स्वास्थ्य विभाग में खेला ; बिना आदेश 15 अपात्रों के प्रमोशन मामले को लेकर 3 साल बाद जांच शुरू…
जगदलपुर। ड्राइवर, प्यून और स्वीपर जैसे पदों पर काम करने वाले सरकारी कर्मचारियों को रातों-रात प्रमोशन देकर बाबू बनाने के मामले में तीन साल बाद एक बार फिर से नए सिरे से जांच की शुरुआत की गई है। राज्य सरकार ने इस मामले में बारीकी से जांच करने के आदेश जारी किए हैं। माना जा रहा है कि इस मामले में शासन कड़ी कार्रवाई के पक्ष में है यही कारण है कि तीन सालों से दबे इस मामले को अब बाहर निकाल गया है। नवंबर 2020 में जिले के सीएमएचओ ने स्वास्थ्य विभाग के चतुर्थ वर्ग के कर्मचारियों का पदोन्नति आदेश जारी किया था।
2023 में इस पदोन्नति आदेश में अनियमितता की शिकायत पाए जाने पर तत्कालीन कलेक्टर रजत बंसल ने एक जांच समिति गठित करवाई थी। जांच समिति ने अपनी जांच में पाया था कि तत्कालीन सीएमएचओ आरके चतुर्वेदी और स्थापना लिपिक डीके देवांगन को दोषी पाया था। इसके बाद तत्काल ही कलेक्टर ने पदोन्नति में गड़बड़ी के मामले में सीएमएचओ के खिलाफ विभागीय जांच के लिए संचालक स्वास्थ्य सेवाओं को अनुशंसा की थी।
आदेश निरस्त हुआ, लेकिन सीएमएचओ के खिलाफ जांच अटक गई : इधर मामले के फूटने के तत्काल बाद ही जिन 15 कर्मचारियों का प्रमोशन किया गया था उन सभी के पदोन्नति आदेश निरस्त कर दिया था लिपिक के ऊपर पर भी कार्रवाई की गई थी लेकिन सीएमएचओ के खिलाफ विभागीय जांच तीन सालों से अटकी पड़ी थी। चूंकि मामले में सीएमएचओ के खिलाफ जांच होनी है। ऐसे में पूरी जांच रायपुर से ही बड़े स्तर पर करवाई जा रही है। इस मामले में स्वास्थ्य विभाग के कमिश्नर खुद विभागीय जांच की देखरेख करेंगे। बताया जा रहा है कि जांच के लिए टीम जगदलपुर नहीं आएगी बल्कि तत्कालीन सीएमएचओ को रायपुर जाना होगा।
दो साल तक वेतन भी दिया : तत्कालीन सीएमएचओ आरके चतुर्वेदी ने वर्ष 2020 में करीब 15 कर्मचारियों का प्रमोशन किया था। इनमें सभी कर्मचारी चतुर्थ वर्ग के थे जिन्हें तृतीय वर्ग में पदोन्नति दी गई थी। पदोन्नति के बाद दो सालों तक सब कुछ ठीक रहा। इसके बाद किसी ने मामले में शिकायत दर्ज करवाई। इसके बाद जांच की शुरुआत हुई तो पता चला कि जो प्रमोशन किया गया है वह नियम विरुद्ध
दो साल तक वेतन भी दिया : तत्कालीन सीएमएचओ आरके चतुर्वेदी ने वर्ष 2020 में करीब 15 कर्मचारियों का प्रमोशन किया था। इनमें सभी कर्मचारी चतुर्थ वर्ग के थे जिन्हें तृतीय वर्ग में पदोन्नति दी गई थी। पदोन्नति के बाद दो सालों तक सब कुछ ठीक रहा। इसके बाद किसी ने मामले में शिकायत दर्ज करवाई। इसके बाद जांच की शुरुआत हुई तो पता चला कि जो प्रमोशन किया गया है वह नियम विरुद्ध है। प्रमोशन के लिए राज्य सरकार या शासन की ओर से कोई आदेश ही जारी नहीं हुआ था। इसके अलावा न कोई बैठक हुई थी न कोई डीपीसी हुई थी। ऐसे में इस प्रमोशन को अवैध मानते हुए प्रमोशन की लिस्ट को निरस्त कर दिया था।