प्रशासनिक रुतबे की आड़ में अत्याचार! तहसीलदार का घर बना अन्याय का प्रतीक, भूखी-प्यासी बहुएं घर की दहलीज पर बैठी न्याय की आस में

फिरोज अहमद खान (पत्रकार)
बालोद। सरकारी सेवा में ऊंचे ओहदे पर बैठे एक परिवार का चेहरा इन दिनों कानून और सामाजिक न्याय के लिए सबसे बड़ा सवाल बन चुका है। बालोद जिले के सिटी कोतवाली थाना अंतर्गत ग्राम झलमला में एक चौंकाने वाला मामला सामने आया है, जहां दो बहुएं बीते पांच दिनों से अपने ससुराल के बाहर भूखे-प्यासे बैठकर न्याय की गुहार लगा रही हैं।
सास-ससुर द्वारा घर में प्रवेश से रोके जाने और दरवाजा बंद कर भीतर बैठ जाने से परेशान दोनों बहुओं की स्थिति दयनीय हो गई है। बड़ी बहू रेनू गुप्ता के पति राहुल गुप्ता दंतेवाड़ा में तहसीलदार हैं, जबकि ससुर सतीश चंद्र गुप्ता मत्स्यपालन विभाग में सहायक संचालक पद पर पदस्थ हैं। वहीं, छोटी बहू वंदना गुप्ता का पति रोहित गुप्ता भी गायब बताया जा रहा है।
स्थानीय ग्रामीण बहुओं के समर्थन में जुटे हुए हैं, लेकिन प्रशासनिक तंत्र और पुलिस की निष्क्रियता इस मामले को और गंभीर बना रही है। दोनों बहुओं ने आरोप लगाया है कि उन्हें न सिर्फ घर से बाहर निकाल दिया गया, बल्कि उनका जबरन गर्भपात कराया गया। यह गंभीर कानूनी अपराध है और भारतीय दंड संहिता (बीएनएस) व मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट के तहत संज्ञेय अपराध की श्रेणी में आता है।
रेनू गुप्ता ने कहा, “हमारी शादी 25 नवंबर 2022 को रीति-रिवाजों से हुई थी, लेकिन ससुराल वालों ने हमें कभी सम्मान नहीं दिया। अब जब प्रेग्नेंट हुई, तो जबरन अबॉर्शन करा दिया। यह न केवल मेरे अधिकारों का हनन है, बल्कि महिला सम्मान और कानून की सीधी अवहेलना भी है।”
वहीं, वंदना गुप्ता ने बताया, “मेरे पति को ससुराल पक्ष ने कहीं छुपा दिया है। हमें घर में घुसने नहीं दिया जा रहा। सास-ससुर को उनके पद और प्रशासनिक पहुंच का घमंड है। प्रशासन भी चुप है क्योंकि आरोपी अधिकारी हैं।”
इस घटना की जानकारी पहले ही पुलिस को दी गई थी। पुलिस मौके पर जरूर पहुंची, लेकिन सिर्फ औपचारिकता निभाकर लौट गई। न कोई प्राथमिकी दर्ज की गई और न ही पीड़ितों की सुरक्षा की कोई व्यवस्था।
भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस), 2023 के अनुसार यदि किसी महिला का बेवकूफ बनाकर, जबरन या दबाव डालकर गर्भपात कराया जाता है, तो यह गंभीर अपराध है जिसमें ससुराल पक्ष के सभी लोग जिम्मेदार हो सकते है और इस पर धारा 88 (बीएनएस 2023) महिला की सहमति के बिना गर्भपात कराना लागू होती है। यदि महिला की सहमति के बिना गर्भपात कराया गया हो, तो यह अपराध है। जिस पर 10 वर्ष तक की सजा या आजीवन कारावास और जुर्माना।
धारा 89 (बीएनएस 2023) में गर्भवती महिला की सहमति से भी जबरन/भ्रम/दबाव में गर्भपात कराने यदि सहमति भ्रम, दबाव या ठगी से ली गई हो या जबरदस्ती करवाई गई हो, तो अपराध है। जिस पर 10 वर्ष तक का कारावास और जुर्माना है। धारा 90 (बीएनएस 2023) में गर्भवती महिला पर शारीरिक या मानसिक क्षति का प्रयास। जबरन गर्भपात से महिला को गंभीर नुकसान पहुंचा है, तो यह भी लागू होती है।
धारा 73 (बीएनएस 2023) में स्वेच्छा से महिला को चोट पहुंचाना। जबरन गर्भपात करवाते समय जो भी शारीरिक क्षति हुई हो, उस पर यह धारा लागू हो सकती है। वही इस मामले पर अन्य संबंधित कानून है जिसमें मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी (एमटीपी) Act, 1971 (संशोधित) के तहत भी यह गैरकानूनी है यदि महिला की स्पष्ट और स्वतंत्र सहमति न हो। गर्भपात अनधिकृत व्यक्ति द्वारा किया गया हो या वह 20 सप्ताह के बाद हुआ हो (कुछ मामलों में 24 सप्ताह तक अनुमति है)।
यह मामला सिर्फ एक पारिवारिक विवाद नहीं, बल्कि सत्ता और पद के दुरुपयोग का जीवंत उदाहरण बन चुका है। जब सत्ताधारी परिवार की बहुएं न्याय के लिए घर की दहलीज पर भूखी-प्यासी बैठने को मजबूर हों और प्रशासन मूकदर्शक बना रहे, तो सवाल पूरे सिस्टम पर उठना लाजिमी है।
दोनों बहुओं का साफ कहना है कि जब तक उन्हें न्याय और उनके अधिकार नहीं मिलते, वे वहीं धरने पर बैठी रहेंगी। उन्होंने यह भी कहा कि उनका विवाह विधिवत हुआ है और उनके भी उस घर पर उतना ही अधिकार है जितना किसी और का।
अब देखना होगा कि क्या प्रशासन “जिसमें एक महिला कलेक्टर के पद पर आसीन है”, महिला आयोग और न्यायिक तंत्र इस शर्मनाक प्रकरण में हस्तक्षेप कर पीड़ित महिलाओं को न्याय दिलाएगा या यह मामला भी कागज़ों में दबकर रह जाएगा।