रायगढ़

विजय बहादुर की मौत ने खोली जिंदल स्टील की क्रूर हकीकत – मजदूरों के खून से सना है प्रबंधन का मुनाफ़ा…

रायगढ़। जिंदल स्टील एंड पावर लिमिटेड के ब्लास्ट फर्नेस-01 में बीती दिनों जो हुआ, वह महज एक ‘दुर्घटना’ नहीं, बल्कि एक सुनियोजित औद्योगिक हत्या है। उत्तर प्रदेश के आज़मगढ़ निवासी विजय बहादुर, जो रात के सन्नाटे में फर्नेस के ताप में झुलस कर दम तोड़ गया, उसकी मौत एक मशीन की खराबी से नहीं प्रबंधन की बेहरमी, सिस्टम की चुप्पी और सरकार की नाकामी से हुई है।

ये हादसा नहीं खून है : रात 2 से 3 बजे के बीच ब्लास्ट फर्नेस में अचानक तापमान का स्तर नियंत्रण से बाहर हो गया। विजय बहादुर वहाँ अकेला जूझता रहा, सुरक्षा अलर्ट फेल थे, इमरजेंसी रिस्पॉन्स गायब था और सुपरविजन के नाम पर सिर्फ ठेकेदारों की मौन मौजूदगी थी। उसे उसी हालत में जिंदल फर्स्टिस हॉस्पिटल लाया गया, जहाँ उसने दम तोड़ दिया। एक ज़िंदगी खत्म हो गई, और संयंत्र प्रबंधन की ज़ुबान पर वही पुराना बयान  “घटना की जांच की जा रही है।”

पहले भी हुईं मौतें, लेकिन जिंदल की चिमनियाँ धधकती रहीं : यह कोई पहली मौत नहीं है। बीते वर्षों में दर्जनों मजदूर जिंदल के भीतर या तो मारे गए, या जीवनभर के लिए अपाहिज हो गए। लेकिन ना कोई एफआईआर, ना सीसीटीवी सार्वजनिक, ना किसी अधिकारी पर कार्रवाई… क्या जिंदल स्टील देश के कानून से ऊपर है?

मजदूरों की लाशों पर खड़ा है मुनाफे का साम्राज्य : जिंदल स्टील का मुनाफा हर तिमाही रिकॉर्ड तोड़ता है, लेकिन मजदूरों की ज़िंदगी वहाँ एक फटे दस्ताने से ज्यादा कीमत नहीं रखती। सवाल है – क्या कॉर्पोरेट मुनाफे के लिए मजदूरों की जानें यूँ ही जाती रहेंगी? क्या किसी मजदूर की मौत का मतलब सिर्फ एक ‘इंटर्नल रिपोर्ट’ और एक खामोश अंतिम संस्कार होगा?

ट्रेड यूनियन की चेतावनी – अब चुप्पी नहीं, जनविद्रोह होगा : घटना के बाद अस्पताल पहुँचे भारतीय जनता मजदूर ट्रेड यूनियन काउंसिल के ज़िला अध्यक्ष पिंटू सिंह ने साफ कहा  “अब बहुत हो गया। हम 50 लाख मुआवजा, स्थायी नौकरी और दोषियों पर हत्या का मुकदमा चाहते हैं। नहीं तो जिंदल गेट के सामने ताबूत रखा जाएगा और सरकार की चुप्पी की शवयात्रा निकाली जाएगी।”

कब जागेगा शासन-प्रशासन? : क्या छत्तीसगढ़ सरकार इस बार जिंदल स्टील के खिलाफ हिम्मत दिखाएगी? क्या श्रम विभाग सिर्फ फाइलें पलटता रहेगा? और क्या रायगढ़ का जिला प्रशासन अब भी ‘विकास’ के नाम पर इन मौतों को जायज़ ठहराएगा?

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