बालोद

तांदुला में अवैध रेत उत्खनन : विभागीय लापरवाही से पुल की नींव पर गंभीर संकट मंडरा रहा

फिरोज अहमद खान (पत्रकार)
बालोद/डौंडी। बालोद जिले के ग्राम घोटिया में तांदुला नदी के नीचे हो रहे अवैध रेत उत्खनन ने प्रशासनिक लापरवाही और विभागीय निष्क्रियता की पोल खोल दी है। वहीं जिला खनिज अधिकारी श्रीमती मीनाक्षी साहू और खनिज इंस्पेक्टर शशांक सोनी कोई कार्यवाही ही नहीं करते। अवैध रेत उत्खनन करने वालों के हौंसले इतने बुलंद है कि वे यह भी नहीं देख रहे है कि पुल के ठीक नीचे रेत उत्खनन करने से पुल की नींव कमजोर हो सकती है। जिससे भविष्य में कभी भी अचानक करोड़ों की लागत से बना पूरा पुल भरभरा कर गिर सकता है जिससे पुल के ऊपर से गुजर रहे यात्रियों की मौत तक हो सकती है। वहीं अवैध रेत उत्खनन और परिवहन के कारोबार से जुड़े लोग चांदी काट रहे है।

आपको बता दें कि अवैध रेत उत्खनन के प्रयोग में लिए जा रहे ट्रैक्टर वाहन, जो सरकार द्वारा स्थानीय कृषकों को कृषि कार्य के लिए सस्ते ऋण पर उपलब्ध करवाए जाते है। जो सरकार द्वारा किसानों के लिए चलाई जा रही जन कल्याणकारी योजनाओं पर कालिख पोत रहे है, वही जिम्मेदार कृषि विभाग के अधिकारी भी चुप्पी साधे हुए है। एक शर्मनाक बात यह है कि अचानक किसी कार्यवाही में अवैध रेत परिवहन करते पकड़े जाने पर खनिज विभाग/राजस्व विभाग/पुलिस विभाग द्वारा सामान्य दंड वसूलकर छोड़ दिया जाता है जबकि इन ट्रैक्टर वाहन मालिकों पर कृषि विभाग से कृषि कार्य हेतु ऋण पर वाहन लेने के अलावा अवैध कार्यों में लगाए जाने पर विभाग से धोखाधड़ी की धाराओं में कड़ी कार्यवाही की नितांत आवश्यकता है जिससे ऐसे भ्रष्टाचारियों को सबक मिल सके।

ग्राम घोटिया स्थित तांदुला नदी में पुल के ठीक नीचे अवैध रेत उत्खनन का सिलसिला कई वर्षों से जारी है, जिससे करोड़ों की लागत से बने पुल की नींव कमजोर हो रही है। तांदुला नदी में पुलिया के ठीक नीचे अवैध रेत खनन से पुल की संरचना कमजोर हो रही है, जिससे भविष्य में पुल के ढहने की आशंका बढ़ गई है। यह स्थिति यात्रियों की जान के लिए गंभीर खतरा बन सकती है। स्थानीय प्रशासन, खनिज विभाग, राजस्व विभाग और पुलिस की निष्क्रियता के चलते यह अवैध गतिविधि बेरोकटोक चल रही है, जिससे भविष्य में पुल के ध्वस्त होने की आशंका बढ़ गई है। इन विभागों की उदासीनता से रेत माफिया बेखौफ होकर अपने कार्य को अंजाम दे रहे हैं।

सरकार द्वारा किसानों को सस्ते ऋण पर उपलब्ध कराए गए ट्रैक्टरों का उपयोग कृषि कार्यों के बजाय अवैध रेत परिवहन में किया जा रहा है। यह न केवल सरकारी योजनाओं का दुरुपयोग है, बल्कि कृषि विभाग की लापरवाही को भी उजागर करता है। ऐसे मामलों में संबंधित ट्रैक्टर मालिकों पर भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस) की धारा 420 (धोखाधड़ी) और धारा 406 (आपराधिक विश्वासघात) के तहत कड़ी कार्रवाई की जानी चाहिए। वहीं नाम न छापने की शर्त पर प्रदेश के खनिज विभाग के एक अधिकारी ने बताया कि खनिज इंस्पेक्टर शशांक सोनी और जिला खनिज अधिकारी श्रीमती मीनाक्षी साहू की बारीकी से जांच की जाए तो अकूत संपत्ति का खुलासा हो सकता है।

