वर्षों से दबाया जा रहा अवैध कत्लखाने का मामला, अधिकारियों की लापरवाही पर उठे सवाल
पंचायत की मिलीभगत के बगैर संभव नहीं अवैध कब्जा
फिरोज अहमद खान (पत्रकार)
बालोद। जिले की डौंडी तहसील अंतर्गत ग्राम पंचायत कुसुमकसा में स्थित साप्ताहिक बाजार के अंदर अवैध रूप से एक कत्लखाना संचालित किए जाने का मामला सामने आया है, जिसे लेकर स्थानीय ग्रामीणों में गुस्सा और आक्रोश है। बाजार के भीतर जहां ग्रामीणजन अपने दैनिक उपयोग की आवश्यक वस्तुएं जैसे सब्जी, भाजी व अन्य सामान खरीदने के लिए आते हैं, वहीं यहां अवैध रूप से एक व्यक्ति, वहीद अली ने सार्वजनिक स्थान पर पक्का निर्माण कर अवैध कत्लखाना खोल रखा है। जिसका नाम ताज चिकन एंड मटन कार्नर रखा गया है। आपको यकीन नहीं होगा कि ऐसे अवैध कब्जेधारी को छत्तीसगढ़ के बिजली विभाग द्वारा मीटर भी प्रदान कर दिया गया है। अवैध कब्जे के साथ संचालित हो रहे अवैध कसाईघर को संरक्षण दे चुप्पी साधे हुए विभाग जिनमें स्वास्थ्य विभाग, राजस्व विभाग, पंचायती विभाग, पुलिस विभाग प्रमुख है।
सूत्रों से प्राप्त जानकारी के अनुसार, कुसुमकसा निवासी वहीद अली ने बाजार में काफी बड़ी जगह पर अवैध रूप से कब्जा कर लिया है और इस स्थान पर पक्का निर्माण कर शटर दरवाजा भी लगवाया है। इस अवैध व्यापार में किसी भी प्रकार की सरकारी अनुमति का उल्लंघन किया गया है, जो पशु वध के लिए आवश्यक होती है। खासकर सार्वजनिक स्थान पर पशु वध के कारोबार की अनुमति न तो ग्राम पंचायत से ली गई है और न ही किसी अन्य संबंधित विभाग से। आपको बता दें कि यह व्यक्ति कुसुमकसा स्थित धान खरीदी केंद्र में चपरासी के तौर पर पिछले कई वर्षों से टिका हुआ है। वहीं ग्राम में कई बार इसकी नियुक्ति पर भी सवाल उठते रहे है। लेकिन जिले के सहकारिता विभाग द्वारा मामले पर हर बार चुप्पी साध ली जाती है। ग्रामीणों का कहना है कि इसकी नियुक्ति अवैध है जो नियमत: जांच पड़ताल के बाद ही खुलासा होगा। वहीं इस छत्तीसगढ़ राज्य के इस विभाग में सूचना का अधिकार अधिनियम लागू नहीं होता जिस कारण इसकी नियुक्ति से संबंधित दस्तावेज सार्वजनिक नहीं किए जा रहे है। वहीं ग्रामीणों द्वारा जिला कार्यालय में इस संबंध ने दबाव बनाया जाएगा तभी इस कूटरचना और भ्रष्टाचार का खुलासा होगा।
वहीं पशु वध के दौरान पशु पक्षियों के स्वास्थ्य की जांच या डाक्टरी परीक्षण की भी अनदेखी की जा रही है, जो कानून के खिलाफ है। पशु वध का काम करने के लिए आवश्यक लाइसेंस और नियमानुसार पशु चिकित्सा जांच भी अनिवार्य होती है, जो इस मामले में पूरी तरह से अनुपस्थित हैं। इस मामले को लेकर ग्रामीणों ने संबंधित अधिकारियों की लापरवाही की ओर भी इशारा किया है। ग्राम पंचायत के तत्कालीन सरपंच और सचिव की भूमिका पर सवाल खड़ा करते हुए ग्रामीणों ने कहा कि अगर पंचायत के प्रमुख अधिकारी व सही जिम्मेदार विभाग इस तरह के अवैध कब्जे और कारोबार के खिलाफ कार्रवाई करते तो यह स्थिति उत्पन्न नहीं होती।
