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फर्जी फार्मासिस्ट के भरोसे चल रहे मेडिकल स्टोर्स : स्वास्थ्य सुरक्षा पर मंडरा रहा गंभीर खतरा

फिरोज अहमद खान (पत्रकार)
बालोद। छत्तीसगढ़ के बालोद जिले के ग्राम कुसुमकसा में कई मेडिकल स्टोर्स बिना पंजीकृत फार्मासिस्ट के संचालन कर रहे हैं, मतलब बिना पंजीकृत फार्मासिस्ट के बिक रही दवाइयां। जिससे स्थानीय निवासियों की स्वास्थ्य सुरक्षा पर गंभीर खतरा मंडरा रहा है। इन स्टोर्स पर दवाओं की बिक्री ऐसे व्यक्तियों द्वारा की जा रही है जिन्हें आवश्यक फार्मास्युटिकल प्रशिक्षण नहीं मिला है और वे दवाओं के नाम तक सही से नहीं जानते।

स्वास्थ्य विभाग के नियमों के अनुसार, प्रत्येक मेडिकल स्टोर में एक पंजीकृत फार्मासिस्ट की उपस्थिति अनिवार्य है, जो दवाओं की सही जानकारी और वितरण सुनिश्चित करता है। हालांकि, कुसुमकसा में स्थिति इसके विपरीत है। यहां दुर्ग, भिलाई, राजनांदगांव और रायपुर के पंजीकृत फार्मासिस्टों के नाम और पंजीयन क्रमांक का उपयोग करके मेडिकल स्टोर्स संचालित किए जा रहे हैं, जबकि ये फार्मासिस्ट कभी भी इन स्टोर्स पर उपस्थित नहीं होते। वहीं प्रशासन को ऐसे फार्मासिस्टों के पंजीयन भी हमेशा के लिए रद्द भी कर देने चाहिए।

स्वास्थ्य विभाग और औषधि प्रशासन विभाग की निष्क्रियता के कारण यह समस्या और भी गंभीर हो गई है। इन विभागों के अधिकारी सालाना अवैध वसूली के लिए इन स्टोर्स पर आते हैं और रिश्वत लेकर चले जाते हैं, जिससे इन अवैध गतिविधियों को मौन स्वीकृति मिलती है।

यह स्थिति न केवल कानून का उल्लंघन है, बल्कि आम जनता के स्वास्थ्य के लिए भी गंभीर खतरा है। बिना योग्य फार्मासिस्ट के दवाओं का वितरण गलत दवाओं के सेवन, दुष्प्रभाव और यहां तक कि जानलेवा परिणामों का कारण बन सकता है।

स्वास्थ्य विभाग को तत्काल प्रभाव से ग्राम कुसुमकसा और आसपास के क्षेत्रों में संचालित सभी मेडिकल स्टोर्स की जांच करनी चाहिए और बिना पंजीकृत फार्मासिस्ट के संचालन करने वाले स्टोर्स के खिलाफ सख्त कार्यवाही की जानी चाहिए।

स्थानीय जनता को जागरूक किया जाना चाहिए कि वे केवल उन मेडिकल स्टोर्स से दवाएं खरीदें जहां पंजीकृत फार्मासिस्ट उपस्थित हों और दवाओं के बिल प्रदान किए जाते हों। जनता को ऐसी अवैध गतिविधियों की शिकायत करने के लिए एक प्रभावी और सुलभ प्रणाली उपलब्ध कराई जानी चाहिए, जिससे वे बिना डर के अपनी शिकायतें दर्ज करा सकें।

फर्जी फार्मासिस्ट द्वारा दवाइयों का वितरण न केवल कानूनन अपराध है, बल्कि इससे मरीजों की जान पर भी बन आती है। ऐसे गैर-प्रशिक्षित लोग जब बिना किसी फार्मास्युटिकल ज्ञान के दवाइयां बेचते हैं, तो मरीजों की जान चली जाती है। जिसमें ये फर्जी मेडिकल स्टोर्स संचालक मरीज को गलत दवा, गलत मात्रा (डोज) या गलत समय पर लेने की सलाह दे देते हैं। इससे मरीज को एलर्जी, दुष्प्रभाव (साइड इफेक्ट), ऑर्गन फेलियर यहां तक कि मृत्यु तक हो सकती है।

मरीजों को एलर्जी रिएक्शन हो जाता है जिसमें सांस लेने में तकलीफ, त्वचा पर चकत्ते, सूजन इत्यादि। एक दवा दूसरी दवा के प्रभाव को खत्म कर सकती है या ज़हरीली बन सकती है। एंटीबायोटिक्स का गलत इस्तेमाल संक्रमण को और जटिल बना देता है। गलत दवा लेने से गर्भपात या बच्चे के विकास पर असर पड़ सकता है।

फर्जी फार्मासिस्ट के खिलाफ औषधि एवं प्रसाधन सामग्री अधिनियम, 1940 के तहत कार्यवाही की जानी चाहिए जिनमें धारा 18(सी) के तहत बिना लाइसेंस के दवा बेचना दंडनीय अपराध है। धारा 27 बिना योग्यता के दवा बेचने पर 3 साल तक की सजा या ₹5,000 तक जुर्माना या दोनों हो सकते हैं। वहीं भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) के तहत धारा 419 फर्जी पहचान से धोखाधड़ी में 3 साल तक की जेल या जुर्माना या दोनों। धारा 420: धोखाधड़ी कर लाभ लेने के मामले में 7 साल तक की सजा और जुर्माना। धारा 468 जालसाजी (फेक रजिस्ट्रेशन आदि) 7 साल तक की सजा। धारा 471 फर्जी दस्तावेज का इस्तेमाल 2 साल तक की सजा का प्रावधान है।

आपको बता दें कि फार्मेसी अधिनियम, 1948 के अंतर्गत केवल भारतीय फार्मेसी परिषद (पीसीआई) द्वारा मान्यता प्राप्त डिग्री और पंजीयन वाला व्यक्ति ही फार्मासिस्ट कहलाने का अधिकारी है। फर्जी फार्मासिस्ट का नाम भविष्य में रजिस्ट्रेशन लिस्ट से हटाया जा सकता है और आजीवन प्रतिबंध भी लगाया जा सकता है।

आपको बता दें कि जिम्मेदार स्वास्थ्य अधिकारी या औषधि निरीक्षक बराबर जांच ही नहीं करते। इस प्रकार की अवैध गतिविधियों पर अंकुश लगाना आवश्यक है ताकि आम जनता की स्वास्थ्य सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके और कानून का पालन हो।

Feroz Ahmed Khan

संभाग प्रभारी : दुर्ग
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