रायगढ़

लैलूंगा : सलखिया में ‘राजनीतिक गुण्डागर्दी’ की पराकाष्ठा: विधवा महिला के घर पर कब्जा, जानलेवा हमला, प्रशासन मौन…

रायगढ़। जिले के लैलूंगा तहसील के ग्राम सलखिया में आज दोपहर एक विधवा महिला मली भोय पर सत्ता-संरक्षित गुण्डागर्दी का ऐसा हमला हुआ जिसने पूरे इलाके को दहला दिया। आरोप है कि अंशु देव आर्य, जो कभी छत्तीसगढ़ सभा का अध्यक्ष रहा है और अब विवादों के दलदल में घिरा व्यक्ति बन चुका है, अपने गुर्गों के साथ मली भोय के घर में घुस आया, कब्जा जमाने की नीयत से मकान तोड़ने लगा और जब विरोध हुआ तो लाठी-डंडों से जानलेवा हमला कर दिया।

कब्जा, हमला और धमकी — सब कुछ ‘प्रशासनिक आदेश’ के नाम पर

गवाहों के अनुसार, अंशु देव ने खुलेआम कहा कि यह कार्रवाई “तहसीलदार के आदेश” पर हो रही है और उसे “सीएम मैडम तक पहुंच” प्राप्त है। यह बयान प्रशासन की साख को सीधा चुनौती देता है। अब सवाल यह उठता है कि क्या तहसील स्तर पर अधिकारियों के नाम लेकर कोई भी राजनीतिक ठग आम जनता पर कहर बरपा सकता है?

हमले में मली भोय सहित कई गंभीर रूप से घायल

मारपीट में मली भोय के सिर व हाथ में गंभीर चोटें आई हैं। उन्हें बचाने दौड़े बंशीधर भोय, चंद्रशेखर भोय, सुनीता, बिंदु और पान ढाली भोय पर भी हमला हुआ। स्थिति इतनी भयावह थी कि यह घटना एक उन्मादी भीड़तंत्र में तब्दील हो गई, जिसमें निर्दोष ग्रामीणों को पीटा गया और उनकी आवाज को कुचला गया।

राजनीतिक अपराधी का सुरक्षा कवच?

ग्रामीणों ने बताया कि अंशु देव आर्य पर पहले से ही कई गंभीर आपराधिक मामले दर्ज हैं, और वह जमानत पर चल रहा है। उस पर करोड़ों के गबन के आरोप हैं, जिसके चलते वह आर्य सभा से निष्कासित किया जा चुका है। सवाल यह भी है कि आखिरकार एक आपराधिक पृष्ठभूमि वाला व्यक्ति खुलेआम कैसे कह सकता है कि “हमारे ऊपर सरकार है”?

मकान वैध, दस्तावेज पक्के, फिर भी विधवा का हक छीना गया

मली भोय का मकान उनके वैध पट्टे और मुआवजा राशि से बना है, जब सड़क निर्माण में उनका पुराना मकान चला गया था। दस्तावेज उनके पास मौजूद हैं। इसके बावजूद इस तरह का हमला यह दर्शाता है कि गरीब, महिला और आदिवासी आज भी कानूनी सुरक्षा से कोसों दूर हैं।

प्रशासन की भूमिका संदिग्ध, पुलिस कार्रवाई शून्य

स्थानीय पुलिस घटना के बाद मौके पर पहुंची जरूर, लेकिन अभी तक मुख्य आरोपी अंशु देव और उसके साथियों की गिरफ्तारी नहीं हो सकी है। प्रशासन की यह निष्क्रियता कई सवाल खड़े कर रही है—क्या वाकई में प्रशासन राजनीतिक दबाव में काम कर रहा है? या फिर दोषियों को समय दिया जा रहा है सबूत मिटाने के लिए?

जनआक्रोश की ज्वाला: प्रदर्शन की चेतावनी

घटना के बाद गांव में आक्रोश फैल गया है। सामाजिक संगठनों और महिला समितियों ने इस घटना को ‘राजनीतिक हिंसा’ करार देते हुए कलेक्टर कार्यालय के घेराव की चेतावनी दी है। ग्रामीणों की मांग है कि—

  • आरोपियों की तत्काल गिरफ्तारी हो
  • तहसीलदार की भूमिका की न्यायिक जांच हो
  • पीड़िता को सुरक्षा एवं मुआवजा मिले
  • प्रशासनिक संरक्षण में पल रहे गुंडों पर कड़ी कार्रवाई की जाए

यह हमला केवल मली भोय पर नहीं, बल्कि एक पूरी व्यवस्था पर सवाल है।
क्या विधवा, गरीब और आदिवासी महिला का घर अब ‘सामुदायिक भवन’ बनाने के नाम पर हथियाया जाएगा?
क्या ‘सीएम तक पहुंच’ बताकर कोई भी खुलेआम कानून तोड़ सकता है?
क्या पुलिस और प्रशासन सिर्फ दर्शक बनकर रह जाएगा?

अगर इस मामले में तत्काल और कठोर कार्रवाई नहीं हुई, तो यह लोकतंत्र नहीं, “राजनीतिक जंगलराज” की ओर बढ़ता समाज कहलाएगा।

खबर यह भी याद दिलाती है — यदि आज मली भोय चुप करा दी गईं, तो कल हर आम नागरिक की बारी है।

कानून को अगर दबाव के नीचे झुकने दिया गया, तो फिर न्याय की कोई उम्मीद नहीं बचेगी।

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