“लैलूंगा में शासकीय भूमि पर भू-माफिया का कब्जा! 100 साल पुराना रास्ता बेचने की साजिश, मोहल्लेवासी भड़के -SDM को सौंपा ज्ञापन…”

रायगढ़। 4 जून 2025। जिले के लैलूंगा नगर पंचायत में भू-माफिया का दुस्साहस अब सर चढ़कर बोल रहा है। वार्ड नंबर 11 के शांति नगर, पटेल मोहल्ला के लोग तब भौंचक रह गए जब उन्हें पता चला कि जिस रास्ते से उनकी पीढ़ियाँ एक सदी से ज्यादा समय से गुजरती रही हैं — अब उसे भी निजी ज़मीन बताकर प्लॉट काटकर बेचने की साजिश रची जा रही है।
खसरा नंबर 624 की शासकीय आबादी भूमि में यह रास्ता दर्ज है, लेकिन स्थानीय रसूखदार भू-माफिया गुलाब राय सिंघानिया ने इसे भी अपने कब्ज़े में बताते हुए बेशर्मी से रास्ते को खत्म कर निजी प्लॉट में तब्दील करने की चाल चल दी है।
🚨 रास्ता बेचने की साजिश: अब आम जनता का धैर्य टूटा!
इस खुली लूट और सरकारी संपत्ति की बंदरबांट के खिलाफ अब मोहल्ले के लोग उठ खड़े हुए हैं। सैकड़ों नागरिकों ने एसडीएम सुश्री अक्षा गुप्ता को ज्ञापन सौंपकर चेतावनी दी है —
“अगर रास्ता छीना गया, तो हम चुप नहीं बैठेंगे। यह सिर्फ ज़मीन नहीं, हमारा हक, हमारी आज़ादी है!”
💣 भू-माफिया को कौन दे रहा है संरक्षण?
इस पूरी साजिश में सबसे बड़ा सवाल यह है कि शासकीय ज़मीन को कोई निजी बताकर कैसे बेच सकता है? क्या पटवारी, तहसीलदार, नगर पंचायत, सीएमओ और राजनेताओं की आंखों में पट्टी बंधी हुई है या जेबें भरी हुई हैं?
जनता पूछ रही है — “गुलाब राय सिंघानिया के पीछे कौन है?”
🧭 सिर्फ रास्ता नहीं, ये है भविष्य का रास्ता रोकने की कोशिश!
पटेल मोहल्ला एक कृषि प्रधान इलाका है, जहां किसानों की फसलें, बैलगाड़ियों से लेकर आधुनिक ट्रैक्टर तक, इसी रास्ते से निकलते हैं। इस रास्ते को बंद करना, पूरे मोहल्ले को घुटन में धकेलना है।
यह रास्ता 100 साल से ज्यादा पुराना है, जो सरकारी रिकॉर्ड में दर्ज है — लेकिन अब इसे मिटाने की साजिश रची जा रही है।
📢 प्रशासन ने मानी बात, पर कार्रवाई कब?
एसडीएम सुश्री अक्षा गुप्ता ने कहा है —
“रास्ते की बिक्री की शिकायत गंभीर है। जांच के लिए पटवारी व तहसीलदार को भेजा जाएगा।”
सीएमओ पुष्पा खलखो का कहना है —
“यह रास्ता शासकीय आबादी भूमि में स्थित है। नक्शा सुधारने और स्थिति स्पष्ट करने के निर्देश दिए गए हैं।”
लेकिन जनता अब सिर्फ आश्वासन नहीं चाहती — जनता अब एक्शन चाहती है!
⚖️ कानून क्या कहता है? सुप्रीम कोर्ट का स्पष्ट आदेश है —
“यदि किसी मोहल्ले का और कोई रास्ता नहीं है, तो ज़मीन चाहे निजी हो या सरकारी — राह देने की बाध्यता होगी।”
तो फिर यहां शासकीय भूमि में बने रास्ते को कौन बंद कर सकता है? यह सीधा कोर्ट की अवमानना है।
🔥 जनप्रतिनिधियों की चुप्पी – साजिश में भागीदारी या डर?
पूरे घटनाक्रम में स्थानीय जनप्रतिनिधियों की खामोशी हैरान करने वाली है।
क्या वे डर के मारे चुप हैं या डील का हिस्सा बन चुके हैं?
जनता अब पूछ रही है —
“जब जमीन लूटी जा रही है, तब हमारे चुने हुए नेता कहां हैं?”
लैलूंगा में सरकारी जमीन पर कब्जा और सार्वजनिक रास्ते को बेचने की कोशिश, सिर्फ एक मोहल्ले का मामला नहीं, यह पूरे छत्तीसगढ़ में फैलते ‘भू-माफिया नेटवर्क’ का एक और चेहरा है।
अब देखना है कि प्रशासन भू-माफिया के खिलाफ कार्रवाई करता है या जनता को सड़क पर उतरना पड़ेगा।
यह खबर सिर्फ खबर नहीं — एक सवाल है सत्ता और सिस्टम से:
🛑 “क्या जनता की ज़मीन सुरक्षित है?”
🛑 “क्या आवाज़ उठाने वालों की सुनवाई होगी?”
🛑 “क्या भू-माफिया पर बुलडोज़र चलेगा या गरीब की उम्मीदों पर?”