बस्तर

मुर्गा-भात न परोसा तो लोकतंत्र भून डाला…! बस्तर में सुशासन अब ‘चिकन डिश’ पर चलता है…!!

बस्तर की धरती से एक क्रांतिकारी खबर आई है—अब सरकार की नीतियाँ न लोक कल्याण से तय होती हैं, न संविधान से—यहाँ अब सब कुछ तय होता है… मुर्गा-भात से!

जी हां, लोहंडीगुड़ा के आदिवासी सरपंच ने जब मुख्यमंत्री के बेटी-दामाद (राज्य अतिथि) के लिए “Nचिकन, मटन और भात की थाली” सजाने से इनकार किया, तो SDM साहब ने संविधान की जगह कड़ाही गरम कर दी!

प्रशासन का नया नियम :

“जो थाली नहीं सजाएगा, उस पर धाराएं लगाई जाएंगी…।”

लोहंडीगुड़ा के एसडीएम नीतीश वर्मा, जो अब शायद “मुख्यमंत्री के दामाद आहार योजना” के नोडल अधिकारी बन चुके हैं, ने चित्रकोट के सरपंच को आदेश दिया – “पंचायत नाके की कमाई से मटन-भात का इंतजाम करो, वरना नाके को ताला लग जाएगा!”

सरपंच ने भी ऐतिहासिक जवाब दिया – “हम सरपंच हैं, सरकारी हलवाई नहीं!”

…और इसी जवाब से SDM साहब की भूख मर गई और लोकतंत्र भूना गया।

नतीजा?

  • पंचायत का नाका बंद
  • सरपंच और ग्रामीणों पर FIR और धाराएं? ऐसी जैसे उन्होंने कोई आतंकवादी साजिश रच दी हो—126(2), 189(2)!

ये FIR नहीं, ‘भात-प्रेरित बदला’ है…

ग्रामीणों का सवाल भी लाजवाब था : “अगर आपके खास मेहमान को मुर्गा भात चाहिए, तो अपनी जेब से दीजिए… पंचायत कोई कैटरिंग सर्विस नहीं है!” लेकिन अफसरशाही की भूख तो आदिवासी आत्मसम्मान से बड़ी निकली।

  • सवाल पूछने वाले ही दोषी ठहरा दिए गए।
  • और स्वागत न करने वाले “गुनहगार” बन गए।

दीपक बैज का तगड़ा तड़का : प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष दीपक बैज ने कहा – “मुख्यमंत्री के बेटी-दामाद हमारे भी हैं, बस्तर में अतिथि को देवता मानते हैं। लेकिन जबरदस्ती चिकन मांगना और इनकार पर एफआईआर ठोक देना, ये कौन सा प्रशासनिक संस्कार है?”

बैज बोले : “बस्तर के आदिवासी रसोई के गुलाम नहीं हैं। ये संविधान को थाली में परोसने का प्रदेश नहीं!”

एसडीएम साहब की सफाई भी भाप की तरह उड़ गई :
वो बोले—”मैंने तो कुछ कहा ही नहीं था!”
अब सवाल उठता है :
“तो नोटिस किसने भेजा? FIR किसकी भूख का नतीजा है?”
या फिर शासन-प्रशासन अब गैस पर नहीं, अफवाहों की आंच पर चलता है?

यह खबर नहीं, लोकतंत्र का कुकिंग शो है : जहां अतिथि सेवा के नाम पर सरपंच तले जा रहे हैं, और अफसर कानून को ग्रेवी में डुबोकर चबाते हैं।

बस्तर में सुशासन की नई परिभाषा यही है :

“जो मुर्गा देगा, वो नेता बनेगा।
जो मटन से इंकार करेगा, वो जेल जाएगा…।”

अब संविधान का स्थान मेन्यू कार्ड ने ले लिया है। और अफसरशाही की भूख में आदिवासी आत्मसम्मान की हड्डियाँ तक चबाई जा रही हैं।

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