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सुप्रीम कोर्ट की सख्त फटकार : इमरान प्रतापगढ़ी के खिलाफ एफआईआर पर उठाए सवाल, कहा- अहिंसा को बढ़ावा देने वाली कविता अपराध कैसे?…

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को कांग्रेस के राज्यसभा सांसद और मशहूर शायर इमरान प्रतापगढ़ी के खिलाफ दर्ज एफआईआर पर गुजरात पुलिस को कड़ी फटकार लगाई। यह मामला एक इंस्टाग्राम पोस्ट से जुड़ा है, जिसमें कथित तौर पर भड़काऊ वीडियो पोस्ट करने का आरोप लगाया गया था। सुप्रीम कोर्ट ने साफ शब्दों में पूछा कि अहिंसा और शांति का संदेश देने वाली कविता आपराधिक मुकदमे का विषय कैसे बन सकती है।

सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात हाईकोर्ट के फैसले पर उठाए सवाल : जस्टिस अभय एस. ओका और जस्टिस उज्जल भुइयां की बेंच ने गुजरात हाईकोर्ट के उस आदेश पर असहमति जताई, जिसमें एफआईआर को रद्द करने की इमरान प्रतापगढ़ी की याचिका खारिज कर दी गई थी। कोर्ट ने कहा कि हाईकोर्ट कविता के अर्थ को समझने में विफल रहा।

जस्टिस ओका ने गुजरात सरकार की ओर से पेश हुई सरकारी वकील स्वाति घिल्डियाल से स्पष्ट शब्दों में कहा, “कृपया कविता को ध्यान से पढ़िए। हाईकोर्ट ने इसके अर्थ को नहीं समझा है… यह सिर्फ एक कविता है।”

बेंच ने यह भी स्पष्ट किया कि यह कविता न तो किसी धर्म के खिलाफ है और न ही समाज में हिंसा भड़काने के उद्देश्य से लिखी गई है। बल्कि, यह अप्रत्यक्ष रूप से अहिंसा और शांति का संदेश देती है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा, “कविता यह संदेश देती है कि भले ही कोई हिंसा में लिप्त हो, लेकिन हम हिंसा में शामिल नहीं होंगे। यह किसी विशेष समुदाय के खिलाफ नहीं है।”

गुजरात हाईकोर्ट ने क्यों नहीं की एफआईआर रद्द? इससे पहले, गुजरात हाईकोर्ट ने 17 जनवरी 2025 को इस मामले में एफआईआर को रद्द करने से इनकार कर दिया था। हाईकोर्ट ने कहा था कि “कविता के भाव को देखते हुए, यह निश्चित तौर पर सत्ता और शासन से जुड़ी कुछ बातें कहती है।” हाईकोर्ट ने सोशल मीडिया पर इस पोस्ट पर आई प्रतिक्रियाओं का हवाला देते हुए कहा था कि “इस पोस्ट से समाज में अशांति पैदा होने की संभावना है।”

इसके अलावा, हाईकोर्ट ने इमरान प्रतापगढ़ी पर जांच में सहयोग न करने का भी आरोप लगाया। अदालत ने कहा कि वे 4 और 15 जनवरी को पुलिस के नोटिस के बावजूद उपस्थित नहीं हुए। इसलिए, जांच जारी रखने की जरूरत है।

सुप्रीम कोर्ट ने दी अंतरिम राहत, रचनात्मकता के महत्व को बताया : सुप्रीम कोर्ट ने एफआईआर पर आगे की सभी कार्रवाई पर रोक लगाते हुए इमरान प्रतापगढ़ी को अंतरिम राहत दी है। बेंच ने इस मामले की सुनवाई तीन हफ्तों के लिए टाल दी, लेकिन साथ ही यह भी कहा कि अदालत रचनात्मकता और कलात्मक अभिव्यक्ति के महत्व को नजरअंदाज नहीं कर सकती।

बेंच ने कहा, “कृपया कविता को ध्यान से समझें। आखिरकार, रचनात्मकता भी महत्वपूर्ण होती है।” सुप्रीम कोर्ट की इन टिप्पणियों से यह स्पष्ट संकेत मिलता है कि अदालत इस मामले को महज एक कलात्मक अभिव्यक्ति के रूप में देख रही है, न कि किसी आपराधिक कृत्य के रूप में।

क्या है पूरा मामला? यह विवाद 3 जनवरी 2025 को गुजरात के जामनगर में दर्ज की गई एक एफआईआर से जुड़ा है। इमरान प्रतापगढ़ी पर आरोप है कि उन्होंने एक “भड़काऊ” इंस्टाग्राम वीडियो पोस्ट किया, जिसमें बैकग्राउंड में उनकी प्रसिद्ध कविता “ऐ खून के प्यासे बात सुनो” चल रही थी। एफआईआर में भारतीय दंड संहिता की धाराओं के तहत विभिन्न समूहों के बीच दुश्मनी भड़काने, सामाजिक सौहार्द बिगाड़ने और धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने के आरोप लगाए गए हैं।

राजनीतिक और साहित्यिक जगत से आई प्रतिक्रियाएं :  इस पूरे मामले को लेकर राजनीतिक और साहित्यिक जगत में तीखी प्रतिक्रिया देखने को मिली है।

  • वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल, जो इमरान प्रतापगढ़ी का बचाव कर रहे हैं, ने कहा, “गुजरात हाईकोर्ट ने कानून के साथ हिंसा की है। यही मेरी चिंता है।”
  • कांग्रेस पार्टी ने इस मामले को “अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर हमला” करार दिया है।
  • कई साहित्यकारों और शायरों ने भी सुप्रीम कोर्ट के रुख का स्वागत किया और इसे “कलात्मक अभिव्यक्ति की जीत” बताया।

क्या हो सकता है आगे? अब इस मामले की अगली सुनवाई तीन हफ्तों बाद होगी। सुप्रीम कोर्ट की सख्त टिप्पणियों के बाद राज्य सरकार से अपने रुख पर पुनर्विचार करने की उम्मीद है। यदि अदालत इस एफआईआर को खारिज कर देती है, तो यह साहित्यिक स्वतंत्रता और अभिव्यक्ति की आजादी के लिए एक अहम फैसला साबित हो सकता है।

सुप्रीम कोर्ट का यह रुख साहित्यिक और रचनात्मक अभिव्यक्ति के महत्व को दर्शाता है। अदालत ने स्पष्ट किया कि एक अहिंसा को बढ़ावा देने वाली कविता को आपराधिक मुकदमे का आधार नहीं बनाया जा सकता। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि आगे की सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट इस मामले में क्या अंतिम फैसला सुनाती है।

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