खनिज विभाग के अधिकारी, जैसे कि जिला खनिज अधिकारी श्रीमती मीनाक्षी साहू और खनिज निरीक्षक शशांक सोनी, अवैध रेत उत्खनन के खिलाफ कोई ठोस कार्यवाही नहीं कर रहे हैं। यह विभागीय लापरवाही न केवल सरकारी राजस्व की हानि का कारण बन रही है, बल्कि पर्यावरण और सार्वजनिक सुरक्षा के लिए भी खतरा उत्पन्न कर रही है। वहीं ग्रामीणों और ट्रेक्टर चालक से पूछने पर उन्होंने घोटिया निवासी किसी प्रकाश साहू का नाम बताया। वहीं यह व्यक्ति पिछले कई सालों से अवैध रेत उत्खनन और परिवहन का कार्य कर रहा है। अब आगे देखते है कि जिले की नई कलेक्टर साहिबा ऐसे अवैध रेत कारोबारियों और तस्करों पर क्या कड़ी कार्यवाही करती है वहीं जिले की खनिज अधिकारी और खनिज इंस्पेक्टर पर अपनी जिम्मेदारियों में लापरवाही पर क्या विभागीय कार्यवाही की जाती है।

राजस्व विभाग और पुलिस की निष्क्रियता के कारण अवैध रेत उत्खनन करने वालों के हौसले बुलंद हैं। इन विभागों की मिलीभगत या उदासीनता से अवैध गतिविधियों को बढ़ावा मिल रहा है, जिससे सरकारी संपत्तियों और आम जनता की सुरक्षा खतरे में पड़ रही है। अवैध रेत उत्खनन में लगे ट्रैक्टरों को जब्त कर, उन्हें सरकारी संपत्ति घोषित किया जाना चाहिए, जैसा कि अन्य राज्यों में किया जा रहा है। इसके अलावा, दोषी अधिकारियों के खिलाफ विभागीय जांच और अनुशासनात्मक कार्रवाई की जानी चाहिए, ताकि भविष्य में ऐसी लापरवाही न हो।

बालोद जिले में अवैध रेत उत्खनन की समस्या गंभीर होती जा रही है। यदि संबंधित विभागों ने समय रहते ठोस कदम नहीं उठाए, तो यह न केवल पर्यावरणीय संकट को जन्म देगा, बल्कि सार्वजनिक सुरक्षा के लिए भी गंभीर खतरा बन जाएगा। खनिज विभाग की अधिकारी मीनाक्षी साहू और खनिज निरीक्षक शशांक सोनी की निष्क्रियता कहे या मिलीभगत? जिससे रेत माफिया के हौसले बुलंद हैं। विभागीय अधिकारियों का दावा है कि वे अवैध खनन पर निगरानी रख रहे हैं, लेकिन जमीनी हकीकत इसके विपरीत है।

पुल की संरचना और उसकी दीर्घायु इंजीनियरिंग के कुछ महत्वपूर्ण मानकों पर निर्भर करती है, जिनमें सबसे अहम है फाउंडेशन (नींव) की स्थिरता। जब पुल के ठीक नीचे से अवैध रेत खनन किया जाता है, तो इससे निम्नलिखित गंभीर इंजीनियरिंग खतरे उत्पन्न होते हैं। नदी के भीतर या आसपास रेत खनन करने से पुल की नींव की मिट्टी और रेत बह जाती है। यह “स्कॉरिंग” कहलाता है, जो पुल के पायों के नीचे की मिट्टी को हटा देता है। इससे पिल्लर धीरे-धीरे खोखले हो सकते हैं और उनका वजन सहन करने की क्षमता घट जाती है।

पुल का डिज़ाइन इस आधार पर होता है कि नीचे की ज़मीन एक निश्चित घनत्व और स्थिरता की होगी। जब वह आधार कमजोर हो जाता है, तो पुल पर ट्रैफिक का भार असंतुलित रूप से पड़ता है और संरचना दरक सकती है। इंजीनियरिंग मानकों के अनुसार, यदि नींव के आसपास 1 मीटर से अधिक गहराई तक खनन किया गया है, तो वह पुल के ढहने की स्थिति में ला सकता है। खासकर मानसून के समय पानी के तेज प्रवाह से नींव और ज्यादा क्षतिग्रस्त हो सकती है। इसे रोकने के लिए तकनीकी समाधान स्कॉर प्रोटेक्शन हो सकता है जिसमें रॉक फिलिंग, कंक्रीट ब्लॉक व जियोसिंथेटिक बैग्स का उपयोग किया जाता है।

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Feroz Ahmed Khan

संभाग प्रभारी : दुर्ग
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