बालोद

वन विभाग के नाके पर अवैध कब्जा वहीं बिजली कनेक्शन, संबंधित अधिकारियों पर कड़ी कार्यवाही की आवश्यकता

फिरोज अहमद खान (पत्रकार)
बालोद। छत्तीसगढ़ राज्य के एक नवनिर्मित राष्ट्रीय राजमार्ग 930 पर ग्राम कुसुमकसा में सड़क चौड़ीकरण के दौरान वन विभाग के नाके को ध्वस्त कर दिया गया था और उस स्थान को खाली कर दिया गया था। लेकिन, दुर्भाग्यवश, ठीक उसी स्थान पर ग्राम कुसुमकसा के ही नईम कुरैशी द्वारा अवैध कब्जा कर लिया और लोहे से पक्की दुकान का निर्माण कर लिया। इस अवैध कब्जे पर एक और भी चौंकाने वाली बात यह है कि छत्तीसगढ़ के बिजली विभाग ने इस दुकान को बिजली कनेक्शन भी प्रदान कर मीटर भी लगा दिया है।

यह मामला स्पष्ट रूप से कानूनी और प्रशासनिक लापरवाही का परिणाम है। आपको बता दें कि बालोद जिले में कलेक्टर इंद्रजीत सिंह चंद्रवाल की पदस्थापना के बाद से ही जगह जगह अवैध कब्जों की बाढ़ सी आ गई है। जिसके लिए जिम्मेदार अधिकारियों द्वारा ढीली और लचर कार्यप्रणाली की बात सुर्खियों में है। वहीं संबंधित विभागों ने इस अवैध निर्माण पर कोई ठोस कार्यवाही नहीं की है, जिससे यह मामला और भी गंभीर हो गया है। वन विभाग और बिजली विभाग को अपनी जिम्मेदारी निभाते हुए इस तरह की अवैध गतिविधियों पर तत्काल कड़ी कार्यवाही करनी चाहिए।

इस संबंध में कानूनी स्थिति और संबंधित नियम इस प्रकार है जिनमें वन विभाग के नाके पर अवैध कब्जा करने और वहां पक्का निर्माण करने के खिलाफ वन संरक्षण अधिनियम, 1980 और वन (संरक्षण) नियम, 2003 के तहत कड़ी कार्यवाही की जानी चाहिए। इस अधिनियम के तहत कोई भी व्यक्ति बिना अनुमति के वन भूमि पर निर्माण कार्य नहीं कर सकता है। धारा 2 के तहत वन क्षेत्र में किसी भी प्रकार के अवैध कब्जे और निर्माण को रोकने के लिए विभाग को तत्काल कदम उठाने चाहिए।

वहीं दूसरी ओर अगर वन विभाग का नाका राजस्व भूमि में निर्मित था तो छत्तीसगढ़ राज्य भूमि नीति के तहत किसी भी सार्वजनिक या सरकारी भूमि पर अवैध कब्जा करना अपराध है। इसके लिए धारा 447 भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) के तहत जबरन कब्जा करने पर दंड का प्रावधान है। इस मामले में, इस अवैध निर्माण के खिलाफ राजस्व विभाग को कार्रवाई करनी चाहिए। राजस्व विभाग के तहत, सरकारी भूमि पर अवैध कब्जे को नंबर 1 अपराध माना जाता है। इस अवैध कब्जे को हटाने के लिए विभाग को अवश्य कार्यवाही करनी चाहिए, और संबंधित व्यक्ति के खिलाफ राजस्व विभाग को आदेश जारी करने चाहिए। लेकिन यहां भी संबंधित एसडीएम, तहसीलदार व पटवारी की भूमिका संदिग्ध है।

सुर्खियों में दल्ली राजहरा वन विभाग का मामला
सुर्खियों में दल्ली राजहरा वन विभाग का मामला

हाल ही में, सन 2024 में भारत के माननीय सर्वोच्च न्यायालय (सुप्रीम कोर्ट ऑफ इंडिया) ने सार्वजनिक और सरकारी भूमि पर अवैध कब्जे के खिलाफ एक सख्त आदेश जारी किया है। इस आदेश में सुप्रीम कोर्ट ने साफ तौर पर कहा है कि सार्वजनिक और सरकारी भूमि पर अवैध कब्जा करने वालों के खिलाफ कड़ी कार्यवाही की जाए और किसी भी प्रकार के अवैध कब्जे को सुनिश्चित तरीके से हटाया जाए। यह आदेश भूमि कब्जे के मामलों में सरकारी विभागों और अधिकारियों को अपनी जिम्मेदारी समझने के लिए एक चेतावनी के रूप में देखा जा रहा है। आपको बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकारों को सख्त निर्देश दिया कि वे सरकारी भूमि और सार्वजनिक संपत्ति पर अवैध कब्जे को त्वरित तरीके से हटाएं। यह आदेश स्पष्ट रूप से कहा गया है कि किसी भी प्रकार का अवैध कब्जा किसी भी स्थिति में स्वीकृत नहीं किया जाएगा और इसे जल्द से जल्द हटाना होगा।

