रायगढ़

तमनार : महाजेंको की कोयला खदानों का काला सच : NGT के आदेश को ठुकराकर सरकार की पर्यावरणीय स्वीकृति, 15 मार्च को कटघरे में सरकार…

रायगढ़ | तमनार का महाजेंको कोल माइंस प्रोजेक्ट अब सिर्फ एक खदान नहीं, बल्कि विकास, न्याय और पर्यावरण संरक्षण की लड़ाई का केंद्र बन गया है। एनजीटी (नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल) द्वारा परियोजना को मिली पर्यावरणीय स्वीकृति रद्द करने के बावजूद केंद्र सरकार ने इसे दोबारा मंजूरी दे दी, जिससे ग्रामीणों और पर्यावरणविदों में आक्रोश फैल गया।

यह विवाद तब शुरू हुआ जब महाराष्ट्र स्टेट पावर जेनरेशन कंपनी (महाजेंको) को गारे पेलमा सेक्टर-2 कोल ब्लॉक आवंटित किया गया। इस परियोजना से 23.6 मिलियन टन कोयले का वार्षिक उत्पादन प्रस्तावित है, लेकिन इसकी कीमत 14 गांवों की 2,500 हेक्टेयर भूमि और हजारों ग्रामीणों की आजीविका से चुकानी पड़ेगी।

एनजीटी का आदेश : 15 जनवरी को मिली थी राहत : पर्यावरणीय खतरे और विस्थापन की आशंका को देखते हुए एनजीटी ने 15 जनवरी 2024 को परियोजना की पर्यावरणीय स्वीकृति को निरस्त कर दिया था। ट्रिब्यूनल का स्पष्ट आदेश था कि नई जनसुनवाई कराई जाए और स्थानीय समुदाय की राय ली जाए, लेकिन पर्यावरण मंत्रालय ने एनजीटी के आदेश को दरकिनार कर 13 अगस्त 2024 को फिर से स्वीकृति जारी कर दी। इस मनमानी के खिलाफ पर्यावरण कार्यकर्ताओं और स्थानीय ग्रामीणों ने फिर से एनजीटी का दरवाजा खटखटाया, जिसके बाद 17 जनवरी 2025 को सुनवाई हुई।

17 जनवरी की सुनवाई :एनजीटी का सरकार को नोटिस : सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ताओं ने मंत्रालय की मनमानी को कटघरे में खड़ा किया और तर्क दिया कि एनजीटी ने स्पष्ट रूप से नई जनसुनवाई की शर्त रखी थी, जिसे पूरा नहीं किया गया। इस पर एनजीटी ने पर्यावरण मंत्रालय को नोटिस जारी कर जवाब देने का निर्देश दिया और अगली सुनवाई 15 मार्च 2025 को तय की।

तमनार के गांवों पर संकट, पर्यावरण को खतरा : कोल ब्लॉक से 14 गांवों की 2,500 हेक्टेयर भूमि प्रभावित होगी। यहां के हजारों किसान, आदिवासी और ग्रामीण अपने जल, जंगल, जमीन की रक्षा के लिए संघर्ष कर रहे हैं। पर्यावरणविदों का मानना है कि कोयला खनन से क्षेत्र में जल प्रदूषण, वायु गुणवत्ता में गिरावट और वन्यजीवों का विस्थापन होगा। रायगढ़ पहले से ही प्रदूषण और वनों के अंधाधुंध कटाव का शिकार हो रहा है, ऐसे में महाजेंको की यह परियोजना इस क्षेत्र के पारिस्थितिकी तंत्र पर विनाशकारी प्रभाव डाल सकती है।

कानूनी और नैतिक सवालों के घेरे में सरकार : यह मामला सिर्फ कोयला खदान का नहीं, बल्कि कानूनी प्रक्रियाओं की विश्वसनीयता और न्यायपालिका की ताकत का भी परीक्षण है। यदि सरकार एनजीटी के आदेशों को यूं ही नजरअंदाज करती रही, तो क्या भविष्य में न्यायपालिका के फैसलों का कोई महत्व रहेगा?

15 मार्च की सुनवाई पर टिकी निगाहें : अब सबकी निगाहें 15 मार्च 2025 की सुनवाई पर टिकी हैं, जहां एनजीटी यह तय करेगा कि उसके आदेशों का पालन होगा या नहीं। ग्रामीणों और पर्यावरण कार्यकर्ताओं को उम्मीद है कि न्यायपालिका इस बार सरकार की मनमानी पर रोक लगाएगी और पर्यावरणीय सुरक्षा को प्राथमिकता देगी।

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