साथ ही जनपद सदस्य की भी भूमिका संदिग्ध बताई जा रही है, क्योंकि जब एक अवैध कारोबार खुलेआम चल रहा था, तो उसे रोकने के लिए कोई कदम नहीं उठाए गए। ग्रामीणों का कहना है कि जब से इस अवैध कारोबार की शुरुआत हुई है, तब से उनके जीवन में समस्याएं बढ़ गई हैं, क्योंकि पशु वध के चलते गंदगी और बदबू का आलम रहता है, जो उनकी सेहत पर प्रतिकूल प्रभाव डाल रहा है। इस मामले की गंभीरता को देखते हुए संबंधित अधिकारियों से जल्द से जल्द कार्रवाई की उम्मीद की जा रही है। ग्रामीणों ने बताया कि अगर यह अवैध कारोबार तुरंत बंद नहीं हुआ, तो वे जन आंदोलन की राह पकड़ सकते हैं।
पशु वध से संबंधित कानूनी प्रावधानों के अनुसार, कोई भी व्यक्ति सार्वजनिक स्थान पर पशु वध का कार्य नहीं कर सकता है, जब तक कि उसे संबंधित विभाग से अनुमति प्राप्त न हो। भारत सरकार और राज्य सरकारों द्वारा पशु वध के लिए अलग-अलग नियम और प्रोटोकॉल निर्धारित किए गए हैं। इनमें से कुछ प्रमुख प्रावधानों में यह सुनिश्चित करना शामिल है कि वध किए जाने वाले पशु को उचित स्वास्थ्य जांच से गुजरना चाहिए और वध की प्रक्रिया के दौरान शुद्धता और स्वच्छता का ध्यान रखा जाए। इसके अलावा, पशु वध के लिए लाइसेंस प्राप्त करना आवश्यक है और इस कार्य को केवल अनुमोदित स्लॉटर हाउस या इसी तरह की सुविधाओं में ही किया जा सकता है।
ग्राम पंचायत कुसुमकसा में अवैध रूप से संचालित कत्लखाने और पशु वध के कारोबार को लेकर ग्रामीणों और नागरिक समाज में भारी असंतोष व्याप्त है। ग्रामीणों ने मांग की है कि संबंधित विभाग जल्द से जल्द इस मामले की जांच करें और दोषियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करें। आपको बता दें कि ग्राम पंचायत क्षेत्र में अवैध कब्जा एक गंभीर समस्या हो सकती है, जो न केवल सार्वजनिक संपत्ति के दुरुपयोग को बढ़ावा देता है, बल्कि स्थानीय विकास कार्यों और सामुदायिक भलाई को भी प्रभावित करता है। अवैध कब्जा विभिन्न रूपों में हो सकता है, जैसे कि सार्वजनिक भूमि पर निर्माण, नाली/गली या अन्य सार्वजनिक स्थानों पर कब्जा, कृषि भूमि पर निर्माण कार्य, आदि।
अवैध कब्जे से संबंधित नियम और कानून इस प्रकार है। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 300ए किसी व्यक्ति को बिना कानूनी प्रक्रिया के किसी भी प्रकार की संपत्ति से वंचित करने से रोकता है। यदि किसी व्यक्ति ने अवैध रूप से किसी सरकारी या सार्वजनिक भूमि पर कब्जा किया है, तो उसे हटाने के लिए कानूनी प्रक्रिया का पालन करना आवश्यक है। अवैध कब्जा किसी व्यक्ति या समूह द्वारा किए जाने पर यह संविधान के अनुच्छेद 300ए का उल्लंघन हो सकता है।
