सारंगढ़-बिलाईगढ़

सारंगढ़ कलेक्टर कार्यालय में रिश्वतखोरी का LIVE वीडियो वायरल, मिशल नकल के लिए खुलेआम वसूली!…

• कलेक्टर कार्यालय बना 'कैश काउंटर', नकल शाखा प्रभारी विमलेश खूंटे पर गंभीर आरोप... कड़ी कार्यवाही की उठी मांग...

सारंगढ़-बिलाईगढ़ (छत्तीसगढ़) — जिले के प्रशासनिक केंद्र कलेक्टर कार्यालय में भ्रष्टाचार की सड़ी हुई गंध अब किसी अफवाह की मोहताज नहीं रही। सोशल मीडिया पर वायरल हुए एक वीडियो ने जिला प्रशासन की साख पर सवालों की बौछार कर दी है। वीडियो में कलेक्टर कार्यालय के प्रतिलिपि (मिशल नकल) शाखा प्रभारी विमलेश खूंटे को लोगों से प्रत्येक मिशल के बदले ₹300 की अवैध वसूली करते साफ देखा जा सकता है।

कलेक्टर के नाक के नीचे रिश्वत का खेल : जिस स्थान से ईमानदारी, पारदर्शिता और जनसेवा की सबसे ऊँची उम्मीदें होती हैं, वहां नगदी लेकर दस्तावेज सौंपने का ‘रिवाज’ बन चुका है। स्थानीय नागरिकों के अनुसार, यदि कोई व्यक्ति प्रार्थना करके निवेदन करता है, तब भी ₹300 की घूस तयशुदा है। और यदि बिना हुज्जत मिशल चाहिए, तो ₹500 का ‘रेट’ है। यह रकम न कोई रसीद में दर्ज होती है, न कोई अधिकृत आदेश में।

प्रशासनिक छवि पर बड़ा दाग : जिले के कलेक्टर डॉ. संजय कन्नौजे को सख्त और कर्मठ अधिकारी माना जाता है। वह स्वयं कई कार्यों की निगरानी मौके पर जाकर करते हैं। लेकिन सवाल उठता है कि क्या उनके कार्यालय में चल रहे इस भ्रष्ट तंत्र की उन्हें भनक तक नहीं? या फिर यह ‘नाटक’ सिर्फ जनता के सामने ईमानदारी की ‘मिसाल’ गढ़ने तक सीमित है?

‘काम के बदले वेतन’ का अपमान : सरकार अपने कर्मचारियों को हर महीने वेतन, भत्ते और सुविधाएं इसलिए देती है ताकि जनता को समय पर और निःशुल्क सेवाएं मिलें। लेकिन जब वही कर्मचारी घूसखोरी के दलदल में धँस कर ‘न्याय का सौदा’ करने लगे, तो समझ लीजिए कि सिस्टम को दीमक लग चुकी है। मिशल शाखा प्रभारी विमलेश खूंटे का नाम अब आम लोगों की जुबान पर ‘घूसखोर’ के रूप में लिया जा रहा है।

अब देखना ये है…इस गंभीर अनियमितता का वीडियो सामने आने के बाद अब प्रशासनिक कार्रवाई का इंतजार किया जा रहा है। क्या कलेक्टर स्वयं इस पर तत्काल, कठोर और उदाहरणात्मक कार्रवाई करेंगे?

या फिर यह मामला भी रोज़मर्रा की फाइलों के नीचे दबकर ‘रफा-दफा’ कर दिया जाएगा?

प्रदेश के उपमुख्यमंत्री स्वयं हर मंच से कहते हैं ‘घूसखोर बख्शे नहीं जाएंगे’।
अब सवाल है – क्या यह सिर्फ जुबानी जमा खर्च है? या फिर इस मामले में वास्तव में कोई सख्त कदम उठाया जाएगा?

यदि कलेक्टर कार्यालय के भीतर ही पैसे लेकर न्याय और सेवा बेची जा रही हो, तो आम जनता किससे उम्मीद रखे? यह सिर्फ एक कर्मचारी की नहीं, पूरे सिस्टम की साख पर हमला है। जरूरत है अब लोकतांत्रिक जवाबदेही और पारदर्शिता की, ताकि ‘जनता का कार्यालय’ वाकई जनता का बन सके न कि भ्रष्टाचारियों का कमाईघर।


यदि आप चाहें तो मैं इस रिपोर्ट के आधार पर एक RTI आवेदन ड्राफ्ट, सोशल मीडिया अभियान स्लोगन, या प्रेस विज्ञप्ति भी तैयार कर सकता हूँ।

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