तमनार में मासूम की मौत और सिस्टम की चुप्पी: हादसे के बाद जब जवाब माँगा गया, तो थानेदार ने फोन तक उठाना जरूरी नहीं समझा…!

रायगढ़। जिले के तमनार विकासखंड के कसडोल गांव में शनिवार को हुए दिल दहला देने वाले ट्रैक्टर हादसे ने एक बार फिर ये साबित कर दिया है कि इस राज्य में गरीब आदिवासियों की जान की कीमत सिर्फ वोट तक सिमट कर रह गई है।
मासूम तरुण धनवार (उम्र 2 वर्ष) की दर्दनाक मौत ट्रैक्टर पलटने से हो गई, उसकी माँ अहिल्या धनवार गंभीर रूप से घायल है, और पिता बसंत धनवार अब भी उस पल की सदमे में है जब उसकी गोद में तड़पता हुआ बेटा दम तोड़ गया।
लेकिन हादसे से भी बड़ा अपराध है – सिस्टम की चुप्पी।
हमारे संवाददाता ने जब घटना की पुष्टि और प्रशासन की प्रतिक्रिया जानने के लिए तमनार थाना प्रभारी को कॉल किया — तो फोन तक नहीं उठाया गया।
एक नहीं, दो नहीं – कई बार कॉल करने के बाद भी अधिकारी ने बात करना जरूरी नहीं समझा!
क्या एक मासूम की मौत के बाद भी जवाबदेही से भाग जाना,
फोन बंद कर लेना,
या कॉल को नजरअंदाज कर देना
सरकारी नीति का हिस्सा बन चुका है?
यह चुप्पी नहीं, यह अपराध है। यह ‘फोन न उठाना’ नहीं, यह ‘फर्ज से भागना’ है।
तमनार में जो हुआ, वो सिर्फ एक ट्रैक्टर हादसा नहीं – यह प्रशासनिक शवासन है।
जब कोई अफसर मीडिया के सवालों से बचने के लिए फोन नहीं उठाता, तो ये समझा जा सकता है कि उसकी कुर्सी में जवाबदेही नहीं, संवेदनहीनता भरी है।
सवाल उठता है :
- क्या तमनार थाना प्रभारी को घटना की जानकारी नहीं थी?
- क्या मीडिया के कॉल को अनदेखा कर देने से सवाल खत्म हो जाते हैं?
तरुण की मौत सिर्फ हादसा नहीं, ये सिस्टम द्वारा गरीब की जान को रौंदने की कहानी है।
- सड़क की हालत बदतर थी – कोई मरम्मत नहीं
- ट्रैक्टर बेलगाम चल रहे थे – कोई निगरानी नहीं
- हादसे के बाद प्रशासन सोता रहा – कोई प्रतिक्रिया नहीं
- और जब मीडिया ने जवाब माँगा – तो फोन तक नहीं उठाया गया!
अगर यह राज्य एक सभ्य लोकतंत्र है, तो इस खबर के बाद :
- थाना प्रभारी को जवाब देना ही होगा
- सड़क निर्माण एजेंसी पर कार्रवाई होनी चाहिए
- पीड़ित परिवार को मुआवजा और न्याय मिलना चाहिए
हमारा अगला कदम – जनप्रतिनिधियों और प्रशासनिक अधिकारियों को खुली चिट्ठी, जनजागरण अभियान और आरटीआई के जरिए जवाब मांगना होगा।