सरकारी जमीन पर अवैध कसाईघर संचालित, सार्वजनिक स्वास्थ्य और नियमों की उड़ाई जा रही धज्जियां

फिरोज अहमद खान (पत्रकार)
बालोद। साप्ताहिक बाजार में अवैध कब्जा कर कसाईघर संचालित किए जाने को लेकर कुसुमकसा ग्राम पंचायत सहित जिम्मेदार प्रशासनिक अधिकारियों की चुप्पी ग्रामीणों के गले नहीं उतर रही। जिले की डौंडी तहसील अंतर्गत ग्राम कुसुमकसा के साप्ताहिक बाजार परिसर में एक बड़ा मामला सामने आया है जहां सरकारी जमीन पर अवैध रूप से कब्जा कर एक कसाईघर (बूचड़खाना) संचालित किया जा रहा है। यह कसाईघर न केवल प्रशासनिक और कानूनी नियमों को ताक पर रखकर चल रहा है, बल्कि लोगों के स्वास्थ्य के साथ भी खुला खिलवाड़ कर रहा है।
कसाईघर संचालक वहीद अली, जो ग्राम कुसुमकसा में धान खरीदी केंद्र में चपरासी के पद पर पदस्थ हैं, ने बाजार के लिए आरक्षित भूमि पर बिना पंचायत की अनुमति के पक्का निर्माण कर लिया है। यह पूरी तरह से छत्तीसगढ़ पंचायत राज अधिनियम, 1993, एवं लोक स्वास्थ्य अधिनियम का उल्लंघन है।
चौंकाने वाली बात यह है कि कसाईघर से निकलने वाले मांस, खून और अन्य अपशिष्ट खुले में फेंके जा रहे हैं, जिससे आसपास के वातावरण में बदबू और गंदगी फैली हुई है। इससे न केवल बाजार में आने-जाने वाले लोगों को असुविधा हो रही है बल्कि यह गंभीर स्वास्थ्य संकट भी बन चुका है।
स्वास्थ्य विभाग एवं प्रशासन की अनदेखी से संचालित इस बूचड़खाने में जानवरों के वध से पूर्व किसी प्रकार की पशु चिकित्सकीय जांच नहीं करवाई जाती। इससे यह आशंका भी जताई जा रही है कि संक्रमित जानवरों का मांस खुलेआम बेचा जा रहा है, जो मांस उपभोक्ताओं के लिए जानलेवा साबित हो सकता है।
ग्राम पंचायत कुसुमकसा के साप्ताहिक बाजार की सरकारी जमीन पर अवैध कब्जा कर कसाईघर (बूचड़खाना) जैसे निर्माण कर संचालित करना पंचायती राज अधिनियम व अन्य संबंधित कानूनों के उल्लंघन में आता है। ऐसे मामलों में भूमि अतिक्रमण की कार्यवाही (छत्तीसगढ़ पंचायत राज अधिनियम, 1993) के तहत धारा 49 व 85 के तहत पंचायत को अधिकार है कि वह पंचायत क्षेत्र में सार्वजनिक भूमि पर हुए अवैध निर्माण या अतिक्रमण को हटाने की कार्यवाही करे।
अगर बाजार हेतु आरक्षित भूमि का उपयोग अन्य उद्देश्य से हो रहा है (जैसे कसाईघर), तो यह सार्वजनिक उद्देश्य के विरुद्ध है और इसे हटाने के लिए पंचायत सचिव अथवा ग्राम सभा प्रस्ताव पारित कर सकती है। ऐसे अनधिकृत निर्माण पर राजस्व विभाग की कार्यवाही की जाती है जिसमें तहसीलदार द्वारा धारा 248 (छ.ग. भू-राजस्व संहिता) के तहत अतिक्रमण हटाने की प्रक्रिया प्रारंभ की जा सकती है।
पशु वध एवं पर्यावरणीय मानकों के उल्लंघन के तहत कसाईघर जैसे गतिविधियों के लिए पशु क्रूरता निवारण अधिनियम व प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की अनुमति आवश्यक होती है। बिना अनुमति के संचालन गैरकानूनी है और एफआईआर दर्ज हो सकती है। बिना प्रशासनिक एवं स्वास्थ्य विभाग की अनुमति के कसाईघर (बूचड़खाना) संचालित करना कई कानूनों और नियमों का उल्लंघन है। ऐसे मामलों में सार्वजनिक स्वास्थ्य अधिनियम, 1934 के तहत किसी भी खाद्य वस्तु से जुड़ी गतिविधि जिसमें मांस, मछली या मुर्गा शामिल हो, उसके संचालन से पहले स्वास्थ्य विभाग की अनुमति जरूरी होती है। बिना स्वीकृति के ऐसे स्थानों पर मांस कटान से सार्वजनिक स्वास्थ्य को खतरा होता है, जो कानूनन दंडनीय है।
वही पशु क्रूरता निवारण अधिनियम, 1960 के तहत अवैध कसाईघरों में जानवरों का वध इस अधिनियम का उल्लंघन है। सभी कसाईघरों को भारतीय पशु कल्याण बोर्ड (एडब्ल्यूबीआई) से मान्यता लेनी होती है। खाद्य सुरक्षा एवं मानक अधिनियम, 2006 (एफएसएसएआई एक्ट) के तहत मांस प्रसंस्करण या विक्रय के लिए एफएसएसएआई का रजिस्ट्रेशन/लाइसेंस अनिवार्य है। बिना लाइसेंस के मांस विक्रय या कटाई से खाद्य सुरक्षा मानकों का उल्लंघन होता है।
पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 1986 के तहत कसाईघर संचालन से उत्पन्न कचरा व अपशिष्ट जल अगर निस्तारित नहीं किया गया, तो यह पर्यावरणीय उल्लंघन है और इसके लिए छ.ग. राज्य प्रदूषण नियंत्रण मंडल से अनुमति अनिवार्य होती है।
स्थानीय ग्रामीणों ने जिला प्रशासन, पंचायत व स्वास्थ्य विभाग से मांग की है कि अविलंब इस अवैध कसाईघर को बंद किया जाए, वहीद अली पर सख्त विभागीय व कानूनी कार्यवाही की जाए और सार्वजनिक स्थान को मुक्त कराया जाए। यदि प्रशासन ने जल्द कार्रवाई नहीं की, तो यह मामला गंभीर जनआंदोलन का रूप ले सकता है।