रायपुर

रायपुर : ACB-EOW का फर्जी अफसर बनकर करता रहा करोड़ों की ठगी, हसन आबिदी गिरफ्तार… अब सवाल यह है कि सिस्टम अब तक सो क्यों रहा था?…

रायपुर। छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में सामने आया यह मामला केवल एक ठग की गिरफ्तारी नहीं, बल्कि उस तंत्र की परतें उधेड़ने वाला है जो वर्षों तक उसकी ठगी को मौन सहमति देता रहा। खुद को ACB (भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो) और EOW (आर्थिक अपराध अन्वेषण शाखा) जैसे प्रभावशाली सरकारी संस्थानों का अधिकारी बताकर आम लोगों, व्यवसायियों और अफसरों को डराने, धमकाने और उनसे मोटी रकम ऐंठने वाला हसन आबिदी अब पुलिस की गिरफ्त में है। लेकिन असली सवाल यह है कि क्या उसके खिलाफ पहले से दर्ज कई शिकायतों को अनदेखा करना एक प्रशासनिक चूक थी या सोची-समझी लापरवाही?

पुलिस सूत्रों के अनुसार, हसन आबिदी के खिलाफ पहले भी कई शिकायतें दर्ज की जा चुकी थीं, जिनमें ठगी, ब्लैकमेलिंग और फर्जीवाड़े जैसे गंभीर आरोप शामिल थे। इसके बावजूद इन शिकायतों पर कोई ठोस कार्रवाई नहीं की गई। सवाल उठना लाज़मी है — क्या शिकायतें कमजोर थीं, या हसन की पहुंच बहुत मजबूत थी? क्या कुछ लोगों ने उसकी ठगी पर आंखें मूंद रखीं, और यदि हां, तो क्यों?

इस मामले ने तब तूल पकड़ा जब हाल ही में एक महिला पटवारी के पति राजेश सोनी ने टिकरापारा थाने में लिखित शिकायत दर्ज कराई। शिकायतकर्ता ने बताया कि हसन ने स्वयं को EOW अधिकारी बताकर, ACB में झूठे केस दर्ज कराने की धमकी देकर, और गिरफ्तारी का डर दिखाकर पिछले एक वर्ष में किश्तों में एक करोड़ रुपये से अधिक की ठगी की। राजेश ने आरोप लगाया कि वह इस हद तक मानसिक प्रताड़ना का शिकार हो गया कि उसे पत्नी के गहने तक बेचने पड़े, जमीन गिरवी रखनी पड़ी और कर्ज लेकर आरोपी को भुगतान करना पड़ा।

जांच में यह भी सामने आया है कि हसन आबिदी की रणनीति बेहद सुनियोजित थी। वह खासतौर पर भूमि व्यवसाय से जुड़े लोगों, प्रॉपर्टी डीलरों और ऐसे व्यक्तियों को निशाना बनाता था जिनके खिलाफ कोई कानूनी कार्रवाई की संभावना हो सकती थी। वह उन्हें धमकाता कि उनकी संपत्ति विवादित है, या उनके नाम पर रिपोर्ट दर्ज होने वाली है, और खुद को IAS अधिकारी या जांच एजेंसी का निदेशक बताकर फर्जी दस्तावेज दिखाता।

हसन का आतंक इतना था कि अधिकांश पीड़ित डर के कारण चुप्पी साधे रहे। वह सोशल मीडिया पर राजनीतिक नेताओं और वरिष्ठ अधिकारियों के साथ खिंचवाई गई तस्वीरें पोस्ट करता था, जिससे उसका फर्जी रसूख और गहराई से स्थापित प्रतीत होता था। पीड़ितों को यह आभास दिलाया जाता था कि वह “ऊपर तक जुड़ा हुआ व्यक्ति” है, जिससे उसके खिलाफ कोई शिकायत करने का साहस न कर सके।

अब जब पुलिस ने आरोपी को गिरफ्तार कर लिया है, तो यह महज एक अपराधी की गिरफ्तारी नहीं, बल्कि पूरे प्रशासनिक तंत्र की जवाबदेही तय करने का समय है।

  • उन अफसरों की भूमिका की जांच होनी चाहिए जिन्होंने पूर्व शिकायतों को नजरअंदाज किया।
  • उन राजनीतिक चेहरों की भी जवाबदेही तय होनी चाहिए जिनके नाम और तस्वीरों का इस्तेमाल कर हसन लोगों को डरा रहा था।
  • और सबसे ज़रूरी — क्या इस पूरे प्रकरण में कोई आंतरिक मिलीभगत या संरक्षक तंत्र मौजूद था?

यह मामला यह स्पष्ट करता है कि अपराधियों से अधिक खतरनाक वह तंत्र है जो उन्हें संरक्षण देता है, उन्हें नजरअंदाज करता है, और अंततः उन्हें पनपने देता है। अगर इस बार भी कार्रवाई केवल आरोपी तक सीमित रही, तो यह व्यवस्था एक और हसन को जन्म देगी शायद इससे भी ज्यादा दुस्साहसी और विध्वंसक।

अब वक्त है कि पुलिस और शासन सिर्फ प्रेस कॉन्फ्रेंस नहीं, बल्कि कड़ी, ठोस और पारदर्शी कार्रवाई करके जनता के उस टूटते हुए विश्वास को दोबारा स्थापित करें।

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