बालोद जिले में अवैध ईट भट्ठों का संचालन : पर्यावरण पर संकट, प्रशासन पर सवालिया निशान

फिरोज अहमद खान (पत्रकार)
बालोद। भारत के माननीय सुप्रीम कोर्ट द्वारा लकड़ी, कोयले और चांवल के भूसे से लाल ईट बनाने पर प्रतिबंध लगाए जाने के बाद सभी राज्य सरकारों को निर्देश दिए गए थे कि वे इस दिशा में सख्त कदम उठाएं और अवैध ईट भट्टों के खिलाफ कार्रवाई करें। लेकिन बालोद जिले में खनिज विभाग, राजस्व विभाग और संबंधित ग्राम पंचायत द्वारा इन अवैध ईट भट्टों को खुला प्रश्रय दिए जाने का मामला सामने आया है, जिससे पर्यावरणीय संकट बढ़ रहा है।
बालोद जिले के कई छोटे-छोटे गांवों में अवैध लाल ईट भट्टे खुलेआम संचालित हो रहे हैं, जो न केवल पर्यावरण को नुकसान पहुँचा रहे हैं, बल्कि यह ईट भट्ठे सरकार को भारी आर्थिक नुकसान भी पहुँचा रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बावजूद, ये भट्टे नियमों और प्रतिबंधों की अनदेखी कर काम कर रहे हैं, जिससे शासन को जल, बिजली और अन्य संसाधनों के संदर्भ में घाटा हो रहा है।
नियमों का उल्लंघन :
खनिज विभाग : खनिज विभाग के अंतर्गत आता है कि किसी भी प्रकार के अवैध खनन, ईट बनाने के लिए उपयुक्त सामग्री का उपयोग और उसका निरीक्षण किया जाना चाहिए। हालांकि, बालोद जिले में खनिज अधिकारी श्रीमती मीनाक्षी साहू द्वारा बार-बार कार्रवाई की बात की जाती है, लेकिन जमीन पर कोई ठोस कदम नहीं उठाया जा रहा। यह स्पष्ट रूप से विभागीय मिलीभगत का इशारा करता है।
बिजली विभाग : इन अवैध ईट भट्टों को जल आपूर्ति के लिए कृषि भूमि पर स्थापित ट्यूबवेल और बोर से पानी लिया जा रहा है। इसके अलावा, विद्युत विभाग द्वारा सस्ते दर पर उपलब्ध करवाई जाने वाली बिजली भी अवैध रूप से ईट भट्ठों में काम आने वाले उपकरणों और मजदूरों के घरों में प्रदाय की जा रही है। इस प्रकार, सरकारी संसाधनों का अनुचित उपयोग किया जा रहा है।
कृषि विभाग : कृषि विभाग ने किसानों के खेतों में सिंचाई के लिए ट्यूबवेल और बोर लगवाए थे, लेकिन इनका दुरुपयोग अवैध ईट भट्टों द्वारा किया जा रहा है। इससे कृषि भूमि के लिए जल आपूर्ति प्रभावित हो रही है और कृषि कार्यों पर प्रतिकूल असर पड़ रहा है।
पर्यावरण विभाग : इन अवैध ईट भट्टों से पर्यावरण पर गंभीर असर पड़ रहा है। लकड़ी और कोयले का उपयोग करने से वायुमंडल में प्रदूषण बढ़ रहा है, जिससे स्थानीय जलवायु पर भी नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है। इसके बावजूद, पर्यावरण विभाग द्वारा इन अवैध भट्टों के खिलाफ कोई प्रभावी कार्रवाई नहीं की जा रही है।
राजस्व विभाग : राजस्व विभाग की जिम्मेदारी है कि वह ग्राम पंचायतों के अंतर्गत अवैध गतिविधियों पर नजर रखे और उन्हें रोके। बावजूद इसके, इन अवैध ईट भट्टों को खुला समर्थन दिया जा रहा है, जिससे यह साफ जाहिर होता है कि विभागीय लापरवाही और मिलीभगत का मामला है।
माननीय सुप्रीम कोर्ट ने दिनांक 02 जुलाई 1996 को अपने आदेश में लकड़ी, कोयले और चांवल के भूसे से लाल ईट बनाने पर प्रतिबंध लगाने का आदेश दिया था। इस आदेश के तहत सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ईट भट्टों में प्रदूषण फैलाने वाली सामग्री का उपयोग नहीं किया जा सकता और इसके साथ-साथ ईट भट्टों को पर्यावरणीय मानकों के अनुरूप चलाने का निर्देश भी दिया गया था। इसके अलावा, यह आदेश जारी किया गया था कि सरकार को अवैध ईट भट्टों के खिलाफ सख्त कदम उठाने चाहिए और उन्हें जप्त किया जाना चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा था कि लाल ईट बनाने के लिए जीवाश्म ईंधन (कोयला, लकड़ी, चांवल का भूसा आदि) का उपयोग पर्यावरणीय संकट उत्पन्न करता है और इसके प्रभाव से जलवायु परिवर्तन में भी वृद्धि हो सकती है। कोर्ट ने संबंधित अधिकारियों को निर्देशित किया था कि वे इन भट्टों के संचालन की निगरानी करें और पर्यावरण के लिए खतरनाक ईट भट्टों को बंद कराएं।
इसके बाद, देश भर में इस आदेश का पालन सुनिश्चित करने के लिए स्थानीय प्रशासन और पर्यावरणीय विभागों को निर्देश जारी किए गए थे, ताकि अवैध ईट भट्टों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जा सके। जिले के सभी विकासखंडों में खासकर डौंडी तथा डौंडीलोहारा में यह बेरोक टोक संचालित है। “जिला खनिज अधिकारी को अपने कर्तव्यों के पालन न करने पर वरिष्ठ अधिकारियों द्वारा उन पर तत्काल प्रभाव से नियमानुसार कार्यवाही की जानी चाहिए।”
बालोद जिले में चल रहे इन अवैध ईट भट्टों के खिलाफ सरकारी विभागों को सख्त कार्यवाही करनी चाहिए। सरकारी संसाधनों का अवैध उपयोग रोकने, पर्यावरण सुरक्षा को सुनिश्चित करने और कानूनी कार्यवाही को लागू करने के लिए आवश्यक कदम उठाए जाने चाहिए। इस मुद्दे को लेकर प्रशासन को तत्काल कदम उठाने की आवश्यकता है ताकि पर्यावरण को बचाया जा सके और सरकारी खजाने की रक्षा की जा सके।
साथ ही, नागरिकों से भी अपील की जाती है कि वे किसी भी अवैध गतिविधि की सूचना संबंधित अधिकारियों को दें, ताकि इस प्रकार के अवैध कामों पर रोक लगाई जा सके और कानून का पालन सुनिश्चित किया जा सके।