भूमि अधिग्रहण कानून के तहत किसी भी भूमि पर अवैध कब्जा करने के लिए भूमि अधिग्रहण कानून का उल्लंघन हो सकता है। इसके तहत किसी व्यक्ति या समुदाय को भूमि के उपयोग का अधिकार नहीं होता यदि उसे उचित कानूनी प्रक्रिया द्वारा स्वीकृत नहीं किया गया हो।
छत्तीसगढ़ राजस्व संहिता के तहत अवैध कब्जे का मामला दर्ज किया जा सकता है। यह संहिता राज्य के सरकारी भूमि और सार्वजनिक भूमि पर कब्जे की प्रक्रिया, उसके हस्तांतरण और कब्जे से संबंधित नियमों को परिभाषित करती है। यह भी स्पष्ट करती है कि अगर कोई व्यक्ति बिना अनुमति के सरकारी भूमि या सार्वजनिक संपत्ति पर कब्जा करता है तो संबंधित विभाग द्वारा कार्यवाही की जाएगी।
राजस्व विभाग वह सरकारी एजेंसी है जो अवैध कब्जों के खिलाफ कार्यवाही करता है और भूमि के उपयोग, उसके कब्जे और आवंटन से संबंधित मामलों को नियंत्रित करता है। राजस्व विभाग की कार्यवाही निम्नलिखित रूपों में हो सकती है। अगर किसी व्यक्ति ने सरकारी या सार्वजनिक भूमि पर अवैध कब्जा किया है, तो राजस्व विभाग पहले उस व्यक्ति को नोटिस जारी करता है। यह नोटिस उन्हें भूमि छोड़ने के लिए एक निर्धारित समय सीमा में कहा जाता है। यदि अवैध कब्जा जारी रहता है, तो तहसीलदार या संबंधित अधिकारी एक आदेश जारी कर सकते हैं, जिसमें अवैध कब्जे को हटाने की कार्यवाही की जाएगी। यह आदेश सरकारी भूमि की वापसी और कब्जे का निपटारा करने के लिए होता है।
राजस्व विभाग के अधिकारी अवैध कब्जे वाली भूमि को खाली करने के लिए पुलिस की मदद ले सकते हैं। यह कार्यवाही कानूनी प्रक्रिया और संबंधित सरकारी आदेशों के तहत की जाती है। इस दौरान संबंधित व्यक्ति को कब्जा हटाने के लिए आदेश दिया जाता है और यदि वह आदेश का पालन नहीं करता है, तो उसे कानूनी कार्रवाई का सामना करना पड़ सकता है।
ग्राम पंचायत का भी इस मामले में महत्वपूर्ण योगदान होता है। पंचायत को सार्वजनिक स्थानों पर अवैध कब्जे की जानकारी देने का कर्तव्य होता है। पंचायत से संबंधित अधिकारी मामले को लेकर राजस्व विभाग और पुलिस को सूचित करते हैं। पंचायत के सरपंच और सचिव को यह सुनिश्चित करना होता है कि ग्राम पंचायत क्षेत्र में कोई भी अवैध कब्जा न हो और यदि होता है तो उसे कानूनी प्रक्रिया के तहत हटवाया जाए।
अवैध कब्जे से निपटने के लिए संबंधित विभागों को समय पर कार्यवाही करनी चाहिए। इसके लिए ग्राम पंचायत, राजस्व विभाग और पुलिस को मिलकर काम करना चाहिए ताकि सार्वजनिक भूमि का सही उपयोग हो सके और किसी भी व्यक्ति को अवैध रूप से कब्जा करने की अनुमति न मिले।
अवैध कब्जा किसी भी समाज के लिए हानिकारक हो सकता है और इससे न केवल सार्वजनिक संपत्ति का नुकसान होता है, बल्कि विकास कार्यों और सामुदायिक कल्याण पर भी प्रतिकूल असर पड़ता है। इसलिए, इसे रोकने के लिए ग्राम पंचायत और राजस्व विभाग को मिलकर प्रभावी कदम उठाने चाहिए और सरकार की नीतियों के अनुसार कार्यवाही करनी चाहिए।
(आगे इसी गंभीर विषय धारावाहिक जारी रहेगा।)