लैलूंगा में भीषण सड़क हादसा : दो युवकों की मौके पर मौत, प्रशासन की लापरवाही पर उठा सवाल…

रायगढ़। जिले में रविवार शाम लैलूंगा थाना क्षेत्र के कूपाकानी डामर प्लांट के पास हुई एक दर्दनाक सड़क दुर्घटना ने पूरे क्षेत्र को झकझोर कर रख दिया। दो तेज रफ्तार मोटरसाइकिलों की आमने-सामने टक्कर में दो युवकों की मौके पर ही मौत हो गई, जबकि दो अन्य गंभीर रूप से घायल हैं। यह हादसा सिर्फ एक सड़क दुर्घटना नहीं, बल्कि प्रशासनिक संवेदनहीनता और स्वास्थ्य व्यवस्था की लाचारी का आईना भी बन गया है।
प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार, दोनों मोटरसाइकिलें इतनी तेज गति में थीं कि चालक सामने से आ रहे वाहन को नियंत्रित नहीं कर सके और जोरदार टक्कर हो गई। टक्कर इतनी भयानक थी कि दोनों गाड़ियाँ चकनाचूर हो गईं और सवार दूर जा गिरे।
अगर ‘एक अफसर’ न होता, तो शायद चारों की जान जाती : हादसे की भयावहता देख आसपास के ग्रामीण घटनास्थल पर पहुंचे, लेकिन एम्बुलेंस दूर-दूर तक नज़र नहीं आई। इस बीच वरिष्ठ कृषि विकास अधिकारी फ़लेश्वर पैंकरा ने मानवीय संवेदनशीलता दिखाते हुए अपनी निजी गाड़ी से घायलों को अस्पताल पहुँचाया। यदि समय रहते यह कदम नहीं उठाया जाता, तो घायलों की हालत और भी नाजुक हो सकती थी।
एम्बुलेंस नहीं, जिम्मेदार कौन? : स्थानीय लोगों में भारी आक्रोश है। लैलूंगा जैसे सुदूर अंचल में 24 घंटे उपलब्ध एम्बुलेंस सेवा का न होना, प्रशासन की नाकामी का सबसे बड़ा प्रमाण है। ग्रामीणों का कहना है कि हर दुर्घटना के बाद “भाग्य और किसी भले इंसान की मदद” पर निर्भर रहना आम बात हो गई है।
एक की पहचान, दूसरा अब भी ‘अनजान’ : हादसे में जान गंवाने वालों में एक की पहचान घोघरा (जशपुर) निवासी युवक के रूप में हुई है, जबकि दूसरे मृतक की शिनाख्त अभी तक नहीं हो सकी है। पुलिस मौके पर पहुंची और शवों को पोस्टमार्टम के लिए भेजा गया। घायलों का इलाज प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र लैलूंगा में जारी है।
सवाल दर सवाल: क्या लाइलाज हो चुका है सिस्टम? : यह हादसा कई बड़े सवाल खड़े करता है:
- क्या सड़कों पर सुरक्षित सफर करना अब भी मुमकिन है?
- प्रशासन आखिर कब तक एम्बुलेंस जैसी बुनियादी सुविधा देने से मुंह मोड़े रहेगा?
- तेज रफ्तार, खराब सड़कें और बिना हेलमेट – कब तक हम लापरवाही की कीमत ज़िंदगी से चुकाते रहेंगे?
‘आपदा’ नहीं, ‘लापरवाही’ थी असली वजह :यह दुर्घटना कोई ‘दुर्भाग्य’ नहीं थी, बल्कि प्रणालीगत लापरवाही और बुनियादी व्यवस्था की विफलता का परिणाम थी। यह वह क्षण है जब हमें सिर्फ शोक नहीं, शक और सवाल भी करना चाहिए — ताकि अगली जान जाने से पहले सिस्टम जाग जाए।