छत्तीसगढ़ बिजली विभाग द्वारा अवैध तरीके से बिजली कनेक्शन देना एक गंभीर अपराध है। भारतीय विद्युत अधिनियम, 2003 की धारा 135 के तहत अवैध बिजली कनेक्शन पर कार्यवाही का प्रावधान है। अवैध कनेक्शन और मीटर लगाने के लिए विभागीय अधिकारियों पर दंडात्मक कार्रवाई की आवश्यकता है। बिजली विभाग को अवैध कनेक्शन और मीटर लगाने के मामले में जिम्मेदार अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई करनी चाहिए और विद्युत अधिनियम, 2003 के तहत जुर्माना और सजा का प्रावधान लागू करना चाहिए।

वहीं बालोद वन मंडलाधिकारी (डीएफओ) बीएस सरोटे और दल्ली राजहरा वन परिक्षेत्र अधिकारी (आरएफओ) मूलचंद शर्मा पर किसी अवैध कब्जे या अनियमितता के लिए कानूनी कार्यवाही की जा सकती है, खासकर यदि उनके द्वारा अपने कर्तव्यों का पालन न किया गया हो या यदि उन्होंने अपनी जिम्मेदारी में लापरवाही बरती हो। यदि वन विभाग के नाके पर अवैध कब्जा हुआ है और संबंधित अधिकारियों ने समय पर कार्यवाही नहीं की या उचित कार्यवाही नहीं की, तो उन पर निम्नलिखित कार्यवाही की जा सकती है। जिसमें यदि वन मंडलाधिकारी या वन परिक्षेत्र अधिकारी ने अपनी जिम्मेदारी का सही तरीके से निर्वहन नहीं किया है या किसी अवैध गतिविधि को नजरअंदाज किया है, तो उन्हें निलंबित किया जा सकता है। निलंबन का आदेश उच्चाधिकारी वन संरक्षक दुर्ग द्वारा दिया जा सकता है।

वहीं इस गंभीर मामले पर विभागीय जांच (डिपार्टमेंटल इंक्वायरी) भी की जा सकती है। यदि यह साबित हो जाए कि वन विभाग के अधिकारी ने जानबूझकर या लापरवाही से अवैध कब्जे को बढ़ावा दिया है या उसे रोकने के लिए उचित कदम नहीं उठाए, तो उनके खिलाफ विभागीय जांच शुरू की जा सकती है। विभागीय जांच में यह देखा जाएगा कि अधिकारी ने अपनी जिम्मेदारी पूरी की थी या नहीं। यदि जांच में दोषी पाए जाते हैं, तो संबंधित वन परिक्षेत्र अधिकारी तथा वन मंडलाधिकारी को नौकरी से बर्खास्त भी किया जा सकता है।

वहीं गुप्त सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक इलाके में चर्चा है कि वन विभाग के नाके पर अवैध कब्जाधारी द्वारा रेंजर तथा डिप्टी रेंजर को पहले ही रिश्वत के तौर पर बंद लिफाफा भेंट किया जा चुका है जिसके कारण इस मामले पर समाचार के प्रकाशन के बावजूद विभागीय अधिकारियों द्वारा अवैध कब्जाधारी के आदेशों का पालन किया जा रहा है। साफ शब्दों में अवैध कब्जाधारी के आगे ये नतमस्तक है, जो बेहद शर्मनाक विषय है। वहीं बालोद डीएफओ द्वारा इस गंभीर मामले पर चुप्पी साधना इस ओर इशारा है कि मोटा लिफाफा उन्हें भी पहुंचा दिया गया है। वहीं गुप्त सूत्रों ने यह नहीं बताया कि भेंट किए गए बंद लिफ़ाफ़ों में क्या था? वहीं ग्राम पंचायत कुसुमकसा के सरपंच शिवराम सिंद्रामें इस पूरे मामले से अनभिज्ञ है। जो कही ना कही यह बात किसी के गले नहीं उतर रही।

Firoz Ahmad Khan

जिला प्रभारी : बालोद
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