बालोद जिले की इस नगर पालिका का बुरा हाल: नालियां, जो अब “सांस लेने का समय” मांग रही हैं।
फिरोज अहमद खान (पत्रकार)
बालोद। अगर आप सोच रहे हैं कि “नगर पालिका” का नाम सुनते ही दिमाग में सफाई, व्यवस्था और सुंदरता की तस्वीर आती है, तो शायद आपने दल्ली राजहरा का दौरा अभी तक नहीं किया है! यहां के वार्डवासियों को अब नगरपालिका की “सेवाओं” का खास तोहफा मिल रहा है – “जाम नालियां, बंद कचरा कलेक्शन और गंदगी से भरी सड़कों का आनंद”!
नालियां, जो अब “सांस लेने का समय” मांग रही हैं।
अब तक आपने सुना होगा कि नगर पालिका नालियों को साफ करने का दावा करती है, लेकिन दल्ली राजहरा में नालियां अब “मुक्ति की प्रतीक्षा कर रही हैं”। टाउनशिप की लगभग सभी नालियां जाम हो चुकी हैं, और यह नालियां अब स्वयं को कचरे का संग्रहण स्थल समझने लगी हैं। वार्डवासी अब नालियों के ऊपर से नृत्य करते हुए “कचरे का पुल” पार करने का मजा ले रहे हैं।
क्या आपको पता है? इन नालियों का “कचरे के साथ गहरा संबंध” बन चुका है। इस शहर के नाले अब “कचरे का स्वागत कक्ष” बन गए हैं, जहां कचरा बिना किसी रोक-टोक के आराम से जमा हो रहा है। यह नालियां अपने जीवन के “संग्राम” से जूझ रही हैं, और शायद अब किसी न किसी दिन गिनती में “सबसे जाम रहने वाली नाली” का खिताब जीतने वाली हैं।
आपका सुबह का कचरा कहां गया? क्या वह अचानक गायब हो गया? बिल्कुल नहीं! दरअसल, कचरा कलेक्शन गाड़ी अब “रिटायरमेंट” पर जा चुकी है। वार्डवासियों से जब पूछा गया, तो उनका कहना था कि कचरा कलेक्शन गाड़ी की “सप्ताहिक छुट्टी” और “रिटायरमेंट” की वजह से अब कचरा इधर-उधर पड़ा हुआ है। कभी कचरा कलेक्शन गाड़ी के खराब होने की बात बताई जाती है, तो कभी “गाड़ी की छुट्टियों” का हवाला दिया जाता है। अब गाड़ी की खराबी का यह हाल है कि वार्डवासियों को समझ में नहीं आता कि यह कचरा गाड़ी “साधारण गाड़ी” है या फिर वह भी “हॉलिडे मोड” में चली जाती है। क्या किसी ने सुना है कि गाड़ी भी छुट्टियों पर जाती है? शायद यह कचरे की गाड़ी “स्वयं ही छुट्टियां मनाने” चली जाती है, जबकि लोग घर के बाहर कचरे का पर्व मना रहे हैं। सबसे शर्मनाक तो यह है कि नगर पालिका राजहरा के सफाई दरोगा सतीश चंद्राकर “कचरे को कचरा मानने से इनकार” करते है इसलिए उन्हें कोई खास फर्क नहीं पड़ता।
सृजन ग्राउंड में कचरे का “विरासत का उत्सव”
सृजन ग्राउंड का नाम सुनते ही आपको जो तस्वीर आती है, वह शायद “हरी-भरी घास और खेल-कूद” की होती है। लेकिन जब आप दल्ली राजहरा के सृजन ग्राउंड में कदम रखेंगे, तो वहां आपको “कचरे का उत्सव” देखने को मिलेगा। चारों ओर कचरा ही कचरा फैला हुआ है, और यह दृश्य किसी “कचरा महोत्सव” से कम नहीं लगता। यहां के लोग अब इस ग्राउंड को “कचरा संग्रहण केंद्र” के रूप में देख रहे हैं।
किसी ने सही कहा है – “कचरा, जब तक इधर-उधर पड़ा रहे, तब तक समस्या नहीं है। जब तक कोई जिम्मेदार इसे उठाने नहीं आए, तब तक मजा है।” और यह समस्या “कचरे के उत्सव” के रूप में दल्ली राजहरा में मनाई जा रही है।
अब जब पूरे शहर में “कचरे का किला” बन चुका है, तो वार्ड क्रमांक 08 के पार्षद स्वप्निल तिवारी ने इस विकराल समस्या से निजात पाने कई बार कोशिश की है। उन्होंने वर्तमान अथवा पूर्व नगर पालिका अध्यक्ष शीबू नायर और नगर पालिका सीएमओ से कई बार निवेदन किया, लेकिन उनकी आवाज अब तक “नदी में बहते हुए पत्थर” की तरह ही है।
स्वप्निल तिवारी ने कई बार “कचरे की समस्या” और “नालियों के जाम होने” के बारे में नगर पालिका से निवेदन किया, लेकिन नगर पालिका अधिकारियों का “सुनना” अब एक “कहानी” बन गया है। शायद उनके निवेदन को “गोलमोल जवाब” के रूप में स्वीकार किया जाता है। एक बार तो उन्होंने सोचा था कि शायद कोई नायक आकर उनकी मदद करेगा, लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ।
नगर पालिका की स्थिति: “कचरे से युद्ध, लेकिन कोई जीत नहीं”
नगर पालिका की स्थिति अब ऐसी हो गई है कि जैसे “कचरा ही कचरा” हो, और “साफ-सफाई” का नाम सिर्फ “कागजों पर” हो। इस स्थिति ने साबित कर दिया है कि यहां के नगर पालिका अधिकारियों को कचरे की सही व्यवस्था के बारे में कोई जानकारी नहीं है।
अब समय आ गया है कि नगर पालिका को यह समझना होगा कि कचरा सिर्फ घर के बाहर नहीं, बल्कि पूरे शहर में फैलने लगा है, और इसे साफ करने का प्रयास करना होगा, ताकि लोग अपने शहर को साफ-सुथरा देख सकें। साथ ही, अधिकारियों को यह समझने की आवश्यकता है कि जब सड़कें और नालियां जाम हो जाती हैं, तो ये केवल समस्या नहीं, बल्कि एक बड़ा संकट बन जाता है।
कुल मिलाकर, दल्ली राजहरा का “आदर्श नगर पालिका” अब “कचरे का राजा” बन चुका है। यहां के लोग अब “नालियों और कचरे” के बीच जीवन जीने के आदी हो गए हैं। नगर पालिका को अब “कचरे की समस्या” पर गंभीरता से विचार करना चाहिए और यह समझना चाहिए कि शहर को साफ रखना सिर्फ एक कार्य नहीं, बल्कि एक जिम्मेदारी है। अब देखना यह है कि क्या युवा पार्षद स्वप्निल तिवारी के संघर्ष का कुछ असर होगा, या फिर यह “कचरा महोत्सव” यूं ही जारी रहेगा!