अमेरिका में प्रवासी मज़दूरों का शोषण : श्रम से लेकर निर्वासन तक एक संगठित साजिश…

नई दिल्ली। अमेरिका में प्रवासी मज़दूरों की मेहनत से आर्थिक समृद्धि हासिल करने के बावजूद, उन्हीं मज़दूरों को शोषण और निर्वासन की अमानवीय नीतियों का शिकार बनाया जा रहा है। कृषि, निर्माण और सेवा क्षेत्रों में इन मज़दूरों की रीढ़ मानी जाती है, लेकिन कानूनी सुरक्षा की कमी और निर्वासन के खतरे ने उन्हें अस्थिर और असुरक्षित बना दिया है।
अर्थशास्त्री डॉ. शिरीन अख्तर के विश्लेषण के अनुसार, “अमेरिकी अर्थव्यवस्था दशकों से प्रवासी श्रमिकों के पसीने पर टिकी है, लेकिन जब उनकी आवश्यकता पूरी हो जाती है, तो उन्हें ‘अवैध अप्रवासी’ करार देकर निर्वासन की सख्त नीतियों के तहत बाहर निकाल दिया जाता है। यह न केवल अमानवीय है, बल्कि आर्थिक और राजनीतिक शोषण का सुनियोजित तरीका भी है।”
अमेरिका का निर्वासन-औद्योगिक तंत्र : अमेरिका में प्रवासियों के निर्वासन से निजी कंपनियों को अरबों डॉलर का फायदा हो रहा है। कोरसिविक और जीईओ ग्रुप जैसी निजी कंपनियों को प्रवासियों की हिरासत के लिए सरकारी अनुबंध मिलते हैं, और ये कंपनियां हिरासत की अवधि बढ़ाकर अधिक लाभ कमाती हैं। रिपोर्टों के अनुसार, हिरासत केंद्रों में अमानवीय स्थितियां, चिकित्सा सुविधाओं की कमी और दुर्व्यवहार की घटनाएं आम हैं। हाल ही में, अमेरिका ने सी-17 सैन्य विमान का इस्तेमाल कर इक्वाडोर और भारत के प्रवासियों को जबरन निर्वासित किया। रिपोर्टों के अनुसार, 104 भारतीय नागरिकों को जंजीरों में जकड़कर 40 घंटे तक रखा गया, जो अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार कानूनों का स्पष्ट उल्लंघन है।
भारत की चुप्पी पर सवाल : अन्य देश अपने नागरिकों के प्रति मुखर रहे हैं, लेकिन भारतीय सरकार ने अब तक इस मुद्दे पर कोई ठोस प्रतिक्रिया नहीं दी है। जबकि मेक्सिको और इक्वाडोर ने अपने नागरिकों के अधिकारों की रक्षा के लिए अमेरिका से जवाब मांगा, भारत सरकार की निष्क्रियता ने कई सवाल खड़े कर दिए हैं।
डॉ. अख्तर ने कहा, “भारत सरकार केवल उच्च-कुशल प्रवासियों के मुद्दों पर सक्रिय रहती है, लेकिन जब कामगार वर्ग के प्रवासियों की दुर्दशा सामने आती है, तो वह चुप्पी साध लेती है। यह नीति न केवल भेदभावपूर्ण है, बल्कि अपने ही नागरिकों की अनदेखी करने का प्रमाण भी है।”
क्या अमेरिका प्रवासी श्रमिकों का केवल इस्तेमाल करता है? आर्थिक विश्लेषकों का मानना है कि अमेरिका की आव्रजन नीतियां नवउदारवादी आर्थिक व्यवस्था का हिस्सा हैं, जिसमें श्रमिकों का उपयोग केवल उत्पादन बढ़ाने के लिए किया जाता है और जब उनकी आवश्यकता समाप्त हो जाती है, तो उन्हें कानूनी प्रक्रियाओं के नाम पर निकाल दिया जाता है। अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार संगठनों और प्रवासी श्रमिकों के लिए काम करने वाले संगठनों ने इन नीतियों की कड़ी आलोचना की है और संयुक्त राष्ट्र से तत्काल हस्तक्षेप की मांग की है।
क्या भारत सरकार अपने प्रवासियों के अधिकारों की रक्षा करेगी? अब सवाल यह है कि क्या भारतीय सरकार अपने प्रवासियों के अधिकारों के लिए अमेरिका से कड़ा विरोध दर्ज कराएगी, या फिर यह मुद्दा भी अन्य अंतरराष्ट्रीय मामलों की तरह चुप्पी के अंधेरे में दबा दिया जाएगा?
