जिले की सड़कों पर मवेशियों का कब्जा, यातायात और जनसुरक्षा पर बड़ा खतरा

फिरोज अहमद खान (पत्रकार)
बालोद। जिले में इन दिनों सड़कों पर मवेशियों का डेरा आम हो गया है। हर गली, चौराहे और मुख्य मार्ग पर गाय, बेल और सांडों का जमावड़ा वाहन चालकों और राहगीरों के लिए खतरे की घंटी बन चुका है। लगातार बढ़ती सड़क दुर्घटनाओं ने आम जनता की सुरक्षा और यातायात व्यवस्था दोनों को चुनौती दे दी है।
बालोद जिले के शहरी और ग्रामीण इलाकों खासकर दल्ली राजहरा, बालोद, गुरूर, डौंडीलोहारा, अर्जुन्दा तथा गुण्डरदेही में सड़कों पर मवेशियों का खुलेआम घूमना और बैठना अब आम बात हो गई है। वाहन चालकों को हर मोड़ और चौक पर अचानक मवेशियों के झुंड का सामना करना पड़ता है, जिससे दुर्घटनाओं की आशंका लगातार बनी रहती है। खासकर रात के समय, जब दृश्यता कम होती है, तो ये मवेशी सड़क पर बैठे-बैठे अचानक सामने आ जाते हैं, जिससे दोपहिया, चारपहिया और भारी वाहनों की टक्कर की घटनाएं बढ़ रही हैं।
बीते छह महीनों में बालोद जिले में अलग अलग जगहों पर मवेशियों के कारण कई सड़क हादसे हो चुके हैं, जिनमें कई लोग घायल हुए और कुछ को अपनी जान भी गंवानी पड़ी। आपको बता दें कि दल्ली राजहरा में मवेशियों पर काबू पाने नगर पालिका परिषद के पास कोई पुख्ता उपाय है ही नहीं। आम नागरिकों का कहना है कि प्रशासन और नगर निकायों द्वारा मवेशियों को पकड़ने और उन्हें सुरक्षित स्थानों पर भेजने के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाए जा रहे हैं। इससे न केवल यातायात बाधित हो रहा है, बल्कि आम लोगों की जान भी खतरे में पड़ रही है।
इस समस्या पर नियंत्रण के लिए भारतीय मोटर वाहन अधिनियम 1988 की धारा 122 और 177 का उल्लेख है। इन धाराओं के तहत, यदि कोई व्यक्ति अपने मवेशियों को सार्वजनिक सड़कों पर छोड़ता है या लावारिस घूमने देता है, तो उस पर जुर्माना लगाया जा सकता है। साथ ही, छत्तीसगढ़ नगर पालिका अधिनियम की धारा 278 के अनुसार, नगरीय निकायों को अधिकार है कि वे लावारिस मवेशियों को पकड़कर गौशाला या सुरक्षित स्थान पर भेजें और लापरवाह पशु मालिकों पर कार्यवाही करें।
ग्राम पंचायतों की जिम्मेदारी भी इस मामले में अहम है। वे अपने क्षेत्र में मवेशियों के आवागमन पर नियंत्रण रखें और पशु मालिकों को जागरूक करें कि वे अपने पशुओं को सार्वजनिक सड़कों पर न छोड़ें। ग्राम पंचायतों को लावारिस मवेशियों को पकड़कर सुरक्षित स्थानों पर भेजने और पशु मालिकों के खिलाफ उचित कार्यवाही करने में सक्रिय भूमिका निभानी चाहिए। साथ ही, वे स्थानीय स्तर पर पशुधन विभाग और पुलिस के साथ समन्वय बनाकर समस्या के स्थायी समाधान में मदद करें।
पशुधन विभाग और नगर पंचायतों की जिम्मेदारी है कि वे नियमित रूप से मवेशियों को पकड़ने के लिए अभियान चलाएं और पशु मालिकों को जागरूक करें कि वे अपने मवेशियों को सड़कों पर न छोड़ें। इसके अलावा, यातायात पुलिस भी लगातार वाहन चालकों से अपील कर रही है कि वे सड़क पर मवेशी दिखने पर सतर्क रहें, सीमित गति में वाहन चलाएं और ट्रैफिक नियमों का पालन करें।
अक्सर देखा जाता है कि कई लोग गौ सेवा और गौ रक्षा का दिखावा तो करते हैं, लेकिन असल में वही लोग मवेशियों को सड़कों से हटाकर सुरक्षित स्थान तक नहीं पहुंचते। वहीं ये लोग खुद अपने मवेशियों को सड़कों पर खुला छोड़ देते हैं। ये लोग मंचों और मीडिया में गायों की रक्षा की बड़ी बड़ी बातें करते हैं, लेकिन जब जिम्मेदारी निभाने की बारी आती है तो गायों को लावारिस सड़कों पर छोड़ देते हैं, जिससे सड़क हादसे और जनसुरक्षा की समस्या बढ़ती है। ऐसे विरोधाभासी व्यवहार से न सिर्फ गौ सेवा की भावना को ठेस पहुंचती है, बल्कि समाज में अव्यवस्था भी फैलती है।
बालोद जिला प्रशासन भी इस गंभीर मामले पर आंख मुंदे बैठा हुआ है। जिला प्रशासन को चाहिए कि वह पशुधन विभाग, नगरीय निकाय, ग्राम पंचायत और पुलिस के बीच समन्वय बनाकर मवेशियों की समस्या का स्थायी समाधान निकाले। साथ ही, आम नागरिकों को भी जागरूक किया जाए कि वे अपने पशुओं को सड़कों पर न छोड़ें, ताकि सड़क दुर्घटनाओं में कमी लाई जा सके और जनसुरक्षा को प्राथमिकता दी जा सके।