखबारों और प्रतिष्ठित न्यूज पोर्टलों में ऐसे अवैध कब्जों का मामला प्रमुखता से उठाया भी जा रहा है लेकिन जिला प्रशासन की चुप्पी समझ से परे है।
मामला जिले के डौंडी तहसील अंतर्गत कुसुमकसा ग्राम पंचायत क्षेत्र में वन विभाग के वनोपज जांच नाके का है। जिस पर बालोद डीएफओ बलभद्र सरोटे, दल्ली राजहरा रेंजर मूलचंद्र शर्मा तथा कुसुमकसा के डिप्टी रेंजर चौधरी की भूमिका सवालों के घेरे में है। वही वे बताते है कि राष्ट्रीय राजमार्ग के निर्माण के चलते यह नाका अब राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण के जिम्मे हो गया है। वही राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण के एसडीओ टीकम ठाकुर से पूछने पर उनके द्वारा गोल मोल जवाब दिया जाता है। वे कभी कहते है कि यह जमीन वन विभाग की है तो कभी कहते है कि राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण की। उनके इसी “हकलाने” की वजह से हमने इलाके के एसडीएम नूतन कुमार कंवर को इस मामले की जानकारी दी। जिसके बाद उन्होंने तत्काल राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण के एसडीओ टीकम ठाकुर को निर्देश दिए कि केवल 2 दिन के भीतर अवैध कब्जे को ध्वस्त किया जाए। लेकिन राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण के एसडीओ टीकम ठाकुर की मंशा अवैध कब्जे को हटवाने की नहीं है शायद वे चाहते है कि गांव के लोग सड़क के बीच ही अपनी गुमटियां लगा लें।
इलाके में चर्चा है कि “जिले के रिश्वत की आग में रोटी सेंकने वाले पत्रकार इस मामले को देख भी नहीं रहे है जो साइकिल में सुखी लकड़ी घर ले जा रहे ग्रामीण को लकड़ी तस्कर तक बना देते है।” सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक बालोद जिले के पूर्व कलेक्टर इंद्रजीत सिंह चंद्रावल को भी इसकी जानकारी थी लेकिन उन्होंने भी खुद चुप्पी साध ली थी। जिससे ये समझ आता है कि वन विभाग के नाके पर अवैध कब्जा करने वाले व्यक्ति के हौंसले कितने बुलंद होंगे कि जिले के कलेक्टर तक को हरकत करने से रोक दे। साफ जाहिर है ऐसे अवैध कब्जाधारी से जिले क्या प्रदेश के अवैध कब्जाधारियों को ट्रेनिंग की खासा जरूरत है। जो उन्हें अवैध कब्जा कर संबंधित अधिकारियों के मुंह पर खुद के बासी मुंह का थूक लगा टेप चिपका देता हो। जिसके बाद आंख, नाक और कान सब बंद हो सके।
गांव के मुख्य साप्ताहिक बाजार कहलाने वाली जगह पर ही गांव के बाहर से आए लोगो द्वारा अवैध कब्जा कर बड़ी बड़ी इमारतें तान रखी है। आपको बता दें कि बाजार में ही एक व्यक्ति ने अवैध कब्जा कर बूचड़खाना तक खोल रखा है। जहां बिना स्वास्थ्य परीक्षण किए मुर्गियों और भेड़ बकरियों को काट उनका मांस सीधे साधे ग्रामीणों को बेच दिया जाता है जिसके बाद उनके शरीर में अनेक रोग घर कर लेते है जिसके बाद वे अनजाने में ही काल के मुंह में ही अनायास समा जाते है। ग्रामीणों ने पिछले कई वर्षों से जिला प्रशासन सहित क्षेत्रीय विधायक को भी इस संबंध में शिकायत की किंतु पूर्व मंत्री तथा वर्तमान विधायक श्रीमती अनिला भेड़िया भी इस मामले पर कुछ भी बोलने से बचती नजर आती है।
आपको बता दे कि माननीय सुप्रीम कोर्ट ने भी देश में अवैध कब्जों पर सख्त निर्देश दिए हुए है जिसमें अवैध कब्जों को जल्द से जल्द ध्वस्त करने कार्यवाही की बात कही है। लेकिन “शर्मनाक है कि जिले के जिम्मेदार अधिकारी भी माननीय सुप्रीम कोर्ट के आदेश को धता बता रहे है।” इसलिए ही ग्राम में जगह जगह अवैध कब्जों की बाढ़ सी आ है। अब देखना होगा कि जिले में तबादले से आई कलेक्टर श्रीमती दिव्या उमेश मिश्रा को यह मामला संज्ञान में कब आता है और क्या बालोद की नई कलेक्टर साहिबा अपने कर्तव्य का ईमानदारी से पालन कर पाएगी या नहीं।
ग्रामीणों का मानना है कि गांव में स्थानीय निवासी अपने घर की छत पक्की नहीं कर पाए किंतु बाहरी राज्यों और जिलों से आए परदेशी अवैध कब्जा कर गगनचुंबी इमारतें खड़ी कर रहे है वही स्थानीय प्रशानिक अधिकारी भी इन अवैध कब्जाधारियों को खुला संरक्षण देने में लगे हुए है। इससे लोग खासे नाराज है, उनका कहना है कि जिला प्रशासन फिलहाल कुसुमकसा गांव से ही अवैध कब्जे पर कब्जा हटाने कार्यवाही शुरू कर दे।