रायगढ़ के “थाने में न्याय नहीं, साजिश पल रही है ; RTI की चुप्पी इसका सबसे बड़ा सबूत है…!”

रायगढ़। छत्तीसगढ़ के रायगढ़ शहर में ऐसा मामला सामने आया है, जो सिर्फ दस्तावेज़ों की हेराफेरी नहीं, बल्कि पूरे सिस्टम के गिरने की गवाही है। एक आम नागरिक ने जब सच जानने के लिए RTI के तहत दस्तावेज़ मांगे, तो पुलिस-प्रशासन के जिम्मेदार अफसरों ने मिलकर खामोशी ओढ़ ली। न जवाब मिला, न कार्रवाई हुई बस एक साजिश को दबाने की कोशिशें तेज हो गईं।
एक दिन पहले तैयार किया गया फर्जी दस्तावेज़ – क्या यह इत्तेफाक था? :जिस संपत्ति की रजिस्ट्री को आधार बनाकर एक व्यक्ति के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की गई, उससे ठीक एक दिन पहले सरकारी रिकॉर्ड में नया दस्तावेज़ घुसा दिया गया, जिसकी सत्यता पर गंभीर सवाल हैं। यह महज ‘दस्तावेज़ी गलती’ नहीं थी बल्कि पूर्वनियोजित कूटनीति, जिसमें रिकॉर्ड को जानबूझकर बदला गया।
प्रश्न उठता है – ऐसा करने की अनुमति किसने दी? और आज तक उसके खिलाफ कार्रवाई क्यों नहीं हुई?
RTI बना मज़ाक – जवाब मांगना अब अपराध है?सूचना के अधिकार अधिनियम 2005 के तहत एक नागरिक ने 22 अप्रैल को आवेदन दिया।
RTI के तहत जवाब देने की अंतिम तिथि 21 मई थी लेकिन रायगढ़ का संबंधित थाना आज तक चुप है।
न सूचना दी, न कोई संपर्क, न जवाबदारी क्या ये लोकतंत्र है या सत्ताश्रित चुप्पी का जंगलराज?
RTI अधिनियम की अवहेलना केवल प्रशासनिक लापरवाही नहीं, बल्कि न्याय और संविधान का खुला अपमान है।
दस्तावेज़ी हेराफेरी का खेल – लेकिन असली चेहरों पर पर्दा :एक व्यक्ति को अपराधी साबित करने वाले सारे दस्तावेज़ सरकारी रिकॉर्ड से आए। लेकिन उन्हीं दस्तावेज़ों को तैयार करने वाला अब तक ‘नियंत्रण’ से बाहर है। न उसे आरोपी बनाया गया, न जांच में नाम जोड़ा गया। यह कैसे संभव है कि नकली दस्तावेज़ के आधार पर मामला कायम हो जाए, लेकिन उन्हें बनाने वाले पर कार्रवाई न हो? इससे बड़ा प्रशासनिक पक्षपात और क्या हो सकता है?
पूरे सिस्टम पर सवाल – जांच को मोड़ना, दोषी को बचाना :रायगढ़ में अब एक नया प्रशासनिक मॉडल विकसित हो रहा है:
🔹 दस्तावेज़ घपले को जांच से बाहर रखो,
🔹 आरोपी तय करो सत्ता की सहूलियत से,
🔹 RTI को नजरअंदाज़ करो,
🔹 और जिसे बचाना है, उसका नाम ही मत आने दो!
यह केवल एक व्यक्ति की लड़ाई नहीं है – यह उस सिस्टम के खिलाफ लड़ाई है जो सच बोलने वाले को खामोश करने और झूठ फैलाने वालों को संरक्षित करने में जुटा है।
अब नहीं रुकेगी आवाज़, सवाल पूछे जाएंगे जवाब मांगे जाएंगे :
- जब सरकारी अभिलेख में फर्जी दस्तावेज़ चुपचाप दर्ज हो सकते हैं,
- जब RTI का जवाब देना “गैरज़रूरी” समझा जा सकता है,
- जब जांच अधिकारी सिर्फ नाम चुनकर कार्रवाई करते हैं तो फिर जनता का लोकतंत्र किस भरोसे जिए?
अब यह सिर्फ RTI का मामला नहीं यह लोकतंत्र का इम्तिहान है :
अगर अब भी जनता नहीं जागी,
तो अगली बार आपके खिलाफ भी फर्जी दस्तावेज़ बनेंगे और कोई जवाब नहीं देगा।