“वायरल वीडियो से बर्बाद हुई साख, गांव की पंचायत में हुआ चरित्र-वध, और अंत में डॉक्टर ने चुन ली मौत…”

दुर्ग। जिले में रविवार को एक आयुर्वेदिक डॉक्टर बी.के. राठौर ने आत्महत्या कर ली। वह कांकेर जिले के चारामा ब्लॉक के प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में पदस्थ थे। हाल ही में उनका एक वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हुआ था, जिसमें उन्हें एक आदिवासी युवती के साथ आपत्तिजनक स्थिति में दिखाया गया था। वायरल होते ही वीडियो को लेकर गांव में पंचायत बिठाई गई, डॉक्टर को समाज से बहिष्कृत करने की बात उठी, और युवती ने इलाज के नाम पर डॉक्टर द्वारा ब्लैकमेलिंग का आरोप भी लगाया।
सुसाइड नोट में पंचायत और बदनामी का उल्लेख : सूत्रों के अनुसार, डॉक्टर राठौर ने अपने सुसाइड नोट में यह स्पष्ट रूप से लिखा है कि सोशल मीडिया पर फैली बदनामी, गांव की सामाजिक बैठक में हुए सार्वजनिक अपमान, और मानसिक प्रताड़ना ने उन्हें इस हद तक तोड़ दिया कि वे जीने की इच्छाशक्ति खो बैठे। डॉक्टर शनिवार को चारामा से अपने घर भिलाई लौटे थे। रविवार सुबह उनका शव छावनी थाना क्षेत्र स्थित उनके निवास में फंदे से लटका मिला।
सोशल मीडिया ट्रायल और डिजिटल मॉब जस्टिस : खतरनाक संस्कृति का परिणाम – यह घटना केवल आत्महत्या नहीं, बल्कि उस उभरती डिजिटल हिंसा का परिणाम है जिसमें आरोप लगते ही व्यक्ति को समाज और सोशल मीडिया बिना जांच-पड़ताल किए दोषी मान लेता है।
आज तक यह स्पष्ट नहीं हुआ कि वायरल वीडियो की प्रामाणिकता की जांच हुई या नहीं। युवती द्वारा लगाए गए आरोपों की पुलिस जांच लंबित है। इसके बावजूद डॉक्टर को पहले समाज ने और फिर इंटरनेट ने मानसिक रूप से घेर लिया।
कानूनी प्रक्रिया बनाम भीड़ का न्याय :
- क्या वायरल वीडियो साक्ष्य होते हैं, या अफवाहों के हथियार?
- क्या बिना FIR और फॉरेंसिक जांच के किसी को अपराधी मान लेना उचित है?
- क्या पंचायतें अब व्यक्तिगत मामलों का फैसला सुनाने का अधिकार रखती हैं?
पुलिस जांच जारी : दुर्ग पुलिस की टीम, छावनी थाना प्रभारी और सीएसपी मौके पर पहुंचे। शव को पोस्टमार्टम के लिए भेजा गया है। दुर्ग पुलिस प्रवक्ता पद्मश्री तंवर ने पुष्टि की कि पुलिस ने धारा 174 के तहत मर्ग कायम किया है और सुसाइड नोट की जांच की जा रही है। युवती और डॉक्टर के बीच के संवाद, वीडियो की जांच, और आरोपों की सत्यता को लेकर फॉरेंसिक रिपोर्ट का इंतजार है।
समाज के लिए यह आईना है :
- अगर वीडियो झूठा था, तो ये आत्महत्या हत्या बन जाती है।
- अगर आरोप सही थे, तो न्याय की प्रक्रिया अदालत तय करती है, पंचायत और फेसबुक नहीं।
- किसी के चरित्र को बिना सुनवाई के नष्ट कर देना क्या नया अपराध नहीं है?
अब वक्त है कि मीडिया, समाज और कानून यह तय करें कि
“आरोपी” और “अपराधी” में फर्क होता है। वरना अगली लाश भी सोशल मीडिया की टाईमलाइन पर ही मिलेगी।