फिरोज अहमद खान (पत्रकार)
बालोद। जिले के दल्ली राजहरा वन परिक्षेत्र के वन अधिकार पट्टा वितरण के नाम पर वनवासियों से अनर्गल तरीके से लाखों रुपए की अवैध वसूली की बात सामने आ रही है। आपको बता दें कि वन अधिकार अधिनियम, 2006 के तहत, वन में रहने वाले समुदायों और आदिवासी आबादी के अधिकारों को मान्यता दी गई है। इस अधिनियम के तहत, अनुसूचित जनजातियों और अन्य पारंपरिक निवासियों को वन भूमि में कब्ज़ा करने का अधिकार प्राप्त है। इन लोगों को जंगल से नहीं निकाला जा सकता और जंगल की सुरक्षा का काम उनकी ग्राम सभा को करना होता है। लेकिन वन अधिकार पट्टा वितरण के नाम से गरीब ग्रामीणों से अनर्गल तरीके से लाखों रुपए की अवैध वसूली की बात निकल कर सामने आ रही है। जिसको लेकर नलकसा सर्किल क्षेत्र के ग्रामीणों में काफी आक्रोश व्याप्त है। सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार पूर्व में भी उक्त सहायक वन परिक्षेत्र अधिकारी द्वारा किसी न किसी तरीके से वनवासियों को प्रताड़ित कर अवैध वसूली की जाती रही है। लेकिन हद तब हो गई जब शासन द्वारा वन अधिकार पट्टा का वितरण किया जा रहा था तो नलकसा सर्किल से सहायक वन परिक्षेत्र अधिकारी महेश साहू द्वारा वन अधिकार पट्टा देने के नाम से वनवासियों को दिग्भ्रमित कर अवैध वसूली कर तिजोरी भरी जा रही है। जिसको लेकर ग्रामीणों में काफी आक्रोश देखने को मिल रहा है।
ग्रामीणों का कहना है कि हमसे लाखों रुपए लेकर आज पर्यंत तक वन अधिकार पट्टा जारी नहीं किया गया है। लेकिन अभी भी उक्त सहायक वन परिक्षेत्र अधिकारी द्वारा कागजी कार्यवाही में बाधा कहकर अवैध वसूली की जा रही है। हम गरीब लोग क्या अपना घर बार बेचकर डिप्टी रेंजर महेश साहू का कुंभकरणी पेट भरें। अब तो हद हो गई है, जुल्म के खिलाफ हम सभी ने एक होकर उच्चाधिकारियों तक शिकायत करने ठान ली है। वन संरक्षक द्वारा इस मामले की जांच पड़ताल की जाए तो आगे और भी खुलासा होगा।
वहीं गुप्त सूत्रों से प्राप्त जानकारी के अनुसार नलकसा सर्किल में मनरेगा के तहत जितने भी कार्य हुए है चाहे वह नरवा घुरवा सहित अन्य कार्यों में सहायक वन परिक्षेत्र अधिकारी महेश साहू के परिवार के लोग भी अनाधिकृत रूप से कार्य किए है। बकायदा उनका जॉब कार्ड भी बना हुआ है।
वन अधिकार पट्टा, वन अधिकार अधिनियम, 2006 के तहत जारी किया जाता है। यह पट्टा, वन में रहने वाले अनुसूचित जनजातियों और अन्य परंपरागत वन निवासियों को दिया जाता है। इस अधिनियम के तहत, वन अधिकारों और वन भूमि में रहने के अधिकार को शासन स्तर पर मान्यता दी जाती है. इस अधिनियम के तहत, वन अधिकारों के धारकों के कुछ कर्तव्य भी हैं जिनमें वन्य जीवन, वन, और जैव विविधता का संरक्षण करना। जलग्रहण क्षेत्र, जलस्रोत, और अन्य संवेदनशील क्षेत्रों की सुरक्षा सुनिश्चित करना। अनुसूचित जनजाति और अन्य परंपरागत वन निवासियों के निवास स्थान और सांस्कृतिक विरासत को सुरक्षित रखना। सामाजिक वनों के स्रोतों का विनियमन करना। वन्य पशु, वन, और जैव विविधता को नुकसान पहुंचाने वाले कामों को रोकना शामिल है।
वन अधिकार अधिनियम, 2006 को ‘जनजातीय अधिकार अधिनियम’ और ‘जनजातीय भूमि अधिनियम’ के नाम से भी जाना जाता है। ग्रामीणों को वन अधिकार पट्टे को लेकर किसी तरह की शिकायत है, तो वे वन अधिकार समिति से संपर्क कर सकते हैं। वन अधिकार समिति, ग्राम सभा के सदस्यों में से कम से कम दस और ज़्यादा से ज़्यादा पंद्रह लोगों से मिलकर बनती है। वन अधिकार समिति, घुमक्कड़ आदिवासी और जनजातियों के अधिकारों को सुनिश्चित करती है।