हिंदी पत्रकारिता दिवस : बिके हुए माइक के मुंह पर तमाचा…!

30 मई – ‘उदंत मार्तंड’ की जयंती नहीं, उस आग की विरासत है, जिसमें अंग्रेज़ी हुकूमत की छाती पर हिंदी पत्रकारिता ने पहला सवाल दागा था।
और आज?
- आज वही पत्रकारिता सत्ता की जूतियाँ पॉलिश कर रही है।
- कॉर्पोरेट की गोदी में बैठकर TRP का च्यवनप्राश चाट रही है।
- जिसे बोलना था जनता की तरफ से, वो अब बोल रही है मालिक के इशारे पर।
❌ ये पत्रकारिता नहीं, दलाली है!
- पत्रकार अब सत्य का सिपाही नहीं, बल्कि पैकेज का पंडा है।
- चैनल अब न्यूज़ रूम नहीं, ‘वॉर रूम’ हैं — विपक्ष को गाली देने के लिए।
- रिपोर्टर अब माइक लेकर नहीं जाता खेत-खदान में, बल्कि चलता है एसी दफ्तर से प्रेस नोट पढ़ने।
सवाल पूछना अब बगावत हो गया है।
और बगावत अब पत्रकारिता की आखिरी उम्मीद है।
🩸 जनता मर रही है, पत्रकार चुप है!
- आदिवासी उजड़ रहे हैं, लेकिन हिंदी मीडिया को धर्म और ड्रामा दिखाना है।
- किसान कर्ज़ में डूबे हैं, लेकिन पत्रकार मंत्री के हलवे की रेसिपी दिखा रहा है।
- मज़दूर भूखा है, लेकिन एंकर 56 इंच के सीने पर कविता पढ़ रहा है।
क्या यही पत्रकारिता है? नहीं! यह शर्म है, कलंक है, धोखा है!
📢 हिंदी पत्रकारिता का अर्थ क्या है?
हिंदी में पत्रकारिता करना सिर्फ भाषा का चयन नहीं है,
यह एक जनपक्षधर घोषणा है कि –
“हम उस भारत के साथ खड़े हैं, जिसे मुख्यधारा ने हाशिये पर फेंक दिया!”
हिंदी पत्रकारिता का मतलब है —
आदिवासी का दर्द लिखना,
मज़दूर की चीख को हेडलाइन बनाना,
खदान की धूल से सत्ता का पर्दा साफ करना।
🔥 अब वक्त है — विद्रोह की पत्रकारिता का!
हमें चाहिये:
- ‘सेल्फी पत्रकार’ नहीं, बलिदानी पत्रकार
- ‘PR एजेंट’ नहीं, जनप्रतिनिधि पत्रकार
- ‘चाटुकार एंकर’ नहीं, सत्ता से सवाल करने वाले शेर
जिसने ‘उदंत मार्तंड’ छापा था, उसके पास ना पैसा था, ना संसाधन —
सिर्फ एक आग थी, और वही आग आज फिर चाहिए!
🛑 याद रखो!
“अगर पत्रकारिता सत्ता से डरने लगे, तो वो पत्रकारिता नहीं, दलाली है।
और अगर सच बोलने की कीमत मौत है, तो मौत मंज़ूर है — पर चुप्पी नहीं!”
✊ कलम बिके नहीं, लड़े!
30 मई को सिर्फ माल्यार्पण मत करो,
सच बोलो, झूठ से लड़ो, बिके हुए मीडिया को ललकारो!
ताकि अगली पीढ़ी यह न कहे —
“जब लोकतंत्र घायल था,
तब हिंदी पत्रकारिता सत्ता की गोद में सोई हुई थी!”
ये लेख सिर्फ पढ़ो मत, इसे हथियार बनाओ।
प्रत्येक कलम, प्रत्येक माइक, प्रत्येक मंच से गूंजे
“अब हिंदी पत्रकारिता बिकेगी नहीं, बगावत करेगी!”
ऋषिकेश मिश्रा (स्वतंत्र पत्रकार)