सिस्टम का ‘मर्डर’ : बिल्डर की फॉर्च्यूनर ने बच्चे को रौंदा, 4 दिन तक FIR दबाए बैठी रही पुलिस; पिता का सवाल- ‘बेटा मेरा मरा, रिपोर्ट लिखाने वाला ‘वो’ कौन?’…

दुर्ग। सड़क पर बिखरा खून सूख गया, मासूम का शव राख में बदल गया, लेकिन अमलेश्वर पुलिस 96 घंटे (4 दिन) तक ‘साहब’ को बचाने का गणित लगाती रही। मामला दुर्ग जिले के हाई-प्रोफाइल NK कंस्ट्रक्शन के मालिक और बिल्डर नारायण अग्रवाल की फॉर्च्यूनर (CG 08 AW 9300) का है, जिसने साइकिल सवार दो मासूमों को बेरहमी से कुचल दिया।
हादसे में 12 साल के टकेश्वर साहू की मौके पर ही दर्दनाक मौत हो गई, जबकि 10 साल का प्रहलाद यदु वेंटिलेटर पर मौत से जंग लड़ रहा है। लेकिन इस त्रासदी से भी ज्यादा भयानक पुलिस का रवैया है।
खाकी का ‘खेल’ : रसूख के आगे नतमस्तक कानून? – 29 नवंबर की दोपहर 2 बजे हादसा हुआ। CCTV फुटेज चीख-चीख कर गवाही दे रहा है, चश्मदीद मौजूद थे, लेकिन पुलिस 4 दिन तक FIR दर्ज करने की हिम्मत नहीं जुटा पाई।
- सवाल 1: एक्सीडेंट के बाद स्थानीय लोगों ने सूचना दी, पुलिस मौके पर क्यों नहीं पहुंची?
- सवाल 2: थाने में फॉर्च्यूनर खड़ी करवा ली गई, लेकिन ड्राइवर को बिना FIR के जाने क्यों दिया गया? क्या ऊपर से कोई ‘फोन’ आया था?
पिता का दर्द और पुलिस की थ्योरी में ‘झोल’ – पुलिस का दावा है कि परिवार अंतिम संस्कार में व्यस्त था, इसलिए FIR में देरी हुई। लेकिन मृतक टकेश्वर के पिता रोहित साहू ने इस दावे की धज्जियां उड़ा दी हैं।
रोहित साहू का कहना है, “मैं हादसे वाली शाम (29 नवंबर) ही थाने गया था। पुलिस ने मुझे यह कहकर लौटा दिया कि अभी रिपोर्ट नहीं आई है। मेरा बेटा मरा है, मैं न्याय के लिए भटक रहा था और उन्होंने मुझे भगा दिया।”
अजान अजनबी बना फरियादी: आखिर पुलिस क्या छिपा रही है? – हैरानी की बात यह है कि पुलिस ने पिता की शिकायत लेने के बजाय, 4 दिन बाद एक ‘तीसरे शख्स’ वैभव शास्त्री (फार्मा मैनेजर) की शिकायत पर FIR दर्ज की।
पिता रोहित साहू का आक्रोश जायज है: “बेटा मेरा मरा है, तो FIR करवाने वाला वह दूसरा शख्स कौन होता है? मैं उसे जानता तक नहीं। जब मैं अपने बेटे की चिता को आग दे रहा था, पुलिस ने पीठ पीछे किसी और से कागज तैयार करवा लिया। न्याय मिलने तक मैं शांत नहीं बैठूंगा।”
जानकार बताते हैं कि यह पुलिस की पुरानी चाल है – कमजोर धाराओं में केस दर्ज करने के लिए अक्सर ‘मैनेज्ड’ गवाहों का इस्तेमाल किया जाता है ताकि कोर्ट में केस कमजोर हो जाए।
बिल्डर पर मेहरबानी, ड्राइवर की कुर्बानी? – भारी दबाव और मीडिया में खबर आने के बाद पुलिस ने ड्राइवर भुनेश्वर साहू को गिरफ्तार कर खानापूर्ति कर दी है। धाराएं भी वही पुरानी (BNS 281, 106(1) आदि), जिनमें आसानी से जमानत मिल जाए।
सबसे बड़ा सवाल यह है कि जिस गाड़ी (फॉर्च्यूनर) से हादसा हुआ, वह बिल्डर नारायण अग्रवाल के नाम पर है। पुलिस का कहना है कि मालिक को बाद में नोटिस दिया जाएगा। यानी, ‘ड्राइवर को जेल, मालिक को बेल’ वाला पुराना खेल शुरू हो चुका है।
इंसाफ की भीख या हक? – एक पिता अपने बेटे के कातिलों को सजा दिलाने के लिए थाने की चौखट पर खड़ा था, और पुलिस उसे लौटा रही थी क्योंकि गाड़ी किसी ‘बड़े आदमी’ की थी। टकेश्वर की जान तो वापस नहीं आ सकती, लेकिन अमलेश्वर पुलिस की यह भूमिका बताती है कि गरीबों के बच्चों की जान की कीमत ‘फॉर्च्यूनर’ के बंपर से ज्यादा कुछ नहीं है।



