लैलूंगा में पीएम आवास योजना का महाघोटाला!…
• 129 फर्जी आवास, झूठे जिओटैग और करोड़ों की बंदरबांट - दोषी अफसर अब भी बेलगाम!...

रायगढ़। विशेष रिपोर्ट। प्रधानमंत्री आवास योजना (शहरी) जो गरीबों को सिर पर छत देने की सबसे बड़ी योजना है वह लैलूंग नगर पंचायत में भ्रष्टाचार, फर्जीवाड़ा और जालसाजी की सबसे शर्मनाक मिसाल बन गई है।
यह घोटाला केवल वित्तीय अनियमितताओं तक सीमित नहीं है, बल्कि यह प्रशासनिक मिलीभगत और सुनियोजित साजिश का नमूना है, जिसमें 129 फर्जी आवास, फर्जी लाभार्थी, झूठे जिओटैग, और अपात्रों को भुगतान के मामले सामने आए हैं।
घोटाले की मुख्य परतें कौन, कैसे और कब :
घोटाला कब हुआ? – 2019 से 2022 के बीच, जब नगर पंचायत लैलूंगा में तत्कालीन प्रभारी सीएमओ सी.पी. श्रीवास्तव पदस्थ थे।
कौन-कौन शामिल?
- तत्कालीन सीएमओ
- इंजीनियर व तकनीकी अमला
- CLTC ऑपरेटर
- MAS और Vice जैसी निजी फर्म
- जिओटैग एजेंसी और कंप्यूटर ऑपरेटर
कैसे हुआ फर्जीवाड़ा?
- बिना निर्माण के फर्जी जिओटैग और फोटो अपलोड
- लाभार्थियों की जानकारी के बिना उनके नाम से भुगतान
- फर्जी लाभार्थी तैयार कर, अपात्रों के खाते में पैसा ट्रांसफर
- CLTC व इंजीनियरों की रिपोर्ट से फर्जीवाड़े को वैधता
घोटाले के चौंकाने वाले उदाहरण :
🔹 प्रकरण 1: फुलेश्वरी यादव व जयकुमार यादव –आवास स्वीकृत लैलूंगा में, निर्माण ग्राम पंचायत रुड़ुकेला में भुगतान भी हो गया।
फर्जी जिओटैग और फोटो, तकनीकी अमले की सीधी मिलीभगत!
🔹 प्रकरण 2: सुखदेव शाह – न तो जानकारी, न घर बना फिर भी भुगतान हो गया!
फोटो में रतन यादव, पैसा गया सुखदेव सिदार के खाते में जो पंचायतकर्मी था।
🔹 प्रकरण 3: संकुवर मुंडा – वार्ड क्रमांक 15 की महिला को नहीं पता कि उन्हें आवास मिला।
फर्जी वृद्ध महिला की फोटो, झूठे जिओटैग, और भुगतान किसी और के खाते में।
राज्यसभा सांसद का निर्देश भी बेअसर : राज्यसभा सांसद देवेंद्र प्रताप सिंह ने स्वयं समीक्षा बैठक में FIR दर्ज कराने का निर्देश दिया। थाने में आवेदन दिया गया, लेकिन आज तक न FIR हुई, न गिरफ्तारी, न ही किसी अधिकारी पर ठोस कार्रवाई।
क्या प्रशासन सांसद की बात को भी हल्के में लेता है?
चार साल बाद पैसा लौटाना ; भ्रष्टाचार को वैधता देने की नई तरकीब?
अब, घोटाले के उजागर होने के बाद कुछ मामलों में राशि वापस पंचायत के खाते में जमा कराई जा रही है।
क्या यह भ्रष्टाचार की माफी है?
क्या इससे दोषी बच सकते हैं?
अगर घोटाला नहीं हुआ, तो पैसा क्यों लौटा?
अगर घोटाला हुआ, तो FIR क्यों नहीं?
सी.पी. श्रीवास्तव की ‘सेफ्टी लेटर नीति’ खुद को बचाने का कागजी खेल : 9 अगस्त 2024 को श्रीवास्तव ने एक पत्र लिखकर कहा कि हो सकता है “मेरे कार्यकाल में संकुवर मुंडा की राशि किसी और को मिल गई हो।”
और जिम्मेदारी डाल दी अपने अधीनस्थों पर।
सवाल उठता है –
- क्या सीएमओ की जानकारी के बिना भुगतान संभव है?
- क्या विभाग प्रमुख सिर्फ “देखने” के लिए होता है?
मुख्यमंत्री की चेतावनी का क्या हुआ? मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय ने साफ कहा था –
“पीएम आवास में ₹1 की गड़बड़ी भी बर्दाश्त नहीं की जाएगी, ज़िम्मेदारों पर कलेक्टर तक कार्यवाही होगी।”
लेकिन लैलूंगा में करोड़ों की गड़बड़ी के बाद भी सबकुछ जस का तस है।
- न सीपी श्रीवास्तव पर कार्यवाही
- न CLTC की ब्लैकलिस्टिंग
- न इंजीनियर या ठेकेदारों पर कार्रवाई
घोटाले का पूरा तंत्र : ऐसे हुई खुली लूट
- जिओटैगिंग: फर्जी स्थल का लोकेशन अपलोड
- फर्जी फोटो: पुराने, चोरी किए गए या एडिटेड फोटो अपलोड
- नकली नोटशीट: इंजीनियर की मिलीभगत
- भुगतान आदेश: CMO/EO द्वारा DBT से पास
- राशि ट्रांसफर: फर्जी खातों में पैसा गया
ये हैं असली सवाल – जो सरकार से पूछे जाने चाहिए :
- जिन 129 मामलों में फर्जीवाड़ा साबित हुआ, उनके जिम्मेदार कौन हैं?
- राशि लौटाने वालों की सूची सार्वजनिक क्यों नहीं?
- क्या CLTC और निजी फर्मों को ब्लैकलिस्ट किया गया?
- राज्यसभा सांसद के निर्देश पर FIR क्यों नहीं?
- आखिर कब तक जांच के नाम पर “फाइलें” घसीटी जाती रहेंगी?
ज़ब गरीबों के ‘छत’ को भी लूटा जाए – तो सरकार की नीयत पर सवाल लाज़मी है!
लैलूंगा में हुआ पीएम आवास घोटाला सिर्फ एक उदाहरण नहीं, बल्कि व्यवस्था की सड़ांध का प्रतीक है।
इसलिए अब जरूरत है –
- तत्काल FIR दर्ज हो
- दोषी अफसरों की गिरफ्तारी हो
- CLTC और निजी कंपनियों की जांच हो
- स्वतंत्र एजेंसी से पूरे प्रोजेक्ट का ऑडिट हो
क्योंकि जनता जानना चाहती है –
🧨 “जब आवास बना ही नहीं, तो फोटो और जिओटैग कहां से आया?”
🧨 “जब लाभार्थी को पता ही नहीं, तो पैसा किसके खाते में गया?”
🧨 “जब चार साल बाद पैसा लौटाना पड़ा, तो गड़बड़ी थी या नहीं?”
सवाल बहुत हैं —
लेकिन जवाब देने वाला कोई नहीं।