सत्य की पुकार और सिस्टम की दीवारें : न्याय के लिए तड़पती एक 70 वर्षीय बुज़ुर्ग महिला ने मांगी इच्छा मृत्यु की अनुमति…

सक्ती। जिले की एक 70 वर्षीय बुज़ुर्ग महिला श्रीमती सुजिला बाई, ग्राम बड़े खेड़ (थाना सारागांव, तहसील डभरा) की पीड़ा आज पूरे सिस्टम पर करारा तमाचा बनकर उभरी है। लगातार सात वर्षों से तहसील कार्यालय, थाना, राजस्व विभाग और कलेक्टर कार्यालय के चक्कर काटने के बावजूद अपनी पुश्तैनी जमीन का हक न मिलने से आहत होकर अब उन्होंने जिला कलेक्टर सक्ती से इच्छा मृत्यु की अनुमति मांगी है।
जमीन है, लेकिन नाम नहीं : शिकायती पत्र के अनुसार, सुजिला बाई के पति स्व. सुदन बाई के नाम ग्राम उमरगांव, ख.स.नं. 23 में कुल 4.581 हेक्टेयर जमीन दर्ज थी, जिसमें से 0.980 हेक्टेयर यानी 324 बेंच (मूल खसरा नं. 1) जमीन उनका पुश्तैनी हिस्सा था। उनके पति की मृत्यु के बाद, सुजिला बाई ने वैधानिक प्रक्रिया से नामांतरण हेतु आवेदन दिया, जिसे तहसील डभरा कार्यालय ने स्वीकार करते हुए दिनांक 31.03.2015 को राजस्व रिकॉर्ड में नाम परिवर्तन के आदेश भी पारित कर दिए।
लेकिन आज 9 साल बीत जाने के बाद भी जमीन उनके नाम नहीं हो सकी है। महिला की शिकायत है कि राजस्व रिकॉर्ड में नाम आने के बावजूद रोजनामचा, नामांतरण पंजी और अधिकार अभिलेख में आज तक सुधार नहीं किया गया।
सरकारी फाइलों में दफन हो गया न्याय : सुजिला बाई ने कई बार थाना सारागांव, तहसीील डभरा और कलेक्टर सक्ती कार्यालय में आवेदन दिए, लेकिन हर बार उन्हें सिर्फ “जांच चल रही है” या “फाइल लंबित है” कहकर टाल दिया गया। महिला ने यह भी लिखा कि सत्र 2018-19 में SDM कार्यालय ने उनकी याचिका स्वीकार की थी, लेकिन अब तक कोई ठोस कार्यवाही नहीं हुई।
लोकतंत्र में बुज़ुर्ग महिला की चीख अनसुनी – पत्र में दर्द छलकता है:
“मुझे लगने लगा है कि इस लोकतंत्र में एक गरीब, वृद्ध महिला की आवाज की कोई कद्र नहीं है।”
“मुझे न जमीन मिली, न न्याय, न ही सम्मान।”
अब इस स्थिति से टूटकर, उन्होंने कलेक्टर से इच्छा मृत्यु की स्वीकृति मांगते हुए लिखा है:
“यदि मुझे मेरी जमीन पर अधिकार नहीं दिया जा सकता, तो कृपया मुझे शांति से मरने की अनुमति दी जाए।”
यह सिर्फ एक महिला की कहानी नहीं – यह व्यवस्था की असफलता की चीख है : यह मामला सिर्फ एक बुज़ुर्ग महिला की जमीन का नहीं है, बल्कि यह गंभीर सवाल खड़ा करता है कि जब सभी सरकारी कागजों में आदेश पारित हो चुका हो, रिकॉर्ड में नाम जुड़ चुका हो और फिर भी न्याय न मिले, तो लोकतंत्र और शासन की प्रासंगिकता कहां बचती है?
प्रशासन मौन, कानून लाचार, आखिर कब मिलेगा न्याय? –21 जुलाई 2025 को जिला कलेक्टर कार्यालय में प्राप्त इस आवेदन पर प्रशासन की कोई प्रतिक्रिया अभी तक नहीं आई है। सवाल यह है कि क्या प्रशासन इस बार कार्रवाई करेगा या फिर एक और महिला सिस्टम की शून्यता में दम तोड़ देगी?