मुख्यमंत्री के गृह जिले जशपुर से उठी लोकतंत्र की चीख : क्या मुख्यमंत्री की चुप्पी और जनसंपर्क आयुक्त की खामोशी ने पत्रकारों को डराने की साज़िश को दिया सहारा?…

जशपुरनगर। जिले में पत्रकारों को डराने और उनकी आवाज़ दबाने की घिनौनी साज़िश उजागर हो चुकी है। जनसंपर्क अधिकारी नूतन सिदार पर आरोप है कि उन्होंने अपने कर्मचारी रविन्द्र की थाने में दी गई शिकायत को हथियार बनाकर पत्रकारों के खिलाफ मानहानि नोटिस और धमकियों की बौछार कर दी। सवाल यह है कि क्या यह सब किसी बड़े संरक्षण और मौन सहमति के बिना संभव है?
करोड़ों की मानहानि और आत्महत्या कर फँसाने की धमकी : पत्रकारों को खामोश करने के लिए एक-एक करोड़ रुपये के मानहानि नोटिस भेजे गए। इतना ही नहीं, फोन कर आत्महत्या में फँसाने की धमकी तक दी गई। यह सिर्फ एक प्रशासनिक अधिकारी की मनमानी नहीं, बल्कि पूरे शासन-प्रशासन की भूमिका पर सवाल खड़े करता है।
जनसंपर्क आयुक्त की भूमिका पर गंभीर प्रश्न : जनसंपर्क विभाग मुख्यमंत्री के प्रत्यक्ष नियंत्रण में होता है। ऐसे में यह घटनाक्रम सिर्फ नूतन सिदार तक सीमित नहीं माना जा सकता।
- जनसंपर्क आयुक्त, जो आयुक्त बनने से पूर्व में जशपुर के कलेक्टर भी रह चुके हैं, क्या इस पूरे मामले से अनजान हैं?
- अगर जानते हैं तो कार्रवाई क्यों नहीं?
- और अगर नहीं जानते तो क्या यह विभाग पूरी तरह बेलगाम और बेकाबू हो चुका है?
मुख्यमंत्री की चुप्पी – सबसे बड़ा सवाल : जनसंपर्क विभाग सीधे मुख्यमंत्री के अधीन होता है। इसलिए यह स्वाभाविक सवाल है कि:
- जब पत्रकारों को करोड़ों की मानहानि नोटिस मिल रही है,
- जब आत्महत्या में फँसाने जैसी धमकियाँ दी जा रही हैं,
- जब शासकीय ग्रुप का निजीकरण कर पत्रकारों का अपमान किया जा रहा है,
तो मुख्यमंत्री अब तक चुप क्यों हैं?
क्या मुख्यमंत्री की यह चुप्पी नूतन सिदार और उनके संरक्षकों के हौसले को और बुलंद नहीं कर रही?
कलेक्टर और प्रशासन मौन क्यों? शासकीय ग्रुप में हुए इस अपमानजनक घटनाक्रम के दौरान स्वयं कलेक्टर रोहित व्यास भी मौजूद रहे। स्क्रीनशॉट सोशल मीडिया पर वायरल हुआ, लेकिन कलेक्टर और पुलिस प्रशासन दोनों ने चुप्पी साध ली। यह खामोशी साफ संकेत देती है कि सत्ता और प्रशासन दोनों पत्रकारों को डराने की साजिश में मौन सहमति से शामिल हैं।
लोकतंत्र के लिए खतरे की घंटी : पत्रकारिता पर यह हमला केवल जशपुर तक सीमित नहीं है। यह उस पूरे तंत्र की मानसिकता को उजागर करता है, जहां पत्रकारों को चुप कराने के लिए सरकारी मंचों का दुरुपयोग किया जा रहा है और मुख्यमंत्री से लेकर शीर्ष अधिकारी तक खामोश बैठे हैं।
जनता के सवाल मुख्यमंत्री से :
- क्या मुख्यमंत्री बताएंगे कि उनके अधीन आने वाला जनसंपर्क विभाग अब ‘जन’ का नहीं, बल्कि ‘भय विभाग’ क्यों बन गया है?
- क्या जनसंपर्क सहायक संचालक जशपुर नूतन सिदार और उनके संरक्षकों पर कोई कार्रवाई करेंगे या फिर चुप्पी साधे रहेंगे?
- और अगर मुख्यमंत्री भी चुप हैं, तो क्या यह मान लिया जाए कि यह पूरी साजिश शीर्ष स्तर की मौन स्वीकृति से संचालित हो रही है?
जशपुर का यह घटनाक्रम लोकतंत्र की रीढ़ पर सीधा प्रहार है। अगर मुख्यमंत्री और जनसंपर्क आयुक्त इस पर कार्रवाई नहीं करते, तो यह साफ संदेश होगा कि सरकार अब पत्रकारों को डराने और उनकी कलम तोड़ने की खुली मुहिम चला रही है।…
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