कोरबा

वेदांता ग्रुप की मनमानी : सरकारी भूमि पर अतिक्रमण और नियमों की अनदेखी, जिम्मेदार मौन…

कोरबा: छत्तीसगढ़ के कोरबा जिले में स्थित बालको पावर प्लांट और वेदांता ग्रुप का प्रबंधन लगातार सरकारी भूमि पर कब्जा करने और नियमों को ताक पर रखने के मामलों में घिरता जा रहा है। अब ताजा मामला सामने आया है, जिसमें वेदांता ग्रुप ने नियमों को ताक पर रखकर शासकीय वन भूमि के पेड़ों को काटते हुए अवैध निर्माण करा लिया है।

अवैध अतिक्रमण और जंगलों का विनाश : स्थानीय सूत्रों के मुताबिक, पहले वन भूमि पर खड़े बड़े झाड़-झंखाड़ और घने जंगलों को साफ किया गया, फिर उसी जगह पर निर्माणाधीन विस्तार परियोजना के लिए पार्किंग और पक्के निर्माण कार्य शुरू कर दिए गए। यह पूरा कार्यवाही बिना किसी वैध अनुमति के की गई, जो सीधे तौर पर पर्यावरणीय कानूनों का उल्लंघन है।

जब इस मामले को लेकर वेदांता ग्रुप से संपर्क करने की कोशिश की गई, तो जनसंपर्क अधिकारी प्रखर सिंह ने न तो फोन रिसीव किया और न ही कोई आधिकारिक बयान जारी किया। इससे स्पष्ट होता है कि वेदांता प्रबंधन न केवल नियमों को तोड़ रहा है, बल्कि जवाबदेही से भी बच रहा है।

हाईकोर्ट की दखल, फिर भी बेखौफ वेदांता : वेदांता ग्रुप की इस मनमानी और सरकारी नियमों के उल्लंघन को लेकर एक पत्रकार ने हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर की, जिसके बाद न्यायालय ने इस मामले को गंभीरता से लेते हुए संयंत्र को नोटिस जारी किया। लेकिन इसके बावजूद भी वेदांता ग्रुप के अधिकारी इस विषय पर कोई भी प्रतिक्रिया देने से बच रहे हैं।

स्थानीय जनता पर संकट : सरकारी नियमों को ताक पर रखकर जंगलों की कटाई और अवैध निर्माण कार्य से स्थानीय लोगों को भारी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। वन क्षेत्र के खत्म होने से आसपास के गांवों में निस्तार की समस्या उत्पन्न हो गई है, जिससे लोगों की रोजमर्रा की जरूरतें प्रभावित हो रही हैं।

प्रशासन की चुप्पी: संरक्षण या मिलीभगत? : वेदांता ग्रुप द्वारा पर्यावरण कानूनों का उल्लंघन और सरकारी भूमि पर अतिक्रमण कोई नई बात नहीं है। सवाल यह उठता है कि क्या प्रशासन ने जानबूझकर आंखें मूंद रखी हैं, या फिर बड़े उद्योगपतियों के प्रभाव में आकर नियमों को अनदेखा किया जा रहा है? यदि आम नागरिकों पर इन नियमों का कड़ाई से पालन कराया जाता है, तो फिर वेदांता ग्रुप जैसी कंपनियों के लिए छूट क्यों?

वेदांता ग्रुप की इस मनमानी पर अब सवाल उठने लगे हैं कि क्या कानून सिर्फ आम जनता के लिए है और बड़े उद्योगपतियों को सरकारी नियमों को तोड़ने की खुली छूट दे दी गई है? क्या प्रशासन इस अवैध अतिक्रमण और पर्यावरणीय नुकसान के खिलाफ कोई कड़ी कार्रवाई करेगा या वेदांता ग्रुप को इसी तरह संरक्षण मिलता रहेगा? हाईकोर्ट के हस्तक्षेप के बाद अब देखना होगा कि प्रशासन निष्पक्ष जांच कर दोषियों पर कार्रवाई करता है या फिर इस मामले को भी ठंडे बस्ते में डाल दिया जाएगा।

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