बालोद

बालोद में आदिवासी किसानों की 52 एकड़ जमीन हड़पने का मामला गरमाया, ग्रामीण आदिवासी भूख हड़ताल पर…

फिरोज अहमद खान (पत्रकार)
बालोद/कर्रेझर। छत्तीसगढ़ के बालोद जिले के गुरुर ब्लॉक स्थित ग्राम कर्रेझर में 16 आदिवासी किसानों की 52 एकड़ जमीन को धमकी और छल से सामान्य वर्ग के नाम ट्रांसफर करवाने का भ्रष्टाचार का बड़ा मामला सामने आया है। इसकी जानकारी मिलते ही ग्रामीणों ने जमीन वापसी की मांग को लेकर राजाराव पठार में भूख हड़ताल शुरू कर दी है। सर्व आदिवासी समाज ने भी ग्रामीणों के समर्थन में कलेक्टर को शिकायत पत्र सौंपकर तत्काल कार्रवाई की मांग की है। वहीं छत्तीसगढ के बालोद में आदिवासियों की जमीन फर्जी और बेनामी तरीके से खरीदने के इस मामले ने सरकार की नींद उड़ा दी है।

आदिवासी बाहुल्य छत्तीसगढ़ राज्य में गैर आदिवासियों के द्वारा आदिवासियों की जमीन की खरीद-फरोख्त करने का षडयंत्र, धोखाधड़ी, छलकपट करते हुये कई एकड़ का खेल भूमाफियाओं के द्वारा किया गया है। छत्तीसगढ़ के अधिकांश जिलो में आदिवासियों की जमीन पर गैर आदिवासियों ने कब्जा किया हुआ है।

आपको बता दें कि दिनांक 01 जून 2024 को बालोद कलेक्टर के पास ग्राम पंचायत कर्रेझर के आदिवासियों ने शिकायत दर्ज की गई थी जिसमें आदिवासियों के नाम पर गलत तरीके जमीन खरीद कर भू माफियाओं को बेचने के षडयंत्र की बात कही गई है। जिसके बाद दिनांक 26 मार्च 2025 से अनिश्चितकालीन भूख हड़ताल जारी है।

मामले की जड़ में “भू-माफिया” का स्याह खेल 

जानकारों के मुताबिक, धमतरी और बालोद जिले के कथित भू-माफियाओं ने एक सुनियोजित षड्यंत्र के तहत पहले इन 16 आदिवासी परिवारों की जमीन को एक आदिवासी महिला के नाम से खरीदा और अब उसे सामान्य वर्ग के नाम ट्रांसफर करने के लिए कलेक्टर कार्यालय में आवेदन दिया है। ग्रामीणों का आरोप है कि यह जमीन बी-फार्म हाउस बनाकर बेचने की साजिश का हिस्सा है। बता दें कि छत्तीसगढ़ भू राजस्व संहिता के अनुसार किसी आदिवासी की जमीन को गैर आदिवासी नहीं खरीद सकते हैं। इसके लिए कलेक्टर से खास अनुमति लेनी पडती है।

आदिवासी समाज ने उठाई आवाज, कलेक्टर को सौंपा ज्ञापन

सर्व आदिवासी समाज के प्रदेश अध्यक्ष बीएस रावटे के नेतृत्व में एक प्रतिनिधिमंडल ने कलेक्टर से मुलाकात कर धारा 170-बी (भूमि अधिग्रहण अधिनियम) और पेसा कानून का हवाला देते हुए जमीन ट्रांसफर रद्द करने की मांग की। प्रतिनिधिमंडल में उपाध्यक्ष जीवराखन मारइ, प्रेमलाल कुंजाम, यूआर गंगराले, अमित मंडावी, दीनू राम कोमर्रा, मेघनाथ सलाम, पीताम्बर तुमरेकी, हेमराज मंडावी, लीलाधर ठाकुर समेत कई सामाजिक कार्यकर्ता शामिल थे। 

आदिवासी गोंडवाना सेवा समिति कर्रेझर के अध्यक्ष मेघनाथ सलाम ने कहा, “यह जमीन आदिवासियों की पुश्तैनी संपत्ति है। इसे धोखे से हड़पने की कोशिश भू-माफियाओं चाल और प्रशासनिक लापरवाही का नतीजा है। हम जमीन वापसी तक संघर्ष जारी रखेंगे।”

ग्रामीणों का आक्रोश: “जमीन बचाओ, जीवन बचाओ”

भूख हड़ताल पर बैठे ग्रामीणों का कहना है कि उनकी जमीन उनकी पहचान और आजीविका का आधार है। प्रेम कुंजाम ने बताया, “हमें जमीन से बेदखल करने के लिए माफियाओं ने हमें जान से मारने की धमकी दी। अब हमारे पास भूख हड़ताल के अलावा कोई चारा नहीं बचा।” 

कानूनी पेच और प्रशासन की भूमिका पर सवाल

आदिवासी अधिकार कार्यकर्ता तथा वरिष्ठ पत्रकार विनोद नेताम ने सवाल उठाया, “कैसे एक आदिवासी महिला के नाम की जमीन बिना अनुसूचित जनजाति प्रमाणपत्र (सीएसटी) के सामान्य वर्ग के नाम ट्रांसफर हो सकती है? यह प्रक्रिया ही अवैध है।” जमीन ट्रांसफर प्रक्रिया तत्काल रद्द की जाए। भू-माफियाओं के खिलाफ सख्त कार्रवाई कर एफआईआर दर्ज की जाए। पीड़ित परिवारों को सुरक्षा और मुआवजा दिया जाए। 

सर्व आदिवासी समाज ने चेतावनी दी है कि यदि 48 घंटे के भीतर कार्यवाही नहीं हुई, तो वे बालोद से रायपुर तक जनआंदोलन चलाएंगे। इस मामले में एससी/एसटी एक्ट के तहत भी कार्यवाही की मांग उठ रही है। यह मामला आदिवासी अधिकारों और जमीन संरक्षण कानूनों की गंभीर चुनौती को उजागर करता है। प्रशासन की ओर से अभी तक कोई आधिकारिक बयान नहीं आया है।

हालांकि कुछ जिलों में जहां पर ईमानदार अफसर या न्यायालय में ईमानदार दण्डाधिकारी बैठे हुये वे ईमानदारी से न्याय देकर आदिवासियों की जमीन को वापस दिलवाने में अपनी भूमिका निभा रहे है।

Feroz Ahmed Khan

संभाग प्रभारी : दुर्ग

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