सारंगढ़ में अर्जुन वृक्षों की अवैध कटाई जोरों पर : वनपाल रघुनाथ यादव की भूमिका पर उठे सवाल…

सारंगढ़-बिलाईगढ़ | रिपोर्ट: दिनेश जोल्हे : सरकार द्वारा जंगलों और वन संपदाओं की सुरक्षा के लिए वन विभाग को जिम्मेदारी दी जाती है, लेकिन जब यही जिम्मेदार विभाग अवैध कटाई और तस्करी का संरक्षक बन जाए, तो हालात वाकई चिंताजनक हो जाते हैं। सारंगढ़ में अर्जुन जैसे औषधीय और इमारती पेड़ों की अवैध कटाई और उसकी तस्करी का मामला एक बार फिर सुर्खियों में है – और इस बार आरोपों के घेरे में खुद वन विभाग के अधिकारी हैं।
वनपाल की सरकारी गाड़ी तस्करी स्थल पर, पर कार्यवाही ‘शून्य’ : वन विभाग की सरकारी गाड़ी (क्रमांक CG 02 AU 2096), जिस पर “छत्तीसगढ़ शासन” लिखा है, उसे सारंगढ़-बिलाईगढ़-शक्ति जिलों की सीमा पर उस स्थान पर देखा गया जहाँ अर्जुन की लकड़ी ट्रैक्टर में लोड कर तस्करी की जा रही थी। चौंकाने वाली बात यह है कि इस वाहन की उपस्थिति के बावजूद न कोई रोकथाम हुई, न कोई पूछताछ, न पंचनामा। यह गाड़ी वहीं खड़ी रही जबकि तस्करी जारी रही।
क्या वाकई ‘दूसरे जिले’ का बहाना बना सकते हैं अधिकारी : जब इस पर सवाल उठाया गया तो सारंगढ़ सामान्य वन विभाग के वनपाल रघुनाथ यादव ने कहा – “हम गए थे लेकिन दूसरे जिले होने के कारण हम कोई कार्यवाही नहीं कर पाए।”
यह बयान कई सवाल खड़े करता है:
- अगर क्षेत्र दूसरे जिले का था, तो क्या विभाग की जिम्मेदारी नहीं बनती कि तुरंत संबंधित जिले को सूचना दी जाए?
- अगर आप कार्यवाही नहीं कर सकते थे, तो आपकी सरकारी गाड़ी घंटों वहीं क्यों मौजूद थी?
- क्या अर्जुन की लकड़ी सारंगढ़ की सीमा से होकर नहीं गुजर रही थी?
- क्या वन विभाग की जिम्मेदारी सिर्फ कागजों तक सीमित रह गई है?
‘शैय्या भईल कोतवाल, तो डर काहे का?’ सारंगढ़ में चरितार्थ होती कहावत : स्थानीय लोगों का कहना है कि यह कोई पहला मामला नहीं है। पिछले कुछ महीनों से अर्जुन, साजा और अन्य औषधीय वृक्षों की कटाई और अवैध सप्लाई एक संगठित गिरोह के माध्यम से हो रही है, जिसमें वन विभाग के कुछ अधिकारी मौन सहयोग कर रहे हैं। वन विभाग की निष्क्रियता और संदिग्ध भूमिका ने पूरे विभाग की कार्यशैली पर सवालिया निशान खड़ा कर दिया है।
जनता पूछ रही है – कौन बचा रहा है तस्करों को : सरकारी गाड़ी, विभागीय मौन, और ‘दूसरे जिले’ की आड़ क्या ये सब एक योजनाबद्ध तस्करी का हिस्सा हैं? जनता जानना चाहती है कि:
- गाड़ी CG 02 AU 2096 कौन चला रहा था?
- उस वक्त वाहन में कौन-कौन अधिकारी मौजूद थे?
- क्या विभागीय जांच शुरू की गई है?
- क्या किसी जिम्मेदार अधिकारी पर कार्रवाई होगी?
यदि यही हाल रहा, तो जंगल बचेंगे कैसे? सारंगढ़ की यह घटना एक चेतावनी है कि अगर जिम्मेदार अधिकारियों की भूमिका संदिग्ध बनी रही, तो जंगलों की जैव विविधता और पारंपरिक वन संपदा का संरक्षण एक दिखावा बनकर रह जाएगा।