सारंगढ़-बिलाईगढ़

फर्जी जाति प्रमाण पत्र से सरपंच बनी मंजूलता के खिलाफ ग्रामीणों का फूटा गुस्सा, कलेक्टर और एसपी से की कार्रवाई की मांग…

★ ग्राम पंचायत ग्वालिनडीह में जनजातीय आरक्षण की खुली धज्जियां, क्या अब भी चुप रहेगा प्रशासन?...

सारंगढ़-बिलाईगढ़। जिले की ग्राम पंचायत ग्वालिनडीह में लोकतंत्र और आरक्षण व्यवस्था के साथ किए गए एक गंभीर छल का मामला सामने आया है। अनुसूचित जनजाति (ST) वर्ग के लिए आरक्षित सरपंच पद पर कथित रूप से फर्जी जाति प्रमाण पत्र के आधार पर काबिज हुई मंजूलता नामक महिला के खिलाफ अब ग्रामीणों ने मोर्चा खोल दिया है।

ग्रामवासियों ने सरपंच मंजूलता के खिलाफ कलेक्टर और पुलिस अधीक्षक को एक लिखित ज्ञापन सौंपते हुए सख्त जांच और कार्रवाई की मांग की है। ग्रामीणों का आरोप है कि मंजूलता अनुसूचित जनजाति की नहीं, बल्कि अनुसूचित जाति वर्ग से संबंध रखती हैं। इसके बावजूद उन्होंने खुद को जनजातीय वर्ग का सदस्य दर्शाकर फर्जी जाति प्रमाण पत्र बनवाया और आरक्षित पद पर चुनाव लड़कर सरपंच बनीं।

लोकतंत्र की बुनियाद पर सवाल : ग्रामीणों का साफ कहना है कि यह मामला केवल एक व्यक्ति की योग्यता का नहीं, बल्कि लोकतंत्र, आरक्षण नीति और कानूनी प्रक्रिया की विश्वसनीयता पर सीधा हमला है। जब एक फर्जी प्रमाण पत्र के बल पर कोई व्यक्ति जनता के प्रतिनिधित्व की कुर्सी हथिया लेता है, तो यह पूरे शासन-प्रशासन और व्यवस्था की नाकामी का प्रतीक बन जाता है।

क्या मंजूलता को राजनीतिक संरक्षण प्राप्त है? : ग्रामीणों का यह भी इशारा है कि मामले को लेकर अब तक प्रशासन की चुप्पी और निष्क्रियता संदेहास्पद है। क्या मंजूलता को किसी रसूखदार राजनीतिक या प्रशासनिक संरक्षण का लाभ मिल रहा है? क्या यही कारण है कि अब तक कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई?

ग्रामीणों की मांगें और चेतावनी : ज्ञापन में मांग की गई है कि मंजूलता द्वारा प्रस्तुत जाति प्रमाण पत्र की उच्च स्तरीय और निष्पक्ष जांच करवाई जाए। यदि प्रमाण पत्र फर्जी पाया जाता है, तो उन्हें तत्काल सरपंच पद से बर्खास्त कर भारतीय दंड संहिता के तहत आपराधिक मुकदमा दर्ज किया जाए। ग्रामीणों ने चेताया है कि यदि प्रशासन जल्द कोई ठोस कदम नहीं उठाता, तो वे उग्र जनआंदोलन के लिए बाध्य होंगे।

अब प्रशासन के जवाब का इंतज़ार : फिलहाल, पूरे क्षेत्र में यह मामला चर्चा का विषय बन चुका है। लोगों की निगाहें कलेक्टर और पुलिस अधीक्षक पर टिकी हैं। देखना होगा कि क्या प्रशासन इस फर्जीवाड़े के खिलाफ निष्पक्ष कार्रवाई करता है या फिर यह मामला भी सिस्टम की फाइलों में दफन हो जाएगा।

यदि लोकतंत्र को बचाना है, तो झूठ की नींव पर खड़ी सत्ता को गिराना ज़रूरी है।

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