रायगढ़

लैलूंगा : “ढाप पंचायत के करोड़ों डकार गए सरपंच-सचिव, जांच आदेश भी 13 दिन से धूल फांक रहा – क्या रायगढ़ की पंचायत व्यवस्था मरणासन्न पर है?”…

रायगढ़। जिले का एक छोटा सा गांव ‘ढाप’ अब पूरे प्रदेश के लिए आइना बन गया है – एक ऐसा आइना जिसमें सत्ता, सिस्टम और संवैधानिक संस्थाओं की लाचारी और मिलीभगत साफ दिखाई दे रही है। सरपंच सुखीराम पैंकरा और सचिव लोकनाथ नायक पर करोड़ों रुपये के सरकारी फंड की लूट का गंभीर आरोप है। लेकिन हैरत की बात ये नहीं कि घोटाला हुआ, हैरत इस बात की है कि जिनके जिम्मे न्याय था – वही अब चुप्पी साधे बैठे हैं।

जांच का आदेश आया -मगर कार्रवाई लापता : जिला पंचायत सीईओ रायगढ़ द्वारा 24 मार्च 2025 को आदेश जारी कर एक सप्ताह के भीतर जांच रिपोर्ट प्रस्तुत करने को कहा गया था।

“घोटाले की जांच कर 7 दिनों के अंदर प्रतिवेदन सौंपें।”

लेकिन आज 6 अप्रैल है – 13 दिन बीत चुके हैं – ना जांच शुरू हुई, ना शिकायतकर्ताओं को इसकी जानकारी दी गई। ना दस्तावेज तलब हुए, ना गांव में कोई अधिकारी पहुंचा।

क्या जिला पंचायत खुद भ्रष्टाचार की रक्षा कवच बन चुकी है? :अब यह सवाल तेज़ी से उठ रहा है कि क्या सरपंच-सचिव को जानबूझकर समय दिया जा रहा है ताकि वे कागज़ात छिपा सकें, घोटाले को धो डालें? क्या जांच सिर्फ एक ‘फॉर्मेलिटी’ बनकर रह गई है?

जांच टीम कागज़ों में कैद – ज़मीनी हकीकत गायब :

  1. उप-संचालक पंचायत, रायगढ़
  2. वरिष्ठ लेखा अधिकारी, जिला पंचायत
  3. जिला अंकेक्षक पंचायत

इनमें से कोई भी जांच अधिकारी अब तक गांव में नहीं पहुंचा। गांव में सन्नाटा है और प्रशासनिक चुप्पी एक सुनियोजित पर्देदारी का संकेत दे रही है।

ढाप के लोगों की सीधी हुंकार – “हम न्याय ख़रीदने नहीं देंगे!” :गांववालों का कहना है कि- “अगर जांच का आदेश भी महज़ दिखावा है, तो फिर इस सिस्टम पर भरोसा कौन करे? जिला पंचायत का सीईओ क्या घोटालेबाजों का मैनेजर बन गया है?”

अब सवाल सिर्फ भ्रष्टाचार का नहीं – बल्कि लोकतंत्र की हत्या का है :अगर आदेशित जांच भी नहीं होती, और घोटालेबाजों को खुला मैदान दे दिया जाता है, तो यह व्यवस्था का आत्महत्या क

“अगर सीईओ का आदेश ही मज़ाक बन जाए, तो फिर जिम्मेदार कौन है? घोटालेबाज या पूरी सरकारी मशीनरी?”

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